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________________ गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती अभिवन्दन ग्रन्थ [४७९ पूज्य ज्ञानमती माताजी ने आगम आधार पर इसी कैवल्यलक्ष्मी की पूजा करने की प्रेरणा प्रदान की है। पूजा के अन्त में उन्होंने उसके फल का वर्णन किया हैनरेन्द्र छन्द केवलज्ञान महालक्ष्मी की, पूजा नित्य करें जो। इस जग में धन धान्य रिद्धि निद्धि, लक्ष्मी वश्य करें सो दीपावलि दिन लक्ष्मी हेतु, इस लक्ष्मी को ध्याके। केवल "ज्ञानमती" लक्ष्मी को, वरें सर्वसुख पाके ॥ संसार में चक्रवर्ती सरीखी सम्पत्ति एवं मोक्षलक्ष्मीजी भी इस पूजन के प्रसाद से प्राप्त होती है तो छोटी-छोटी सम्पत्तियों के बारे में क्या सोचा जाए? अर्थात् वे तो बिना मांगे ही मिल जाती हैं। इसलिए दीपावली के दिन प्रातः भगवान महावीर की पूजन करके निर्वाणलड्डू चढ़ाते हैं और शाम को गणधर स्वामी एवं केवलज्ञान लक्ष्मी की पूजन की जाती है। उस समय विनायक यंत्र सिंहासन पर विराजमान करके पूजन क्रिया करनी चाहिए। उसी समय बही पूजन भी की जाती है, इसकी सम्पूर्ण विधि इस पुस्तक में दी गई है। ___ इसमें भगवान महावीर स्वामी की भी एक सुन्दर पूजन है जिसमें उन्हें “निर्वाणलक्ष्मीपति" नाम से सम्बोधित किया गया है। केवलज्ञान और निर्वाण इन दोनों विभूतियों को यहाँ लक्ष्मी की उपमा प्रदान की है जो कि विशेष ज्ञातव्य है। महावीर स्वामी पूजन के अष्टक में दो पंक्तियाँ बार-बार दुहराई गई हैंउपेन्द्रवज्रा छन्द निर्वाणलक्ष्मीपति को जनूँ मैं, निर्वाणलक्ष्मी सुख को भनूँ मैं। अर्थात् निर्वाणलक्ष्मीपति तीर्थंकर की पूजा से निर्वाण लक्ष्मी का सुख हम भी प्राप्त कर सकते हैं। इसी प्रकार हिन्दी निर्वाणकाण्ड प्राकृत निर्वाणभक्ति के आधार पर पूज्य माताजी ने शेर छन्द में बनाया है, जो कि बहुत ही सरस भाषा में बना हुआ है। नमूने की दृष्टि से उस निर्वाण काण्ड का भी एक छन्द यहाँ प्रस्तुत है वृषभेष गिरिकैलाश से निर्वाण पधारे। चंपापुरी से वासुपूज्य मुक्ति सिधारे । नेमीश ऊर्जयंत से निर्वाण गये हैं। पावापुरी से वीर परमधाम गये हैं ॥१॥ इस प्रकार से पूरी पुस्तक दीपावली पर्व के लिए तो अत्यन्त उपयोगी है ही, साथ ही प्रतिदिन भी इसमें से कोई भी पूजन की जा सकती है एवं निर्वाणकाण्ड तो श्रद्धापूर्वक रोज पढ़ना ही चाहिए जिससे सभी मुक्तात्माओं की वंदना एवं निर्वाण क्षेत्रों के दर्शन घर बैठे हो जाएंगे। दीपावली पूजन की सम्पूर्ण विधि एवं पूजाओं से समन्वित इस कृति का प्रकाशन सन् १९९१ के दीपावली पर्व पर हुआ है, जब पूज्य गणिनी आर्यिका श्री ज्ञानमती माताजी का चातुर्मास सरधना (जि. मेरठ) में हो रहा था। वीर निर्वाण सम्वत् ने अपने २५१७ वर्ष पूर्ण करके अब २५१८ वें में प्रवेश किया है। वर्तमान में प्रचलित सभी संवतों में वीर निर्वाण सम्वत् सर्वाधिक प्राचीन सम्वत् है, जोकि कलियुग के प्रारम्भ से ही चला आ रहा है अर्थात् इससे यह जाना जाता है कि पंचमकाल के २५१८ वर्ष व्यतीत हो चुके हैं अभी १८४८२ वर्ष इस काल में और शेष हैं, तब तक यह सम्वत् निर्बाध रूप से चलता रहेगा। दिगम्बर जैन त्रिलोक शोध संस्थान हस्तिनापुर से प्रकाशित "दीपावली पूजन" नाम की इस लघु पुस्तक को मंगाकर सभी श्रद्धालु नर-नारी पर्व के महत्त्व और विधि को समझकर उसे कार्यान्वित करें यही मंगल भावना है। Jain Educationa international For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012075
Book TitleAryikaratna Gyanmati Abhivandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages822
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size26 MB
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