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गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती अभिवन्दन ग्रन्थ
राजस्थान में ज्ञानज्योति प्रवर्तन
"राजस्थान मरुस्थल का कण-कण भी मुखर रहा है। ज्ञानज्योति के स्वागत को जनमानस उमड़ रहा है।"
जहाँ राजस्थान प्रान्त अपनी शुष्कता, नीरवता से प्रसिद्ध रहा है, वहीं अपने निवासियों की गुरुभक्ति-वैयांवृत्ति आदि गुण सरसता के भी मूकगीत गाता हुआ इतिहास के पृष्ठों में अग्रणी रहता है। शुभारंभराजधानी देहली एवं हरियाणा के कतिपय नगरों का स्वागत स्वीकार करती हुई जम्बूद्वीप ज्ञानज्योति १६ जून, १९८२ को अतिशय क्षेत्र तिजारा पहुंची।
तीर्थकर चन्द्रप्रभ की अतिशय स्थली पर ज्ञानज्योति का भव्य स्वागत हुआ। पं. बाबूलालजी जमादार के कुशल संचालन में सभा का आयोजन हुआ। ज्योतिरथ की शोभायात्रा निकली। राजस्थान की इस प्रथम यात्रा में ब्र. मोतीचंदजी, रवीन्द्रजी के साथ मुझे भी जाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। चन्द्रप्रभ भगवान की केवल ज्ञानज्योति को प्रसारित करने वाली ज्ञानज्योति यात्रा वास्तविक आनंद को प्रदान करने वाली थी। अलवर में विशाल शोभा यात्रा :फिरोजपुर, नौगाँवा, रामगढ़ में अपनी दिव्य ज्योति प्रज्वलित करती हुई ज्ञानज्योति अलवर नगर में पधारी, जहाँ स्वागत सभा के पश्चात् विशाल शोभायात्रा निकली। शोभायात्रा में अनेक झाँकियाँ दर्शकों का मन मोह रही थीं, भजन मंडलियाँ सुमधुर भजनों से जुलूस को विशेष आनन्द विभोर कर रही थीं। पूरा नगर कलात्मक तोरणों से सजाया हुआ नई दुल्हन के सदृश प्रतीत हो रहा था। प्रधान शचि इन्द्राणी के नेतृत्व में इन्द्राणियों का शतक स्वर्ग की अप्सराओं का दृश्य उपस्थित कर रहा था। दो किलोमीटर लम्बा यह जुलूस शहर में प्रथम बार निकल रहा था; अतः बालक, वृद्ध, जैन, अजैन सभी अतिशयकारी ज्योतिरथ को देखने हेतु
अतिशय क्षेत्र तिजारा से राजस्थान प्रवर्तन प्रारंभ। उमड़ रहे थे। श्री खिल्लीमल जैन एडवोकेट के विशेष नेतृत्व में हुआ यह अभूतपर्व कार्यक्रम अलवर के इतिहास में सदैव स्वर्णाक्षरों में लिखा जाएगा। इन्द्रों की बोलियाँ प्राप्त करके ज्ञानज्योति रथ में बैठने वाले सौभाग्यशाली दम्पतियों ने अपनी अर्थांजलि प्रदान कर मनुष्यपर्याय को धन्य समझा।
इसी प्रकार से खेरली, भरतपुर, धौलपुर, करोली आदि ग्रामों में प्रवर्तन करके जम्बूद्वीप ज्ञानज्योति भगवान महावीर के सिद्धांतों का प्रचार-प्रसार करती हुई पूज्य गणिनी आर्यिका श्री ज्ञानमती माताजी की असली जन्मभूमि पर पहुंच गई। अतिशय क्षेत्र श्री महावीरजी मेंहमारे पाठक सोच रहे होंगे कि ज्ञानमती माताजी का जन्मस्थान राजस्थान में कहाँ से आ गया? अतः यहाँ यह रहस्य स्पष्ट करना मैं अपना कर्तव्य समझती हूँ।
सन् १९५३ में चैत्र कृ. १ सोलहकारण पर्व का प्रथम दिवस श्री महावीरजी क्षेत्र के लिए अमिट छाप छोड़ गया है; क्योंकि उस
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