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गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती अभिवन्दन ग्रन्थ
स्वागताध्यक्ष श्री अमरचंद पहाड़िया ने अपने स्वागत भाषण में पूर्व स्मृतियों को बताते हुए कहा
पूज्य आर्यिका श्री ज्ञानमती माताजी वास्तव में हमारी समाज की एक महान् विभूति हैं। उन्हें देखकर आज भी आ. श्री शांतिसागर और चन्द्रसागरजी की सिंहवृत्ति स्मृति में आ जाती है। कलकत्ता चातुर्मास में हम लोगों ने माताजी का उच्च ज्ञान, अनुशासनबद्धता, सतत् पठन-पाठन, प्रवचन की अपूर्वकला आदि गुण प्रत्यक्ष में देखे हैं। उस चातुर्मास जैसी धर्मप्रभावना इस नगरी में पहले कभी भी मैंने नहीं देखी। इत्यादि .....।"
इस स्वागत सभा के पश्चात् विशाल जुलूस निकाला गया, जो कलकत्ते के मुख्य बाजारों से निकला। जुलूस में विभिन्न झांकियां विशेष आकर्षण का केन्द्र थीं। विभिन्न मार्गों में जुलूस का आरती एवं पुष्पवर्षा द्वारा जनता ने स्वागत किया। यहाँ पर प्रथम स्वागतकर्ता श्री मिश्रीलाल काला थे। जियागंज-"जैसे सूर्य किरणों के उगते ही समस्त संसार का अंधकार दूर हो जाता है, उसी प्रकार ज्ञान सूर्य के उदित होते ही अज्ञान अंधकार स्वयमेव पलायित हो जाता है।" ज्ञानज्योति भगवान् महावीर की सच्ची, अनेकान्तमयी वाणी के द्वारा मानव हृदयों में ज्ञान का प्रकाश फैलाती हुई पश्चिम बंगाल में भ्रमण कर रही थी।
दिनांक १४ फरवरी को कलकत्ते से वह ज्योतियात्रा जियागंज में पहुँच गई, जहाँ जनता ने तन-मन-धन से उसका स्वागत किया। ब्र. मोतीचंदजी ने अपने वक्तव्य में जनता को संबोधित करते हुए कहा कि "जिस मॉडल को आप इस ज्योतिरथ पर देख रहे हैं, उसका नाम है जम्बूद्वीप। जम्बूद्वीप इस पृथ्वी मंडल का ही नक्शा है, जहाँ हम और आप रहते हैं। अभी तक इसके बारे में किसी विद्वान् ने खोज नहीं की थी। वर्तमान में पूज्य आर्यिका श्री ज्ञानमती माताजी ने बड़े-बड़े ग्रंथों का अध्ययन करके जम्बूद्वीप रचना को हस्तिनापुर की पृथ्वी पर साकार करने का संकल्प संजोया है, ताकि विज्ञान की दृष्टि भी अप्राप्त ब्रह्माण्ड की खोज में अग्रसर होवे . . . . . इत्यादि।" रात्रि में विद्युत् प्रकाश एवं फौव्वारों से सुसज्जित ज्ञानज्योति को हजारों नर-नारियों ने देखकर अभूतपूर्व आनन्द प्राप्त किया। लालगोला में स्वागतदिनांक १५ फरवरी को जिला मुर्शिदाबाद के लालगोला नामक ग्राम में पलक पांवड़े बिछाकर जनता ज्ञानज्योति का इंतजार कर रही थी, उसका यह उत्साह अपूर्व धार्मिक भावना का परिचय दे रहा था। काफी दूर से ही ज्योति रथ को गाजे-बाजे के साथ मंदिर तक लाया गया।
मध्याह्न ३ बजे स्वागत सभा के पश्चात् जुलूस निकाला गया। रात्रि में भी विद्वानों के प्रवचन हुए। ज्ञानज्योति अपने तेज पुंज के द्वारा बंगाल प्रदेश के नगर-नगर को आलोकित करती हुई २८ फरवरी तक बंगाल प्रान्त में घूमी।
इस एक माह के अन्तराल में लगभग ४० नगरों में स्वागत सभाएं आयोजित हुई, विशाल जुलूस निकाले गये तथा जहाँ जनता में नैतिकता और चरित्र निर्माण के भाव जाग्रत हुए, वहीं जम्बूद्वीप, हस्तिनापुर, ज्ञानमती माताजी के विषय में भी विस्तृत जानकारी प्राप्त हुई।
पश्चिम बंगाल के इस प्रवास में किसी भी साधु-साध्वी का सानिध्य नहीं प्राप्त हुआ, किन्तु अहिंसा और शाकाहार के विस्तृत प्रचार से जो वहाँ की जनता ने त्याग का परिचय दिया, वह अविस्मरणीय है।
इसके पश्चात् ज्ञानज्योति बिहार प्रान्त के लिए रवाना हो गई।
संगम
सब जैनधर्म की जय बोलो,
शुभ जम्बूद्वीप बनाया है। शोध इतिहास पुराण कई,
माँ ज्ञानमती की सूझ नई। भूगोल, खगोल प्रकरती का,
यों भेद साफ समझाया है। . . . . सब सागर सुमेरु वन निर्झर है
कई मंदिर कई तीर्थंकर हैं। यह रचना क्या है संगम है
बिन्दु में सिन्धु समाया है। . . . . सब
यह जैन संस्कृति दिग्दर्शक
यह प्रतिनिधि है, यह संरक्षक। दर्शन, सिद्धान्त, मान्यता मत,
अति श्रद्धा सहित बताया है। . . . . सब है बना, कल्पना तर्क सहित
दर्शक का हर दृष्टि से हित । यो स्वर्ग धरा पर उतर गया
वह परमानन्द वर्षाया है। . . . . सब
-त्रिलोक गोया
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