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________________ वीर ज्ञानोदय ग्रन्थमाला [५८३ बंगाल के वे नगर जो ज्ञानज्योति की दिव्य प्रभा से आलोकित हुए [२९ जनवरी, १९८३ से २८ फरवरी, १९८३ तक] १. आसनसोल, २. दुहमुहानी, ३. पूचड़ा, ४. मिहिजाम, ५. रानीगंज, ६. दुर्गापुर, ७. पुरलिया, ८. खड़गपुर, ९. बेलदा, १०. कोलाघाट, ११. बंडिल, १२. बाली उत्तरपाड़ा, १३. कलकत्ता, १४. शांतिपुर, १५. कृष्णनगर, १६. बेल्डांगा, १७. खगड़ा, १८. बरहमपुर, १९. कासिम बाजार, २०. जियागंज, २१. लालगोला, २२. सन्मति नगर, २३. जंगीपुर, २४. अडंगाबाद, २५. मिर्जापुर, २६. धूलियान, २७. पाकुड़, २८. रायगंज, २९. कालियागंज, ३०. कानकी, ३१. दलखोला, ३२. किशनगंज, ३३. ठाकुरगंज, ३४. फारबिसगंज, ३५. इस्लामपुर, ३६. सिलिगुड़ी, ३७. कूचविहार, ३८. दीनहटा। बिहार प्रान्त में ज्ञानज्योति जहाँ अनन्तों तीर्थंकर ने सिद्धधाम पाया है। सिद्धक्षेत्र सम्मेदशिखर सिरमौर तीर्थ गाया है। उस बिहार प्रान्त ने पावनता का ध्वज लहराया। ज्ञानज्योति यात्रा ने जिसका अन्तस अलख जगाया । भागलपुर से चला ज्योतिरथअपनी बंगाल यात्रा को पूर्ण करके जम्बूद्वीप ज्ञानज्योति का बिहार प्रान्त के प्रसिद्ध नगर भागलपुर में २ मार्च, १९८३ को मंगल पदार्पण हुआ। सिद्धक्षेत्र चंपापुर की छत्रछाया में बसा यह नगर स्वयमेव पवित्रता को प्राप्त है। ज्ञानज्योति ने वहाँ ज्ञान का अलख जगाकर उसे अपनी सौभाग्यशीलता का पुनः स्मरण करा दिया था। विशाल संख्या में उपस्थित जनसमुदाय ने ज्ञानज्योति की मंगल अगवानी की। भागलपुर के धर्मनिष्ठ कार्यकर्ताओं ने अपना नेतृत्व प्रदान कर कार्यक्रम को सफल बनाया। वाणीभूषण पं. बाबूलालजी जमादार एवं ब्र. मोतीचंदजी ने बिहार प्रान्त के प्रारंभ में ज्ञानज्योति को अपना कुशल संचालन प्रदान किया। भागलपुर की स्वागत सभा में इन लोगों के ओजस्वी प्रवचन हुए। पंडितजी ने अपने भाषण में बताया ___"जिन गंगा, सिंधु नदियों, हिमवान् आदि पर्वतों तथा भरत ऐरावत आदि क्षेत्रों का वर्णन आप तत्त्वार्थसूत्र में पढ़ते हैं, उन सबका ही अब साकार रूप हस्तिनापुर में निर्मित हो रहा है।" बिजली फौव्वारों से सहित उस अभूतपूर्व रचना को देखकर सारे देश की दृष्टियां हस्तिनापुर की ओर केन्द्रित होंगी, इसमें कोई संदेह नहीं है। पंडितजी ने इटली से प्रकाशित "जैन कास्मोलॉजी' नामक दीर्घकाय पुस्तक को दिखाते हुए कहा कि आज विदेशों में हमारे धर्मग्रंथों पर रिचर्स हो रही है और हम अपनी संस्कृति को भूल रहे हैं। इसीलिए पूज्य आर्यिका श्री ज्ञानमती माताजी ने हम लोगों को जम्बूद्वीप का विषय विभिन्न धर्मग्रंथों से खोजकर प्रदान किया है। उन्हें भी यह विषय श्रवणबेलगोला में बाहुबली भगवान् के चरणसानिध्य में ध्यान के बल पर प्राप्त हुआ था। लोग मुझसे पूछते हैं कि जम्बूद्वीप की प्रेरणास्रोत ज्ञानमती माताजी कैसी होंगी? मैं सबसे बड़ी पहचान उनकी यही बताता हूँ कि हस्तिनापुर पहुँचने पर जिनके हाथ की लेखनी सदैव चलती रहती हो, वे ही समझो ज्ञानमती माताजी हैं . . . . . इत्यादि। २ मार्च से २३ मार्च तक पं. जमादारजी एवं ब्र. मोतीचंदजी ने ज्योतिरथ का संचालन किया, उसके पश्चात् ब्र. रवीन्द्र कुमारजी एवं मालती शास्त्री ने बिहार प्रान्त में पहुँचकर अपने प्रवचनों से नगर-नगर में हजारों जन समुदाय को लाभान्वित किया। इस मध्य ४ मार्च को भगवान् वासुपूज्य की निर्वाणभूमि "चंपापुर" में ज्ञानज्योति का स्वागत हुआ। इस सिद्धक्षेत्र को “नाथनगर" के नाम से भी जाना जाता है। तीर्थकर महावीर के वास्तविक देशना स्थल पर ज्ञानज्योतिराजगही के विपुलाचल पर्वत पर भगवान् महावीर ने महाराजा श्रेणिक के ६० हजार प्रश्नों के उत्तर अपनी दिव्यध्वनि ने अन्तर्गत प्रदान किये थे। ८ मार्च को ज्ञानज्योति का पदार्पण यहाँ हुआ, तीर्थक्षेत्र की ओर से रथ का यथोचित सम्मान हुआ। यहाँ की नवीन संस्था "वीरायतन" (श्वेताम्बर सम्प्रदाय की संस्था) में भी रथ का पदार्पण हुआ। वहाँ "उपाध्याय अमरमुनि एवं साध्वी चन्दनाजी" ने प्रसन्नतापूर्वक ज्योतिवाहन का अवलोकन किया तथा वहाँ के कार्यकर्ताओं ने आरती उतारकर रथ का स्वागत किया। ___राजगृही'' बिहार प्रदेश का प्रसिद्ध तीर्थधाम है। यहाँ जैन, बौद्ध, हिन्दू, मुसलमान आदि सभी संप्रदाय अपनी श्रद्धा के अनुसार तीर्थ के रूप में इसकी उपासना करते हैं। Jain Educationa international For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012075
Book TitleAryikaratna Gyanmati Abhivandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages822
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size26 MB
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