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वीर ज्ञानोदय ग्रन्थमाला
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"तीरथ कर लो पुण्य कमा लो"
(राजस्थान के पावन तीर्थक्षेत्र)
१. तिजारा २. श्री महावीरजी ३. जयपुर खानिया (चूलगिरि) ४. मौजमाबाद ५. आमेर ६. सरवाड़ ७. बघेरा ८. बड़ागाँव ९. बिजौलिया १०. केशोरायपाटन ११. चांदखेड़ी १२. चित्तौड़ १३. अंदेश्वर पार्श्वनाथ १४. केशरियानाथ
(अतिशय क्षेत्र) -उपर्युक्त-उपर्युक्त-उपर्युक्त- उपर्युक्त-उपर्युक्त-उपर्युक्त-उपर्युक्त(अतिशय क्षेत्र) -उपर्युक्त-उपर्युक्त(ऐतिहासिक तीर्थ) (अतिशय क्षेत्र) - उपर्युक्त
राजस्थान यात्रा एक नजर मेंजयपुर संभाग, बागड़ एवं मेवाड़ इन तीन श्रेणियों में विभक्त राजस्थान प्रान्त में ज्ञानज्योति का प्रवास १६ जून, १९८२ से २० दिसम्बर तक (लगभग ६ महीने तक) रहा। इस मध्य आचार्यश्री धर्मसागरजी महाराज संघ आ० श्री देशभूषणजी महाराज ससंघ तथा अनेक मुनि आर्यिकाओं का सानिध्य एवं आशीर्वाद प्राप्त हुआ। चौदह तीर्थक्षेत्रों की पावन रज से ज्योतिरथ पवित्र हुआ। प्रदेशस्तरीय मंत्रियों तथा सरकारी अधिकारियों ने प्रधानमंत्री द्वारा प्रवर्तित ज्ञानज्योति का भावभीना स्वागत किया। सरकारी सुरक्षा विभाग का पूर्ण सहयोग रहा। सम्पूर्ण राजस्थान में सरकार की ओर से ज्ञानज्योति के साथ पुलिस की गाड़ियां चलीं; अतः कभी किसी प्रकार की जोखिम महसूस नहीं हुई।
ज्ञानज्योति के प्रधानसंचालक पं. बाबूलालजी जमादार के अतिरिक्त प्रोफेसर श्री टीकमचंदजी, दिल्ली, पं. गणेशीलालजी साहित्याचार्य, हस्तिनापुर, सेठ श्री शांतिलालजी बड़जात्या, अजमेर, सेठ श्री धर्मचंदजी मोदी, ब्यावर आदि महानुभावों ने समय-समय पर ज्योति संचालन का भार वहन किया तथा ज्ञानज्योति के केन्द्रीय महामंत्री ब्र. मोतीचंदजी ने समस्त व्यवस्थाओं को सुचारू रूप से संभाला। इसी के साथ हस्तिनापुर केन्द्रीय कार्यालय से ब्र. रवीन्द्र कुमारजी ने प्रचारात्मक कार्यकलापों से राजस्थान प्रवर्तन को प्रभावक बनाया।
सम्पूर्ण राजस्थान में ज्ञानज्योति की स्वागत श्रृंखला में कोटा शहर का प्रथम स्थान रहा, जहाँ डेढ़ सौ तोरण द्वारों में से ज्योतिरथ को प्रवेश कराकर सारे नगर में घुमाया गया था।
इसी प्रकार से अर्थांजलि प्रदान करने में आनन्दपुरकालू का प्रथम स्थान रहा। यहाँ पर साधुओं के प्रति भी अनन्य श्रद्धा भक्ति है। इसीलिए पाली जिले का यह छोटा-सा गाँव अपने आप में जम्बूद्वीप ज्ञानज्योति के राजस्थान के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लेखनीय हो गया है।
राजस्थान के प्रान्तीय कार्यालय को अजमेर निवासी श्री शांतिलालजी बड़जात्या ने अथक परिश्रमपूर्वक संभालकर राजस्थान प्रवास को विशेष प्रभावपूर्ण बनाया था।
अजमेर जिले के दादिया नामक एक ग्राम में जब ज्ञानज्योति रथ पहुँचा तो मंदिर के शिखर के कलश पर एक मयूर नाचता दिखाई दिया। पूछने पर ज्ञात हुआ कि यहाँ विगत सौ वर्षों से प्रतिदिन एक मयूर शिखर के कलश आनंदपुर कालू (राज.) में ज्ञानज्योति रथ पर आसीन इन्द्र-इन्द्राणी।' पर आकर बैठा रहता है. यहाँ की यही विशेषता है।
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