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________________ ४७८ ] दीपावली पूजन वीर ज्ञानोदय ग्रन्थमाला दीपावली पूजन समीक्षिका - आर्यिका चंदनामती दीपावली पर्व प्रतिवर्ष आता है और सारे हिन्दुस्तान में असंख्य दीपों की जगमगाहट के साथ खुशियां मनाई जाती हैं। जैन समाज में भगवान महावीर स्वामी के निर्वाण कल्याणक के प्रतीक में कार्तिक कृ. अमावस्या की प्रत्यूष बेला पर भक्तगण निर्वाण लड्डू चढ़ाते हैं। लोक परम्परानुसार कुछ लोग दीपावली के दिन गणेश और लक्ष्मीजी की पूजा करते हैं तथा लक्ष्मी का बसेरा अपने घर में कराने हेतु लोग महीनों पूर्व से घर की सफाई-रंगाई आदि करवाने लग जाते हैं क्योंकि हृदय में यह भावना रहती है कि गन्दे स्थान पर लक्ष्मीजी नहीं आती हैं। यहाँ मुख्य रूप से गणेश और लक्ष्मी पूजन का अभिप्राय समझना है। हमारी समीक्ष्य कृति “दीपावली पूजन" में पूज्य गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती माताजी ने जहाँ दीपावली पूजन की आगमोक्त विधि दर्शाई है वहीं नई-नई छन्दों की पूजाएं एवं नया निर्वाणकाण्ड लिखकर प्रदान किया है। आज से पच्चीस सौ सत्रह वर्ष पूर्व कार्तिक कृष्णा अमावस्या को प्रातः काल जब भगवान महावीर स्वामी को पापुर नगरी से निर्वाण पद की प्राप्ति हुई थी उसी समय से दीपावली पर्व का शुभारम्भ हुआ है। इन्द्रों ने जिस पावापुर में साक्षात् आकर निर्वाणकल्याणक महोत्सव मनाया था वह पावापुर आज तक विद्यमान है, जहाँ प्रतिवर्ष हजारों भक्तगण निर्वाण लाडू चढ़ाकर दीपमालिका पर्व मनाते हैं। दीपावली पर्व के साथ दीपकों का, गणेश और लक्ष्मी का क्या सम्बन्ध है? यह विषय समझने का है Jain Educationa International अमावस्या की घोर अंधियारी रात्रि में देवों ने पुरी पावापुरी नगरी को असंख्य दीपों से अलंकृत किया था उसी खुशी में उस दिन दीपक जलाए जाते हैं इसीलिए इस "वीरनिर्वाणोत्सव" के इस मूल पर्व को दीपावली के नाम से प्रसिद्धि प्राप्त हो गई। उस अमावस्या की सन्ध्या में गौतम गणधर को केवलज्ञान महालक्ष्मी की प्राप्ति हुई। गणधर का एक नाम गणेश भी है क्योंकि वे समवशरण में बारह गणों के ईश-स्वामी होते हैं अतः गणानां ईशः गणेशः नाम सार्थक हो जाता है यह हुआ गणेश और लक्ष्मी का दीपावली से सम्बन्ध । पूज्य माताजी ने गणधर की पूजा के प्रथम श्लोक में ही उनके अनेक नाम दर्शाए हैं गीता छन्द गणपति गणीश गणेश गणनायक गणीश्वर नाम हैं। गणनाथ गणस्वामी गणाधिप आदिनाम प्रधान है । उन इन्द्रभूति गणीन्द्र गौतम स्वामि गणधर को जजूँ । स्थापना करके यहाँ सब कार्य में मंगल भजे ॥ १ ॥ इन १० नामों से समन्वित गणधर स्वामी की अष्टद्रव्य से पूजन की जाती है तथा केवलज्ञान लक्ष्मी की भी अलग से पूजन है जिसे करने से अन्तरंग एवं बहिरंग दोनों प्रकार की लक्ष्मी प्राप्त होती है। इस केवल ज्ञानलक्ष्मी पूजन की जयमाला में पू. ३७ पर एक बड़ी सुन्दर पंक्ति आई है शेर द केवलरमा को सेवर्ती सम्पूर्ण ऋद्धियाँ। उस आगे आगे दौड़ती हैं सर्व सिद्धियाँ आगे जयमाला के अन्त में दोहा छंद का एक श्लोक है केवलज्ञान महान में, लोकालोक समस्त । इक नक्षत्र समान है, नयूँ नमूँ सुखमस्तु ॥ अर्थात् इस महान् केवलज्ञान में तीनों लोक एवं अलोक के सभी रूपी अरूपी पदार्थ नक्षत्र के समान दिखने लगते हैं। दीपावली के शुभ दिन ही गौतम गणधर को इस कैवल्य लक्ष्मी के प्राप्त हो जाने से लक्ष्मी पूजन का महत्त्व इस पर्व के साथ जुड़ गया। For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.012075
Book TitleAryikaratna Gyanmati Abhivandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages822
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size26 MB
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