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________________ गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती अभिवन्दन ग्रन्थ जो जन-सामान्य अपने किन्हीं व्यक्तिगत कारणों से आपके साक्षात् दर्शन नहीं कर सके वे आपके साहित्य को पढ़कर, आपकी लिखी पूजाओं को पढ़-सुनकर आपके परोक्ष दर्शनों का आनंद तो प्राप्त कर ही लेते हैं। संपूर्ण भारतवर्ष की जैन समाज का बच्चा-बच्चा आपके भक्ति रस में निमग्न हो रहा है। यदि यह कहा जाय कि पूजा भक्ति के क्षेत्र में "ज्ञानमती लहर" चल रही है तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। सैकड़ों वर्षों में इतने विधान नहीं हुए होंगे जितने विगत १५ वर्षों में हुए हैं व वर्तमान में हो रहे हैं। वर्ष के १२ महीने जिधर देखो उधर कहीं इन्द्रध्वज विधान, कहीं कल्पद्रुम विधान, तो कहीं सर्वतोभद्र विधान । कर्नाटक प्रदेश के सांगली नगर में सम्पन्न हुए कल्पद्रुम विधान में १५०० स्त्री-पुरुष पूजा में बैठे थे। श्रोता व दर्शक तो अनगिनत थे। इससे पहले इतनी बड़ी संख्या में विधान पूजन करने कहीं लोग बैठे हों सुनने या पढ़ने में नहीं आया। यह सब कुछ माताजी की लेखनी का जादू है। जहाँ-जहाँ भी माताजी के लिखे विधान हो रहे हैं वहाँ के नर-नारियों से यही सुनने में आता है कि "हमारे यहाँ इतना बड़ा भव्य आयोजन पहली बार हुआ है इससे पहले इतना बड़ा पूजा का कार्यक्रम कभी नहीं हुआ और न ही कभी इतना आनंद आया। माताजी द्वारा किये गये ऐसे कौन से कार्य हैं जो अभूतपूर्व न हों। जम्बूद्वीप रचना ने तो सारे विश्व में धूम मचा दी है। क्या जैन क्या जैनेतर सभी भागे चले आते हैं हस्तिनापुर, उस भव्य मनोहारी जम्बूद्वीप रचना का दर्शन करने के लिए जो अन्यत्र दुर्लभ है। दर्शन करने के पश्चात् दर्शक के पास शब्द नहीं मिल पाते प्रशंसा करने के लिए। प्रशंसा करते-करते दर्शकों का जी नहीं भर पाता। अंत में यह कहकर अति आनंद की अनुभूति करते हैं कि माताजी ने तो स्वर्ग ही बना दिया। जम्बूद्वीप स्थल पर बना हुआ कमल मंदिर भारतवर्ष के हजारों जैन मंदिरों में अपने प्रकार का एकमात्र है। धातु की बनी चौबीस तीर्थंकर सहित विशाल ह्रीं की प्रतिमा भी अपने आपमें एक ही है आगे भले ही अन्यत्र इसकी प्रतिकृतियाँ बन जावें। पूज्य श्री ज्ञानमती माताजी को यदि हम संक्षेप में जानना चाहते हैं तो हम कह सकते हैं कि संघर्ष एवं दृढ़ता का नाम ज्ञानमती माताजी है। माताजी ने गृह त्याग से लेकर आज तक जितने भी कार्य किये हैं उनके विरोध भी हुए, संघर्ष भी आये, किन्तु प्रत्येक कार्यों में सत्यता का पुट होने से दृढ़तापूर्वक उनका सामना किया, फलस्वरूप कोई भी कार्य ऐसा नहीं रहा जिसकी पूर्णता न हुई या सफलता प्राप्त न की हो। प्रत्येक कार्यों में यश प्राप्त किया। माताजी द्वारा किये गये प्रत्येक कार्यों के प्रारंभ में पहले तो लोगों को विश्वास नहीं हो पाता है कि यह कार्य हो भी जावेगा, किन्तु बाद में कार्य की पूर्णता व सफलता को देखकर वे लोग स्वयं आकर नतमस्तक