________________
वीर ज्ञानोदय ग्रन्थमाला
[५८१
"अद्याभवत्सफलता नयनद्वयस्य, देवत्वदीयचरणाम्बुजवीक्षणेन ।' भक्तों के इन शब्दों में यह भाव छिपा था कि "कब हमें असली, अकृत्रिम जम्बूद्वीप एवं सुमेरु पर्वत के दर्शन प्राप्त होंगे।"
कई भावविह्वल महानुभाव हर्षाश्रु छलकाते हुए हाथ जोड़-जोड़ कर कह रहे थे
हे माता ज्ञानमती जी! जैसे आपने हम लोगों को जम्बूद्वीप के इस मॉडल के दर्शन कराए हैं, वैसे ही एक दिन असली जम्बूद्वीप भी दिखा देना। हम आपका उपकार अनन्त जन्मों में भी नहीं भूलेंगे। जहाँ श्री ज्ञानमती माताजी की जय-जयकारों से सारा नगर गुंजायमान हो रहा था, वहीं ज्ञानज्योति के विद्युत् प्रकाश एवं फौव्वारों से कोलाघाट की गली-गली आलोकित हो रही थी।
ज्योति का स्वागत बंगाल विधान सभा के सदस्य श्री संदेश रंजन मांझी ने किया। उन्होंने रात्रि में अपने वक्तव्य में कहा कि "बंगाल की जनता का यह परम सौभाग्य है कि ज्ञानमती माताजी ने हमारे प्रदेश में ज्योति यात्रा का समय प्रदान किया है। यह सामाजिक एकता, धार्मिक सहिष्णुता तथा प्रेम का संदेश लेकर सारे देश में भ्रमण कर रही है। आज से पहले मैंने बंगाल की जनता में किसी धार्मिक आयोजन के प्रति इतनी भावना कभी नहीं देखी थी। मुझे विश्वास है कि यह ज्योति जहाँ-जहाँ जाएगी, मानवमात्र को एक सूत्र में बाँधकर जातीय एकता स्थापित करेगी।
यहाँ के प्रसिद्ध कार्यकर्ता श्री विजय कुमार जैन का विशेष सहयोग रहा।
बंगाल यात्रा की श्रृंखला में दिनांक ९ फरवरी, १९८३ को जम्बूद्वीप ज्ञानज्योति का खगड़ा कासिम बाजार में पदार्पण हुआ, जहाँ समाज ने भरपूर स्वागत किया।
जैसा कि प्रत्येक स्थान पर ज्योतिरथ में बैठने वालों की बोलियां चलती थीं, यहाँ भी उसी क्रम में उत्साहपूर्वक इन्द्र-इन्द्राणियों की बोलियां हुईं। रथ में उन्हें बिठाकर पूरे नगर में अपार जनसमूह के साथ जुलूस निकाला गया। बंगला भाषा में ज्योति की महत्ता बताने वाले पम्फलेट नगर भर में बांटे गए।
यहाँ इसी शुभ अवसर पर श्री गुलाब चंद ठोलिया ने अपनी स्व. धर्मपत्नी गौरा देवी की पुण्य स्मृति में स्थानीय धर्मशाला में एक कमरा तथा कुआँ बनाने के लिए सोलह हजार रुपये की राशि समाज को भेंट की। कलकत्ता महानगरी में विशाल जुलूस द्वारा ज्ञानज्योति का स्वागत
कलकत्ता (प. बंगाल) ज्ञानज्योति के प्रथम स्वागतकर्ता श्री मिश्रीलाल जी काला, साथ में
कलकत्ते में ज्योतिरथ पर बैठे इन्द्र-इन्द्राणी। सुपुत्र गणपतराय जी काला एवं श्री अमरचंद जी पहाड़िया। यह कलकत्ता नगरी पूज्य गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती माताजी के आदर्शों, उपदेशों एवं सिंहवृत्ति से चिरपरिचित था। क्योंकि सन् १९६३ में यहाँ उन्होंने स्वयं पधारकर जिस जीवन्त ज्योति को जलाया था, वह अभी तक जनमानस के अन्तस् में जल रही थी। सभी के मन में पूज्य माताजी के उस ऐतिहासिक चातुर्मास की झलकियाँ बिल्कुल ताजी हो गईं, मानो ज्ञानज्योति के बहाने उन्होंने अपनी ज्ञानमती माताजी को ही पा लिया था।
एक दिन पूर्व से ही वहाँ (१२ फरवरी को) ज्ञानज्योति के स्वागत में "मैना सुन्दरी नृत्यनाटिका" का आयोजन रात्रि में हुआ। श्री दिगम्बर जैन बालिका विद्यालय की बालिकाओं द्वारा श्री दिगम्बर जैन बड़ा मंदिर में यह नाटिका प्रस्तुत की गई, उस समय वहाँ का स्थान भी अपर्याप्त प्रतीत हुआ। सुन्दर नाटिका को जनता ने खूब सराहा।
१३ फरवरी को दिगम्बर जैन बड़ा मंदिर में ही एक स्वागत सभा का आयोजन हुआ, जिसमें प्रो. कल्याणमल लोढ़ा, ब. मोतीचंद शास्त्री, श्री धर्मचंद मोदी ने जम्बूद्वीप रचना व ज्ञानज्योति के महत्त्व पर प्रकाश डाला। इसके पश्चात् श्री सत्यनारायण बजाज, त्रिलोकचंदजी डांगा, श्री हिम्मतसिंह जैन व श्री धन्नालाल काला आदि के भी भाषण हुए।
Jain Educationa international
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org