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________________ ५७४] गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती अभिवन्दन ग्रन्थ आर्यिका श्री अभयमती माताजी की अभय वाणीजयपुर (राज.) में ज्ञानज्योति सभा को आचार्यश्री देशभूषणजी महाराज के साथ-साथ परमपूज्य आचार्य श्री धर्मसागर जी महाराज की प्रथम आर्यिका शिष्या श्री अभयमती माताजी का संघ सानिध्य भी प्राप्त हुआ। अतः पूज्य माताजी का मंगल-आशीर्वाद ज्ञानज्योति को मिला तथा उन्होंने ओजस्वी प्रवचन में कहा कि कई महीनों से ज्ञानज्योति की योजनाओं के बारे में सुना तो करती थी किन्तु साक्षात् देखने का सुअवसर आज ही प्राप्त हुआ है। ज्ञानमती माताजी तो स्वयं ही ज्ञान की जीवन्त ज्योति हैं, मुझे भी उनके सानिध्य में १० वर्ष तक रहने का तथा उनके श्रीमुख से अध्ययन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। पूज्य माताजी द्वारा प्रेरित यह ज्ञानज्योति का रथ जन-जन को ज्ञान प्रकाश देगा तथा इसके माध्यम से नारी शक्ति को भी पहचानने का अवसर प्राप्त होगा। यहाँ यह ज्ञातव्य है कि आर्यिका श्री अभयमती माताजी पूज्य गणिनी आर्यिका श्री ज्ञानमती माताजी की लघु बहिन हैं। सन् १९७१ में इन्होंने राजस्थान से बुंदेलखण्ड की यात्रा हेतु पृथक् विहार किया था। १० वर्ष तक निर्विघ्न पदयात्रा सम्पन्न करने के पश्चात् पुनः राजस्थान के जयपुर शहर में पधारी थीं। अतः ज्ञानज्योति की सभा को पूज्य माताजी का सानिध्य प्राप्त करने का सौभाग्य भी मिल गया। आपके साथ क्षुल्लिका श्री शांतिमती माताजी हैं, वे भी सभा में उपस्थित थीं। क्षुल्लक श्री सिद्धसागरजी के प्रभावी प्रवचनअजमेर (राज.) में ज्ञानज्योति की स्वागत सभा में पूज्य क्षुल्लक श्री सिद्धसागरजी महाराज (आचार्य श्री धर्मसागरजी के शिष्य) का सानिध्य प्राप्त हुआ। पूज्य क्षुल्लकजी ने विशाल सभा को अपनी ओजस्वी वाणी में संबोधन प्रदान किया तथा ज्ञानज्योति को महायज्ञ की उपमा देते हुए कहा कि "ऐसे लोग जो साधुओं पर कीचड़ उछालते हैं, वे धर्म तथा समाज के दुश्मन हैं। हमेशा साधुओं के निमित्त से ही अनेक मानवों का एवं तीर्थक्षेत्रों का उद्धार हुआ है।" चारित्रचक्रवर्ती आचार्य श्री शांतिसागरजी महाराज की प्रेरणा से कुंथलगिरि, मुनि श्री समंतभद्र महाराज की प्रेरणा से कुंभोज बाहुबली, आचार्यश्री देशभूषण महाराज के निमित्त से कोथली, आचार्य श्री विमलसागरजी महाराज की प्रेरणा से सम्मेदशिखर आदि तीर्थ कितने विकसित हुए हैं, यह आप सभी के सामने है। इसी श्रृंखला में पूज्य श्री ज्ञानमती माताजी की प्रेरणा से हस्तिनापुर नगरी का जम्बूद्वीप निर्माण से पुनरुद्धार हो रहा है, यह महान् प्रसन्नता की बात है। मुझे भी हस्तिनापुर में पूज्य ज्ञानमती माताजी के एवं सुमेरु पर्वत के साक्षात् दर्शन का सौभाग्य प्राप्त हो चुका है। मैंने देखा है कि माताजी दृढ़ता की साकार प्रतिमा हैं। हम सभी को उनके मार्ग का अनुसरण करना चाहिए। राजस्थान प्रान्त के कतिपय साधुओं की अमृतवाणी के कुछ कण मैंने यहाँ प्रस्तुत किये हैं। पाठकगण इन्हीं कणों से साधु समूह की सर्वजनहिताय भावना का सार ग्रहण करें, यही मंगल-कामना है। नेता स्वागत हेतु पधारेजो अमर ज्योति देश की लोकप्रिय प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी के कर-कमलों द्वारा प्रज्वलित एवं प्रवर्तित की गई थी उसका प्रदेश के मुख्यमंत्री, राज्यपाल, डी.एम., एस.डी.एम. आदि स्वागत करें, यह कोई अतिशयोक्ति वाली बात नहीं है। दिल्ली के मंच पर तो प्रधानमंत्री के साथ-साथ गृहमंत्री आदि अनेक केन्द्रीय नेता विद्यमान थे ही, उसके पश्चात् राजस्थान के विभिन्न नगरों में जिस छोटे-बड़े नेता को ज्ञानज्योति आगमन की सूचना मिलती थी, वह तुरन्त अपना कर्त्तव्य समझकर स्वागत हेतु सभा में पधारता एवं जम्बूद्वीप की आरती कर ध्यानपूर्वक उसका अवलोकन भी करता था। सभी नगरों में सभागत नेताओं का आगमन तो लिपिबद्ध कर पाना कठिन है, किन्तु कतिपय प्रमुख स्थानों पर स्वागतार्थ पधारे राष्ट्रीय नेता एवं अधिकारी कार्यकर्ताओं की सूची निम्न प्रकार हैक्र.सं.नेता का नाम नगर का नाम १. राजस्थान के महामहिम राज्यपाल श्री ओ.पी. मेहरा जयपुर २. अलवर के जिलाधीश एवं कार्यकारिणी नगर प्रशासक श्री विजयशंकर सिंह आई.ए.एस. अलवर ३. श्रीराम गोटे वाले (स्वायत्तमंत्री राजस्थान) अजमेर ४. श्री भूटानी सिंह राठौड़ बी.डी.ओ. पीसांगन ५. जिलाधीश श्रीवास्तव जी दादिया ६. भीलवाड़ा के एस.पी. महोदय गुलाबपुरा ७. श्रीमान् एस.एस. कक्कड़ एस.डी.ओ. शाहपुरा ८. मजिस्ट्रेट श्री अनिल कुमार जी मिश्रा जहाजपुर ९. श्रीमान् तहसीलदार कोटडी Jain Educationa international For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012075
Book TitleAryikaratna Gyanmati Abhivandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages822
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size26 MB
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