होकर माताजी की प्रशंसा करते नहीं अघाते। लगता है यह क्रम शायद आगे भी चलता रहेगा और सफलता माताजी के चरण चूमती रहेगी। पूज्य माताजी के विषय में थोड़े में संस्मरण लिखना मुझ जैसे के लिए अति कठिन कार्य है। सन् १९६७ से १९९२ तक २५ वर्ष का एक लम्बा काल है, जिसमें पूज्य माताजी के संपूर्ण क्रिया-कलापों को देखने का एवं उनमें संलग्न रहने का अवसर प्राप्त हुआ। वैसे तो माताजी ने अनेक विषयों का उल्लेख उनके द्वारा लिखे गये वृहत् कार्य ग्रंथ "मेरी स्मृतियाँ" में किया है। फिर भी माताजी के विषय में मेरा अपना जो अनुभव रहा है उसे लिखना मैं अपना पुनीत कर्त्तव्य समझता हूँ। बात है १९६७ में फरवरी में श्रवणबेलगोल में सम्पन्न हुए भगवान बाहुबली महामस्तकाभिषेक महोत्सव के अवसर की। महामस्तकाभिषेक के अवसर पर मैं भी मस्तकाभिषेक देखने व करने उस समय वहाँ गया था। वहां कुछ साधुओं ने बातचीत के मध्य बताया कि तुम्हारे उधर इस समय ज्ञानमती माता ससंघ पहुँची हुई हैं, वे बहुत विद्वान् हैं तथा उनके प्रवचन भी ओजस्वी होते हैं उन्हें सनावद रोकना तथा चातुर्मास करने के लिए भी आग्रह करना। उनसे समाज के बच्चे-बच्चे को ज्ञान का लाभ मिलेगा। वे इस समय बड़वानी में विराजमान हैं। इस चर्चा ने मेरे मन में व्याकुलता पैदा कर दी। क्योंकि अभिषेक देखने के पश्चात् दक्षिण के तीथों के दर्शन की भावना भी थी और मन में यह भी उथल-पुथल मची हुई थी कि कहीं ऐसा न हो कि “मेरे घर पहुंचने से पहले ज्ञानमती माताजी सनावद होकर आगे निकल जावें, अतः मैंने श्रवणबेलगोल से अपने मित्रों को पत्र दे दिया कि "ज्ञानमती माताजी मेरे पहुंचने से पहले यदि सनावद आ जावें तो उन्हें आग्रहपूर्वक निवेदन करके कुछ दिन रोककर खूब प्रवचन कराना।" दक्षिण भारत के तीर्थों की यात्रा करके मैं जब वापस सनावद लौटा तो ज्ञात हुआ कि अभी माताजी बड़वानी की तरफ ही हैं इधर नहीं आयी हैं। कुछ दिनों बाद सूचना मिली कि ज्ञानमती माताजी ससंघ बैड़ियां (सनावद से १५ कि.मी. दूर) पधार चुकी हैं। तभी मैंने अपने एक मित्र श्री देवेन्द्र कुमार शाह को बैड़ियाँ जाकर मालूम करने के लिए कहा कि माताजी के संघ का किस दिन सनावद शुभागमन होगा। उन्होंने आकर बताया कि महावीर जयंती के अगले दिन वहाँ से प्रस्थान करेंगी। सनावद के समस्त जैन समाज को यह जानकारी दी गई। चैत्र शुक्ला पूर्णिमा के दिन प्रातःकाल की मंगल बेला में सैकड़ों नर-नारी-आबाल-गोपाल आर्यिका संघ की अगवानी के लिए बैंड बाजों के साथ नगर से २ कि.मी. दूर पहुँच गये। निकटस्थ ग्राम बडूद में रात्रि विश्राम के पश्चात् अत्यंत उल्लास पूर्ण वातावरण में सनावद नगर में संघ का आगमन हुआ। Jain Educationa international For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012075
Book TitleAryikaratna Gyanmati Abhivandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages822
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size26 MB
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