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________________ ५६४] गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती अभिवन्दन ग्रन्थ इस ज्ञानज्योति का देश के चारों ओर भ्रमण करवाया है। हां चारों ओर भ्रमण करवाया है। इनके दर्शन से अन्तर्मन में ज्ञान ज्योति हो पाया ॥ हां ज्ञान ज्योति हो पाया। देखो सत्य अहिंसा आदि भाव-२, ये सबके अन्तर्मन में हो। हम यही भावना भरते हैं, भरते हैं ऐसा आने वाला कल हो। यह नगर-नगर में घूम-घूम कर महावीर में आया है। हां महावीर में आया है। स्वागत करते हम सब मिलकर, यही भाव दरशाया है। हां यही भाव दरशाया है। इस ज्ञान ज्योति की दिव्य प्रभा से-२, सबको आतम ज्ञान मिले। हम यही भावना भरते हैं, भरते हैं ऐसा आने वाला कल हो ॥ [आदर्श महिला विद्यालय की बालिकाओं द्वारा पठित] तुम ज्ञान की ज्योति को सभी मिल फैलाओ। तुम ज्ञानमती मां के गुणों को विकसाओ॥ तुम........ क्रोध की अग्नी को क्षमा से बुझाके दया अपनाओ। राग द्वेष को दूर हटाकर समताभाव जगाओ। तुम वीर की नीति को सभी मिल अपनाओ ॥ तुम........ ममता भाव बढ़ाकर तुम सब जन-जन को हरषाओ। दीन दुःखी को गले लगाकर सत्य को तुम अपनाओ ॥ इन निर्मल भावों को सभी मन में लाओ ॥ तुम........ गुणों की कलियों से तुम सब मिल जीवन बगिया सजाओ। फूलों जैसी सुगन्धी से तुम कण-कण को महकाओ॥ फूलों जैसी महकान सभी को दे जाओ ॥ तुम.......... ज्ञानज्योति के स्वागत हेतू सब जन मिल यहां आये। चम्पा आदि सुमन की कलियां अभिनंदन को लाये॥ महिलाश्रम का यह भाव जगत में दरशाओ॥ तुम........ तुम ज्ञान की ज्योति को सभी मिल फैलाओ। तुम ज्ञानमती मां के गुणों को विकसाओ ॥ पूरे राजस्थान के प्रत्येक नगर एवं वहाँ के निवासियों की भक्त्यंजलि व उत्साह का वर्णन तो करना यहाँ शक्य नहीं है; अतः मात्र प्रमुख नगरों कास्वागत ही मैं आपके समक्ष प्रस्तुत करती हूँ। अब पहुँचते हैं राजस्थान की गुलाबी नगरी जयपुर मेंनारीशक्ति प्रदर्शिका श्री ज्ञानमती माताजी के आशीर्वाद और राजनयिक शक्ति श्रीमती इंदिरा गांधी द्वारा प्रवर्तित ज्ञानज्योति अपने लक्ष्य को पूर्ण करती हुई आगे बढ़ रही थी; क्योंकि वाणीभूषण पं. बाबूलाल जमादार ने ज्ञानज्योति के सफल संचालन की बागडोर संभालने का शुभ संकल्प लिया था। ज्ञानज्योति प्रचार का केन्द्रीय कार्यालय संभालते हुए ज्योति प्रवर्तन समिति के महामंत्री ब्र. मोतीचंदजी व रवीन्द्रजी भी स्थान-स्थान पर पहुँच कर आयोजनों को सफल बनाते थे तथा आगे की गतिविधियों को सुचारू रूप प्रदान करते थे। ज्योति प्रवर्तन से पूर्व कुछ लोगों द्वारा अनेक भयावह स्थितियाँ दर्शाई गई थीं। इस जयपुर में ज्योतिरथ की शोभायात्रा में ज्योतिरथ पर बैठे हुए सपत्नीक श्री चैनरूप बाकलीवाल, कारण प्रत्येक व्यवस्था को और भी सुदृढ़ बनाने का प्रयत्न किया गया। जिसका श्री वीरेन्द्र कुमार रानीवाला आदि। Jain Educationa international For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012075
Book TitleAryikaratna Gyanmati Abhivandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages822
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size26 MB
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