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________________ ४३२] १६. जैनधर्म- इसमें जैनधर्म क्या है? काल कितने भागों में विभक्त है? तथा चारों अनुयोगों का क्या स्वरूप है? इसका वर्णन है। अंत में आत्मा के बहिरात्मा, अन्तरात्मा और परमात्मा के रूप में भेद किए गए हैं। १७. मुनिचर्या - रत्नत्रय की साधना करने वाले नग्न दिगम्बर मुनि होते हैं। उनके २८ मूलगुण, बाह्य चिह्न, समाचारी विधि, पुलाक आदि भेदों का यहाँ प्रतिपादन है। अन्त में कहा गया है कि आज भी इस पंचमकाल में सच्चे भावलिङ्गी मुनि होते हैं। १८. आर्यिकाचर्या – आर्यिकाओं की चर्या पर प्रकाश डालते हुए कहा गया है कि ये उपचार से महाव्रती हैं, अतः एक साड़ी धारण करते हुए लंगोटी मात्र अल्पपरिग्रह धारक ऐलक के द्वारा पूज्य है। १९. त्रिलोक विज्ञान- इसमें तीन लोकों का संक्षिप्त वर्णन है। २०. मानव लोक -मनुष्य जहाँ-जहाँ रहते हैं, उसका यहाँ नियमसार तिलोयपण्णत्ति आदि ग्रंथों के आधार पर वर्णन है। २१. जम्बूद्वीप – मध्यलोक में एक लाख योजन वाला जम्बूद्वीप है, उसका यहाँ संक्षिप्त वर्णन है। २२. अलौकिक गणित - जैन आचार्य अन्य विषयों के साथ गणित शास्त्र के भी अच्छे विद्वान् थे। उन्होंने लौकिक गणित के साथ अलौकिक गणित का भी प्रयोग किया है। उनके अलौकिक गणित की एक झाँकी यहाँ प्रस्तुत की गई है। २३. दशलक्षण धर्म - उत्तम क्षमा, मार्दव, आर्जव, शौच, सत्य, संयम, तप, त्याग, अकिञ्चन्य तथा ब्रह्मचर्य दस धर्म हैं ये भव आताप का निवारण करने में समर्थ हैं । गणिनी आर्यिका ज्ञानमतीजी गद्य रचना के साथ पद्य रचना में प्रवीण हैं। उपर्युक्त दस धर्मों पर इन्होंने पद्यरचना द्वारा अच्छा प्रकाश डाला है। २४. अध्यात्म पीयूष - अध्यात्म पीयूष आ० ज्ञानमतीजी की अध्यात्म रस में सराबोर एक उत्तम कृति है। यह प्रतिदिन पाठ करने वालों के लिए उपयोगी है, इसमें शुद्ध, बुद्ध, निरञ्जन, एकत्वविभक्त परमात्म तत्व का अच्छा वर्णन है। चेतना के प्रवाह को प्रवाहित करने की यह एक सुंदर कृति है। २५. शान्ति भक्ति - आचार्य पूज्यपाद की दशभक्तियों में शांति-भक्ति विशिष्ट है। इसका पाठ करने से अनेक प्रकार की शारीरिक और मानसिक बाधाएं शांत होती है। यह मूल संस्कृत में है। इसका पद्यानुवाद कर संस्कृत नहीं जानने वाले पाठकों के ऊपर श्रद्धेय आर्थिका ज्ञानमतीजी ने परम उपकार किया है। - वीर ज्ञानोदय ग्रन्थमाला ग्रंथ के अंत में रचनाकर्त्री आर्यिका माता ज्ञानमतीजी ने अपना संक्षिप्त परिचय पद्य रूप में दिया है। आर्यिका श्री का व्यक्तित्व इस परिचय की अपेक्षा बहुत महान् है। ज्ञानामृत ग्रंथ की रचना उनके निरंतर स्वाध्याय और ज्ञानगरिमा का सुफल है। इसके स्वाध्याय करने से जैन तत्त्वज्ञान का सामान्य और विशिष्ट परिचय प्राप्त किया जा सकता है। पूज्य माताजी ने जिन विषयों का चुनाव किया है, उनमें से एक-एक पर अच्छी चर्चा हो सकती है। इस विषयों पर शिविर में व्याख्यान किए जा सकते हैं। दैनिक स्वाध्याय करने वालों को इसके स्वाध्याय से कुछ नूतन बातें ज्ञात हो सकती हैं, इस प्रकार यह ग्रंथ अत्यंत लाभप्रद है। यद्यपि इसकी रचना पूर्वाचार्यों की कृतियों के आधार पर की गई है, तथापि माताजी के विश्लेषण और प्रस्तुतीकरण की शैली से यह उनकी स्वतंत्र कृति प्रतीत होती है माताजी की प्रतिपादन शैली विशद और सुबोध है इस प्रकार यह एक उत्तम कृति है। 1 सामायिक एवं श्रावक प्रतिक्रमण सामायिक प्रतिक्रण Jain Educationa International संस्थान समीक्षिका न. कु. आस्था शास्त्री ( संघस्थ गणिनी आर्यिका श्री ज्ञानमती माताजी) आचार्य श्री कुंदकुंददेव ने रयणसार गाथा नं. १० में श्रावकों का मुख्य कर्तव्य दान और पूजा लिखा है "दाणं पूया मुक्खं, सावयधम्मे ण सावया तेण विणा । ज्ञानाज्झययं मुक्खे, जइ धम्मे तं विणा तहा सोवि ॥" आचार्य श्री पद्मनन्दि ने छह आवश्यक क्रियायें बताई है— देवपूजा, गुरूपास्ति, स्वाध्याय, तप और दान आर्यग्रंथ जयधवला, आदिपुराण आदि ग्रंथों में भी श्रावकों के ४ कर्तव्य माने हैं—दान, पूजा, शील और उपवास । प्रस्तुत पुस्तक "सामायिक एवं श्रावक प्रतिक्रमण" में पूज्य माताजी ने श्रावकों की आवश्यक क्रियाओं को बतलाते हुए श्रावक प्रतिक्रमण पाठ दिया है। श्रावकों के बारह व्रतों में "सामायिक" पहला शिक्षावत है और ग्यारह प्रतिमाओं में "सामायिक" तृतीय प्रतिमा का नाम है। " श्रावक प्रतिक्रमण" पू. माताजी ने "क्रियाकलाप" ग्रंथ से लिया है। मुनिप्रतिक्रमण के समान ही इसमें सिद्धभक्ति, प्रतिक्रमण भक्ति के "निषीधिका दंडक" वीरभक्ति, चौबीस तीर्थंकर भक्ति और समाधि भक्ति हैं। किए गए दोषों का प्रायश्चित करना For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012075
Book TitleAryikaratna Gyanmati Abhivandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages822
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size26 MB
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