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वीर ज्ञानोदय ग्रन्थमाला
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जम्बूद्वीप ज्ञान ज्योति प्रवर्तन के शुभ अवसर पर पूज्य आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती माताजी के आशीर्वचन "ॐ नमः सिद्धेभ्यः, ॐ नमः सिद्धेभ्यः, ॐ नमः सिद्धेभ्यः"
तज्जयति परं ज्योतिः समं समस्तैरनन्त पर्यायैः।
दर्पणतल इव सकला प्रतिफलति पदार्थमालिका यत्र ॥ युग के आदि में तीर्थंकर ऋषभदेव जब राज्य सभा में विराजमान थे, प्रजा ने आकर अपनी समस्या रखी कि हे देव! अभी तक हम लोग कल्पवृक्ष से भोजन आदि सामग्री प्राप्त करते आये थे और आज वह कल्पवृक्ष फल नहीं दे रहे हैं, तो हम अपनी आजीविका का पालन कैसे करें तथा अपना जीवनयापन कैसे करें ? तीर्थंकर ऋषभदेव उसी समय उसी जम्बूद्वीप के अन्तर्गत विदेह क्षेत्र में जो स्थिति है, वह सोचते हैं कि आज इस पृथ्वी पर वही विदेह क्षेत्र की स्थिति प्रवृत्त करना योग्य है और उनके स्मरण मात्र से इन्द्र आ जाता है। अयोध्या, हस्तिनापुर आदि नगरी की रचना करता है और भगवान प्रजा को असि, मसि, कृषि, वाणिज्य, शिल्प, कला इन ६ प्रकार की आजीविकाओं का उपाय बतलाते हैं। मैं आपको यह बतला रही थी कि जिस विदेह की स्थिति को देखकर सोचकर तीर्थंकर ऋषभदेव ने युग की आदि से इस पृथ्वीतल पर ६ क्रियाओं का उपदेश दिया, वह विदेह क्षेत्र इसी जम्बूद्वीप के बीचोंबीच में है। उसी विदेह क्षेत्र में सुमेरु पर्वत है, जो एक लाख योजन ऊँचा है, उससे और स्वर्ग में मात्र केवल एक बाल का अन्तर है, यानी वह मध्यलोक का मापदण्ड है। उस सुमेरु पर्वत पर ऋषभदेव से लेकर महावीरपर्यन्त चौबीस तीर्थंकरों का जन्माभिषेक मनाया जा चुका है। अनेक-अनंत-अनंत तीर्थंकरों का जन्माभिषेक उस पर मनाया जा चुका है और भविष्य में भी इसी पर्वत पर अनंत-अनंत तीर्थंकरों का जन्माभिषेक मनाया जायेगा। यही कारण है कि यह पर्वत महान् पूज्य है, जो कि जम्बूद्वीप के बीचोंबीच में है। आज भी आप लोग पंडितों के मुख से, पुरोहितों के मुख से सुनते होंगे। प्रशस्ति के उच्चारण में किसी भी संकल्प में जम्बूद्वीपे, भरत क्षेत्रे, आर्यखण्डे इत्यादि रूप से। तो यह भरत क्षेत्र इसी जम्बूद्वीप का ही एक हिस्सा है। जो कि जम्बूद्वीप के एक सौ नब्बेवां भाग प्रमाण है। इस भरतक्षेत्र के आर्यखण्ड में ही आज का उपलब्ध सारा विश्व है। इस जम्बूद्वीप की रचना में आज उपलब्ध पृथ्वी के अतिरिक्त भी पृथ्वी इस भूमण्डल पर है, यह दिशा निर्देश वैज्ञानिकों को दिया जा रहा है। हमारे यहाँ साधन कुछ अल्प हैं। वैज्ञानिकों के यांत्रिक साधन विशेष हैं और वे खोज में आगे बढ़कर के आपके सामने कुछ न कुछ नई चीज उपस्थित करेंगे, ऐसा पूर्ण विश्वास है। हमारे महर्षियों ने यह बतलाया था कि पेड़ और पौधों में भी जीव है। आज के युग में वैज्ञानिकों ने भी सिद्ध