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________________ वीर ज्ञानोदय ग्रन्थमाला [५६३ दिन बालयतियों की प्रथम प्रेरणास्रोत बाल ब्रह्मचारिणी कु. मैना ने श्री महावीरजी क्षेत्र पर ही आचार्य श्री १०८ देशभूषणजी महाराज के कर-कमलों में क्षुल्लिका दीक्षा धारण की थी। उनके असीम वीरत्व के कारण ही उन्हें वीरमती नाम प्राप्त हुआ था। . वर्तमान में प्रायः ऐसा सुना जाता है कि कोई भी शुभ कार्य शुक्ल पक्ष में करना चाहिए, कृष्णपक्ष में नहीं। पूज्य माताजी का दीक्षा दिवस इस पक्ष का साक्षात् खण्डन करता है; क्योंकि कृष्णपक्ष के प्रारंभिक दिवस की ली हुई दीक्षा ने माताजी के जीवन में उत्तरोत्तर वृद्धि ही नहीं की, प्रत्युत् लोकोत्तर वृद्धि का इतिहास ही कायम कर दिया है। इसीलिए ज्ञानमती माताजी उस तीर्थक्षेत्र श्री महावीरजी को अपनी वास्तविक जन्मभूमि मानती हैं। श्री ज्ञानमती माताजी की झुल्लिका दीक्षात्यली श्री महावीर जी अतिशय क्षेत्र' हाँ, तो अब विषय पर आती हूँ कि ज्ञानज्योति रथ का मंगल आगमन पर ज्ञानज्योति। २३ जून, १९८२ को श्री महावीरजी में हुआ, जहाँ तीर्थक्षेत्र कमेटी, ब्र. कृष्णाबाई आश्रम, ब्र. कमलाबाई द्वारा संचालित आदर्श महिला विद्यालय, श्री शांतिवीरनगर आदि विभिन्न संस्थानों ने जीभर कर उसका स्वागत किया। वह अतिशय क्षेत्र तथा वहाँ के वासी ज्ञानज्योति को अपनी पूज्य ज्ञानमती माताजी का रूप मानकर तन-मन-धन से अगवानी करने में जुट गए थे। दिगम्बर जैन नवयुवक मंडल एवं आदर्श महिला विद्यालय की बालिकाओं ने इस पावन प्रसंग पर सुन्दर गीत प्रस्तुत किये, जो प्रसंगोपात्त यहाँ प्रस्तुत किए जा रहे हैं। ज्ञानज्योति भ्रमण के दौरान ये दोनों गीत जनमानस के लिए आकर्षण का केन्द्र रहे है ज्ञानज्योति भजन रचयिता-चक्रेश कुमार जैन, श्रीमहावीरजी ज्ञानज्योति, जय ज्ञान ज्योति, मम हृदय विराजे-विराजे। हम यही भावना भरते हैं, भरते हैं ऐसा आने वाला कल हो। हो नगर-नगर में ज्ञान ज्योति, सबका जीवन अति उज्ज्वल हो। हम यही भावना भरते हैं, भरते हैं ऐसा आने वाला कल हो॥ तीनलोक के मध्य एक लख योजन जम्बूद्वीप है। हां योजन जम्बूद्वीप है। जम्बूद्वीप के मध्य में देखो एक सुमेरु पर्वत है। हां एक सुमेरु पर्वत है॥ जहां तीर्थकर के जन्म समय का इन्द्र अभिषेक करते हैं। हम यही भावना भरते हैं, भरते हैं ऐसा आने वाला कल हो॥ इस जम्बूद्वीप की रचना की प्रतिकृति बनवायी ज्ञानमती। प्रतिकृति बनवायी ज्ञानमती । सबके अन्तर्मन में देखो यह जले हमेशा ज्ञान ज्योति ॥ यह जले हमेशा ज्ञानज्योति ॥ इनके दर्शन से प्राप्त हमें-२, आओ सब मिलकर करते हैं। हम यही भावना भरते है, भरते हैं ऐसा आने वाला कल हो॥ इस रचना को हस्तिनापुर में देखो करा रही है ज्ञानमती। हां करा रही है ज्ञानमती। और ज्ञानमती के शुभाशीष से भारत की इंदिरा गांधी ॥ हां भारत की इंदिरा गांधी ॥ इन करकमलों से चला दिया-२, यह जम्बूद्वीप का मॉडल हो। हम यही भावना भरते हैं, भरते हैं ऐसा आने वाला कल हो॥ Jain Educationa international For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012075
Book TitleAryikaratna Gyanmati Abhivandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages822
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size26 MB
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