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वीर ज्ञानोदय ग्रन्थमाला
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चन्द्रिका" संस्कृत टीका लिखने में व्यस्त रहती थीं। जब हम लोग ज्योतियात्रा में भ्रमण करके यहाँ आकर पूज्य माताजी से उत्साहपूर्वक प्रवर्तन की गाथा सुनाने लगते, तो उनके मुँह से एक ही शब्द निकलता कि "मेरी तो यही भावना है कि भगवान् महावीर का संदेश दिगदिगन्त व्यापी करती हुई ज्ञानज्योति की भारतयात्रा निर्विघ्न सफल हो तथा लोग अपनी जन्मभूमि जम्बूद्वीप का ज्ञान प्राप्त करें।" उनकी यह हार्दिक भावना आशातीत रूप में सफल भी हुई।
जिस बोकारो स्टीलसिटी की मैं बात कर रही थी, वहाँ आज ज्ञानज्योति के आगमन पर श्री रामसिंहजी अधीक्षक ने पधारकर ज्योतिरथ का स्वागत किया। वक्ताओं ने रथ प्रवर्तन की महत्ता बतलाई तथा वह सभा एक जुलूस में परिवर्तित होकर पूरे शहर में बधाइयों के गीत गाती हुई भ्रमण करती रही, तभी संध्या रश्मियों ने अपनी लालिमा से इस चलते-फिरते समवशरण का अभिनंदन किया। जमशेदपुर टाटानगर में समापनयह शहर अपने नाम के अनुरूप ही भारत के प्रसिद्ध उद्योगपति टाटा का उद्योग स्थल है। यहाँ लगभग ३० दिगम्बर जैन परिवार उस समय विद्यमान थे। ८ अप्रैल सन् १९८३ को टाटानगर अपने अतिथियों के स्वागत हेतु इस तरह सजाया गया था, मानो किसी कन्या की शादी ही होने जा रही थी।
दिगम्बर, श्वेताम्बर के भेदभाव को भुलाकर वहाँ के समस्त जनसमुदाय ने एकत्रित होकर ज्ञानज्योति का अभूतपूर्व स्वागत किया। भगवान् महावीर, हस्तिनापुर और ज्ञानमती माताजी की जयकारों से शहर का कण-कण गूंज रहा था। लगभग २ कि.मी. दूर से ही स्वागत हेतु पधारे नर-नारियों ने विभिन्न नारों से आकाश गुंजायमान कर दिया।
टाटानगर का उत्साह देखकर ऐसा प्रतीत हो रहा था कि इस बिहार प्रान्त में भगवान् महावीर के अमर सिद्धान्त अभी पूर्णरूपेण जीवन्त हैं, अथवा द्वितीय समवशरण ही भूले-भटके प्राणियों को चरित्रनिर्माण की प्रेरणा देने आया है।
प्रातः ८ बजे यहाँ विस्टुपुर के जैनभवन में सभा का आयोजन किया गया, जिसमें हजारों की संख्या में जनसमूह एकत्रित था। सभा के मुख्य अतिथि कलेक्टर साहब थे तथा आज की सभा के मुख्य आकर्षण श्वेताम्बर मुनि श्री गिरीशचंद महाराज रहे, जिन्होंने अपने वक्तव्य में इस प्रवर्तन को विश्वशांति एवं जन एकता का ठोस कदम बताया।
कलेक्टर साहब श्री विद्यानन्दजी मिश्रा ने ज्ञानज्योति की पावन प्रेरिका आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती माताजी के प्रति अनन्य श्रद्धा व्यक्त करते हुए उनके इस कार्य को देश की जनता के लिए महान् उपयोगी बतलाया तथा कहा कि इस प्रकार के नवीन धार्मिक कार्यों से ही आज की दुनिया को धर्ममार्गों पर लगाया जा सकता है।
समारोह के अध्यक्ष श्री कमानी साहब, सचिव श्री एम.बी. जैन एवं भागचंदजी आदि महानुभावों ने अथक परिश्रम करके समारोह को भव्यरूप प्रदान किया। जुलूस की निराली छटारंग-बिरंगे मोतियों से जड़ित मंगलकलश टाटानगर के जुलूस को ऐतिहासिक बनाने में निमित्त रहे । १०८ कुमारियाँ जिस समय ज्ञानज्योति के आगे-आगे अपने मस्तक पर वे कलश उठाकर चल रही थीं, तब वह लम्बी कतार इन्द्रसेना सरीखी प्रतीत हो रही थी। इस प्रकार के मोतीजड़ित कलश प्रथमबार इसी शहर में देखे गये, जो कि जुलूस का विशेष आकर्षण थे।।
बिहार के ज्ञानज्योति प्रवर्तन में टाटानगर का यह जुलूस सर्वाधिक सुन्दर माना गया। पूरे नगर में अनेक तोरणद्वार एवं स्वागत बैनर लगाकर सजावट की गई थी। इस प्रकार सभी का स्वागत स्वीकार करती हुई ज्ञानज्योति यात्रा टाटानगर के प्रमुख मार्गों से होती हुई जैन भवन साकची में जाकर सम्पन्न हुई।
रात्रि में पुनः सार्वजनिक सभा हुई, जिसमें अनेक वक्ताओं ने अपने-अपने विचार व्यक्त किये तथा बिहार प्रवर्तन समिति के महामंत्री श्री महावीर प्रसादजी पाटनी ने बिहार प्रान्तीय भ्रमण का आज समापन घोषित किया। अनेक सांस्कृतिक कार्यक्रमों के साथ ही ज्योतिरथ में सहयोग प्रदान करने वाले कार्यकर्ताओं का स्वागत भी हुआ।
इस बिहार प्रदेश के पश्चात् ज्योतिरथ का स्वागत उड़ीसा प्रान्त के "कटक" शहर में हुआ तथा वहाँ से खण्डगिरि-उदयगिरि की पावन रज से भी यात्रा सफल हुई। इस लघुयात्रा को अलग से स्थान न देकर बिहार प्रदेश में सम्मिलित किया गया है। बिहार प्रान्त के जैन तीर्थ१. चंपापुर, २. नवादा, ३. राजगृही, ४. पटना, ५. सम्मेदशिखरजी, ६. पावापुरी, ७. कुण्डलपुर, ८. गुणावा, ९. मन्दारगिरी, १०. भद्रिकापुरी, ११. कुलहा पहाड़, १२. वैशाली, १३. मिथिलापुरी।
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