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________________ ५७६] गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती अभिवन्दन ग्रन्थ या कोई पैगम्बर हमें यह नहीं सिखाते कि हम आपस में एक-दूसरे से घृणा करें या एक-दूसरे की बुराई करें या एक-दूसरे को नीचा दिखाएं। मुझे विश्वास है कि ज्ञानज्योति जिन-जिन गाँवों में जायेगी, वहाँ के लोग खुदकिस्मती होंगे एवं उनके यहाँ खुशहाली होगी। हम तो आप लोगों से यही आशीर्वाद चाहते हैं कि इस ज्योति के भ्रमण में हम अपनी जिम्मेदारियां पूरी कर सकें, जिससे ज्ञानज्योति का स्वागत राजस्थान के हर नगर में पूरी सफलता के साथ सम्पन्न होवे। यदि कोई भी इस ज्योति को बुझाने का प्रयास करेगा तो वह स्वयं बुझ जाएगा, किन्तु ज्योति कभी नहीं बुझ सकती, वह तो निरन्तर अधिकाधिक प्रकाश फैलाती हुई अपने लक्ष्य को पूर्ण करेगी; क्योंकि एक महान् तपस्विनी नारी शक्ति की प्रतीक ज्ञानमती माताजी के अन्तर्मन की प्रेरणा से जलाई गई यह पवित्र ज्योति है। वे माताजी कितनी उदारमना होंगी, इसका अनुमान मैं उनकी इसी कृति से लगा सकता हूँ। मैं राजस्थान की अपनी समस्त जनता से अपील करता हूँ कि जहाँ-जहाँ यह रथ जाए, आप लोग इसका खूब स्वागत करें और तन-मन-धन से इस प्रोजेक्ट को सफल करें। ज्योति प्रवर्तन समिति को मेरी बहुत-बहुत बधाई है। आप लोगों ने इस महान कार्य का जो बीड़ा उठाया है, वह सराहनीय है। आप लोगों ने इस धर्मसभा में मुझे बुलाया, इसके लिए मैं आप सभी का अत्यंत आभारी हूँ। जब भी राजस्थान में मेरी आवश्यकता होगी, मैं सेवा हेतु अवश्य उपस्थित होने में अपना सौभाग्य समझूगा।" स्वायत्तमंत्री श्रीराम गोटे वाले के मार्मिक उद्गार"जो कार्य करते हैं वे देवता हैं, जो विघ्न डालते हैं वे राक्षस हैं।" १ अगस्त, १९८२ को अजमेर (राज.) में उपर्युक्त उद्गार प्रकट करते हुए राजस्थान प्रदेश के स्वायत्तमंत्री श्रीराम गोटे वालों ने अपना वक्तव्य प्रारंभ किया ___आज हमारे देश में नैतिकता का पतन होता जा रहा है, जिसके कारण लड़ाई, झगड़े एवं अराजकता के कण सभी जगह फैल रहे हैं। इस ज्ञानज्योति के माध्यम से निश्चित रूप से नैतिकता का व्यापक प्रचार होगा, यह मुझे पूर्ण विश्वास है। जिस प्रकार प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी ने इस ज्योति का प्रवर्तन करके देश की धर्मनिरपेक्षता का परिचय दिया है, उसी प्रकार से इस ज्योति का सारे देश में हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई आदि एकजुट होकर स्वागत कर रहे हैं। इससे और अधिक धर्मनिरपेक्षता का उदाहरण कहाँ मिल सकता है ? जैसा कि मैं पढ़ता और सुनता हूँ कि जैनधर्म सार्वभौम एवं प्राकृतिक धर्म है, वह प्राणिमात्र के हित का सिद्धान्त बतलाता है। वह आज मुझे प्रत्यक्ष देखकर अत्यंत प्रसन्नता होती है। इस अजमेर नगरी में ज्ञानज्योति के स्वागत हेतु उमड़ रहे विशाल जनसमुदाय का दिग्दर्शन मुझे गौरव का अनुभव करा रहा है कि हमारे राजस्थान में आज भी जनता का हृदय भक्ति से ओत-प्रोत है। मैं आज अपना अहोभाग्य समझता हूँ कि इस धर्मसभा में आकर मुझे आप लोगों के समक्ष अपने उद्गार व्यक्त करने का अवसर प्राप्त हुआ। पूज्य श्री ज्ञानमती माताजी से परोक्ष रूप में यही आशीर्वाद चाहता हूँ कि मेरे हृदय में भी ज्ञान की ज्योति प्रस्फुरित होवे। श्री हीरालालजी देवपुरिया (राजस्थान के मंत्री) द्वारा समापन अवसर पर उद्गारअतिशय क्षेत्र श्री केशरियानाथ में ज्ञानज्योति के राजस्थान प्रांतीय समापन के अवसर पर श्री देवपुरियाजी पधारे और सभा को संबोधित करते हुए कहा ६ महीने से हमारे राजस्थान में जो चहल-पहल इस ज्ञानज्योति के कारण थी, आज उस रौनक को विदाई देते हुए मुझे दुःख भी हो रहा है। प्रधानमंत्रीजी के करकमलों से प्रवर्तन के पश्चात् यह ज्ञानज्योति सर्वप्रथम हमारे राजस्थान प्रान्त में पधारी थी। यहाँ की जनता ने पत्रम् पुष्पम् के रूप में जो भी स्वागत किया है, वह पर्याप्त तो नहीं रहा है, किन्तु हम लोगों ने अपने दिलों में जो ज्ञान की ज्योति जलाई है. उससे हमारे हृदय सदैव आलोकित रहेंगे। मैं ज्योति प्रवर्तन की केन्द्रीय समिति और राजस्थान प्रान्तीय समिति को हार्दिक धन्यवाद देता हूँ कि आप लोगों ने हमारे प्रांत में अहिंसा धर्म का, नैतिकता का तथा चरित्रनिर्माण का जो महान् आयोजन किया, उससे जनता को अपूर्व लाभ मिला है तथा जम्बूद्वीप के पुराणगत इतिहास को समझने का सुअवसर प्राप्त हुआ है। पूज्य श्री ज्ञानमती माताजी की महानता का परिचय प्राप्त कर नारी की नारायणी शक्ति को जाना है। इस ज्योतिरथ के राजस्थान भ्रमण में व्यवस्थापकों को यदि किसी तरह का कष्ट हुआ हो. राजस्थान सरकार की ओर से स्वागत आदि में कोई न्यूनता रही हो, तो मैं उन सबके लिए आप लोगों से क्षमा चाहता हूँ। Jain Educationa international For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012075
Book TitleAryikaratna Gyanmati Abhivandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages822
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size26 MB
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