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________________ २२] वीर ज्ञानोदय ग्रन्थमाला "अभीक्ष्ण ज्ञानोपयोगी" - स्वस्ति श्रीलक्ष्मीसेन भट्टारक पट्टाचार्य महास्वामीजी कोल्हापुर [ महाराष्ट्र ] ज्ञानमती माताजी ने अपनी धर्ममय जीवन साधना से हस्तिनापुर की भूमि आलोकित कर रखी है। आपकी धर्मश्रद्धा, निष्ठा, लगन ने एक चमत्कार ही कर दिखाया है। जैन परंपरा के कठोर तप, विशुद्ध आचरण के द्वारा आपने जैन समाज की त्यागी-परंपरा को संबल प्राप्त करा दिया है। अविरल प्रयत्नों से आपने हस्तिनापुर का धर्म वैभव पुनः प्राप्त करा दिया है। ____ आपने अपने जीवन में करुणा की, सद्भावना की और धर्म मांगल्य की उच्चतम साधना कर धर्म-मार्ग को प्रशस्त किया है। भगवान महावीर के "जैनं जयतु शासनम्" का उद्घोष दशदिशाओं में सुप्रचारित किया है। अनेक आगम ग्रंथों का अनुवाद कर उन्हें प्रकाशित किया। यह आपकी आगम सेवा अटूट धर्मश्रद्धा का परिचय कराती है। आपने अपनी साधना से, आराधना से और मांगल्यपूर्ण कर्म-कर्तृत्व भाव से इस भव को समुन्नत किया है। इस जीवन में इतनी बड़ी साधना करना बहुत ही कठिन कार्य है। फिर भी आत्मवीर्य के द्वारा आपने धर्म, समाज और साहित्य की जो सेवायें की हैं, वे निश्चित ही मोक्षमार्ग को अधिक प्रशस्त करती हैं। आपका जीवन अधिकाधिक धर्ममय, साधनामय और स्व-पर कल्याणमय होवे ऐसी धर्ममय भावना से इस भावांजलि को स्वीकार करें। सुज्ञेषु किमधिकम्। वर्धतां जिनशासनम् । इति भद्रं भूयात् । चिन्तनशील साधिका -श्री चारुकीर्ति भट्टारक स्वामीजी श्रवणबेलगोला आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती माताजी का अभिवंदन ग्रंथ प्रकाशित हो रहा है सुनकर सन्तोष हुआ। आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती माताजी सुप्रसिद्ध लेखिका एवं चिन्तनशील साधिका है। आपके व्यक्तित्व में सरलता के साथ सहृदयता के दर्शन होते हैं। हिन्दी, संस्कृत एवं कन्नड़ भाषाओं में आपने अनेक कृतियों की रचना की है। आपकी रचना में स्पष्टवादिता, निर्भीकता और ओजस्विता स्पष्ट झलकती है। जम्बूद्वीप की रचना और कमल मंदिर के निर्माण द्वारा आपने नये इतिहास का निर्माण किया है। आपने कवित्व के द्वारा अनेक पूजा साहित्य का सृजन किया है। इन्द्रध्वज विधान, सर्वतोभद्र, कल्पद्रुम आदि प्राचीन पूजा विधानों को नया आयाम दिया है। आपने सम्यग्ज्ञान पत्रिका के द्वारा चारों अनुयोगों का प्रचार-प्रसार कर उल्लेखनीय प्रभावना की है। प्राचीन काल की आर्यिकाओं द्वारा ग्रन्थ रचना नहीं मिलती है, लेकिन वर्तमान काल में आपने अपने सुयोग्य ग्रंथ संपादन एवं स्वतंत्र मौलिक रचना के द्वारा आर्यिकाओं की प्रतिभा शक्ति का प्रदर्शन कर उनकी प्रतिष्ठा बढ़ाई है। इस अवसर पर हम उन्हें हार्दिक अभिवंदन करते हुए विनयांजलि समर्पित करते हैं। Jain Educationa international For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012075
Book TitleAryikaratna Gyanmati Abhivandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages822
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size26 MB
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