________________
५७८]
गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती अभिवन्दन ग्रन्थ
६ महीने में ३५० ग्रामों में अपनी प्रभा फैलाती हुई ज्ञानज्योति ने अपने पूर्व निर्धारित कार्यक्रमों के अतिरिक्त भी अनेक भाक्तिक नगरों एवं श्रावकों के द्वारा प्रदत्त सम्मान को स्वीकार किया। कहीं-कहीं तो बीच में ही लोग ज्योतिरथ को रोककर खड़े हो जाते और व्यवस्थापकों को उनके आग्रह पर उनकी भावनानुसार ज्ञानज्योति का महत्त्व, प्रवर्तन की योजना आदि के बारे में बताना पड़ता। उनकी अतिरिक्त भक्तिभावना बरबस ही सबके हृदयों को आकर्षित कर लेती थी।
__अगस्त और सितम्बर में राजस्थान के ५-७ स्थानों पर ज्ञानज्योति का प्रत्यक्ष चमत्कार देखने को मिला। जब ज्योतिरथ का जुलूस गाँव में निकल रहा होता या नगर में प्रवेश के समय पूरे नगर में बरसात देखी जाती, वितु जितनी दूर तक ज्योतिरथ और उसका जुलूस रहता, उतनी दूर एक बूंद भी पानी की नहीं रहती थी, बल्कि कुछ दूर आगे-पीछे की बरसात से जुलूस का आनन्द अधिक वृद्धिंगत हो जाता था। लोगों ने इसे जम्बूद्वीप रचना की पूज्यता का प्रभाव एवं पूज्य श्री ज्ञानमती माताजी के तपःपूत आशीर्वाद का ही फल माना था।
विभिन्न समारोह एवं अतिशयों के साथ जम्बूद्वीप ज्ञानज्योति का भ्रमण अति संक्षिप्त रूप में यहाँ लेखनीबद्ध किया गया है, इसी में सम्पूर्ण राजस्थान का भावभीना स्वागत अन्तर्निहित है।
अन्त में राजस्थान की कतिपय झलकियों को प्रस्तुत करता है-एक लघु भजन ।
भजन
तर्ज : जैनधरम के हीरे मोती . . . .
राजस्थान का भाग्य जग गया, जहाँ ज्ञान की ज्योति जली।
स्वागत अभिनन्दन बेला में, धूम मची थी गली गली ॥ टेक ॥ अतिशयक्षेत्र तिजारा से मंगलप्रवेश था हुआ कभी। जयपुर महानगर भी देख रहा स्वागत की श्रेष्ठ घड़ी।
श्री आचार्यरत्न के आशीर्वादों की जहाँ लहर चली।
स्वागत अभिनन्दन बेला में, धूम मची थी गली गली ॥ १ ॥ कोटा हो अजमेर या बूंदी, महावीरजी तीर्थ महा। ज्ञानज्योति रथ वीर प्रभू के संदेशों को सुना रहा ॥
श्रद्धा भक्ती की अजस्रधारा जनता के बीच चली।
स्वागत अभिनन्दन बेला में, धूम मची थी गली गली ॥ २ ॥ बागड़ लोहारिया ग्राम में ज्ञानज्योति का नाम हुआ। श्री आचार्य धर्मसागरजी ने मंगल आशीष दिया |
ज्ञानमती की ज्ञानज्योति में संघ चला था गली गली।
स्वागत अभिनन्दन बेला में, धूम मची थी गली गली ॥ ३ ॥ नहीं बचा मेवाड़ प्रान्त भी उसको नया प्रकाश मिला। नेता भी सौभाग्य मानकर, आए निज मन कमल खिला ॥
केशरिया के नाथ प्रभू के पास समापन ज्योति जली।
स्वागत अभिनन्दन बेला में, धूम मची थी गली गली ॥ ४ ॥ कहाँ हस्तिनापुर नगरी कैसी है जम्बूद्वीप कला। गणिनी ज्ञानमती माता ने इसीलिए रथ दिया चला ॥
चार जून को दिल्ली से, "चन्दनामती" यह ज्योति जली। स्वागत अभिनन्दन बेला में, धूम मची थी गली गली ॥ ५ ॥
Jain Educationa international
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org