कर बतलाया कि हां पेड़ और पौधों में भी जीव है। ऐसे अनेक विषय हैं जिन्हें वैज्ञानिकों ने सिद्ध करके स्वीकार कर लिया है कि महर्षियों का कथन सत्य है। इस प्रकार से मैं बतला रही थी कि जो आर्यखण्ड है, जिसमें हम लोग रहते हैं, अनादिकाल से और इस युग की आदि से यह समझिए अनेक महापुरुषों ने यहाँ जन्म लिया है। यह महर्षियों का, पुण्यशाली तपस्वियों का क्षेत्र है। यहाँ पर अपनी साधना और तपस्या के बल से अपने को तो पवित्र बनाया ही बनाया, परन्तु देश में सत्चारित्र का निर्माण करके तमाम प्राणियों को पवित्र बनाया है और सुखशांति की स्थापना की है। मुझे जैन रामायण की एक सूक्ति याद आती है
यस्य देशं समाश्रित्य साधवः कुर्वते तपः।
षष्ठमंशं नृपस्तस्य लभते परिपालनात्॥ जिस देश का आश्रय करके साधु तपस्या करते हैं, वहाँ के शासक उनका प्रतिपालन करने से उन साधुओं की तपश्चर्या का छठा भाग पुण्य प्राप्त कर लिया करते हैं। तो मैं ये स्पष्ट कहूँगी कि साधुओं के तपश्चरण का पुण्य इंदिराजी को स्वयं ही मिल रहा है। वे उस पुण्य को स्वयं ही ले लिया करती हैं, यह इस भारत भूमि का एक विशेष माहात्म्य है। वास्तव में यह तो कहना ही पड़ेगा कि इंदिराजी का बहुत बड़ा सौभाग्य है। इस दशक में मैंने अनुभव किया कि अनेक धार्मिक आयोजनों में वे अपने अमूल्य समय को निकाल कर भाग लेती आ रही हैं। जैन समाज का भी यह गौरव कम नहीं है कि जैन समाज के प्रति उनकी कितनी प्रीति है और उनके प्रति जैन समाज की कितनी प्रीति है यह तो आप लोगों के अनुभव में ही आ रहा है। धर्मचक्र का प्रवर्तन भी उन्हीं के हाथ से होना, मंगलकलश का प्रवर्तन भी उन्हीं के हाथ से होना और आज देखिए यह जम्बूद्वीप ज्ञान ज्योति प्रवर्तन का पुण्य अवसर भी उन्हीं को मिल रहा है। आप सोचेंगे एक प्रधानमंत्री के प्रधानमंत्रित्वकाल में इतने-इतने आयोजन होवें और उन्हें ही पुण्य अवसर मिले, यह कम पुण्य की बात नहीं है। मैं यही कहूँगी कि सचमुच में इंदिराजी जैसी साहसी महिला नारीरत्न, जिनने इस युग में एक क्रांति लाई है, सचमुच में यह ज्योति उनके हाथ से प्रवर्तित होकर न जाने भारत के कितने प्राणियों के हृदय के अंधकार को दूर करेगी, कितने मानुष के अंधकार को दूर करेगी। देखिये संसार में अज्ञान से बढ़कर दूसरा कोई अंधकार नहीं है और ज्ञान से बढ़कर विश्व में दूसरा कोई प्रकाश नहीं है। यह ज्ञानज्योति सारे भारतवर्ष में भ्रमण कर कोने-कोने में प्राणियों के अज्ञान रूपी अंधकार को दूर करे और ज्ञान का प्रचार करे, उसके साथ ही साथ सुख और शांति की सारे विश्व में स्थापना करे और प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी के शुभ हस्तों से ऐसे-ऐसे पुण्य कार्य सदैव होते रहें तथा यह जनतंत्र शासन जनता में धर्मनीतिमय अनुशासन करता रहे । मेरा यही शुभाशीर्वाद ।
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