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________________ १८] वीर ज्ञानोदय ग्रन्थमाला संस्मरण - पीठाधीश क्षुल्लक श्री मोतीसागरजी दिगम्बर जैन परम्परा में भगवान ऋषभदेव से महावीर स्वामी पर्यंत तथा महावीर स्वामी के पश्चात् आज तक अनगिनत मुनि आर्यिकाएं हुए हैं जिनसे धर्मरूपी गंगा अविरलरूप से प्रवाहित हो रही है जिसमें असंख्य नर-नारी व पशु-पक्षी तक भी अवगाहन करके पुनीत हुए हैं तथा हो रहे हैं। उसी गंगा की एक धारा के रूप में परम पूज्य गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती माताजी भी हैं जिनके ज्ञान व संयम रूपी पवित्र शीतल जल का पान करके अनेकों भव्य प्राणी सुख-शांति प्राप्त कर रहे हैं। ज्ञानमती माताजी का व्यक्तित्व एवं कृतित्व अलौकिक है। बहुआयामी व्यक्तित्व की धनी माताजी में ऐसे कौन से गुण हैं जो उनमें समाहित न हुए हों। सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान एवं सम्यक्चारित्र की साक्षात् प्रतिमूर्ति हैं। बाल्यकाल से ही जिन्होंने जैन समाज में प्रचलित मिथ्यात्वों का घोर विरोध करके सच्चे जिनधर्म के प्रति प्रगाढ़ श्रद्धान का परिचय प्रदान किया। धर्म के नाम पर की जाने वाली मिथ्या क्रियाओं का विरोध अपने घर से प्रारंभ किया। उन्होंने लघु भ्राता प्रकाशचंद को भयंकर चेचक होने पर भी माता की पूजा न करने देकर जिन प्रतिमा का गंधोदक लगाकर स्वस्थ कर दिया। “दुबले-पतले शरीर वाली छोटी उम्र की कुंवारी बालिका दीक्षा धारण नहीं कर सकती", बाराबंकी (उ.प्र.) में विराजमान आचार्य श्री देशभूषणजी महाराज के समक्ष उपस्थित हजारों नर-नारियों की इस बात को भी नकार कर जिन्होंने संयम को धारण कर संसार के लोगों को दिखा दिया कि बाराबंकी व परिवार के लोगों की वह भ्रांत धारणा थी। स्त्री पर्यायोचित उत्कृष्ट चारित्र के रूप में आर्यिका के व्रतों का निर्दोष पालन करते हुए विगत ४० वर्षों से सम्यक्चारित्र की ध्वजा दिग्दिगंत व्यापी लहरा रही हैं।। माताजी के सम्यग्ज्ञान के बारे में लिखना सूर्य को दीपक दिखाना है। ज्ञान का चमत्कार तो तभी से देखने को मिल रहा है जब जयपुर (राज.) में कातंत्र व्याकरण मात्र दो माह में पढ़कर तभी कंठस्थ कर ली। जिसे आज का विद्यार्थी ४ वर्ष में पढ़कर भी हृदयंगम नहीं कर पाता। माताजी के ज्ञानार्जन की कहानी भी बड़ी विचित्र है। सामान्य रूप से शिष्य गुरुओं से पढ़कर ज्ञान प्राप्त करते हैं, किन्तु माताजी ने शिष्यों को पढ़ाकर अपने ज्ञान का भंडार भरा। बड़े से बड़े ग्रंथ भी माताजी ने बिना पूर्व में पढ़े शिष्यों को पढ़ा दिये। ज्ञान के क्षेत्र में तो माताजी ने कीर्तिमान स्थापित कर दिया। ऐसी प्रतिभाशक्ति तो करोड़ों व्यक्तियों में से किन्हीं एक को प्राप्त होती है। मेरे देखने में वर्तमान जैन जगत् के किन्हीं भी साधु-साध्वी या श्रावक-श्राविका में देखने में नहीं आई कि जिनमें संपूर्ण विशेषताएं एक साथ प्रतिबिंबित हो रही हों-वक्तृत्व कला, गद्य-पद्य लेखन कला, चारों अनुयोगों का तलस्पर्शी ज्ञान, वास्तु कला के रूप में जम्बूद्वीप रचना, कमल मंदिर, ह्रीं में चौबीसी, कल्पवृक्ष द्वार, ध्यान केन्द्र, इन्द्रध्वज मंदिर आदि अद्वितीय निर्माण कार्यों की प्रेरणा, शिष्यों का संग्रह अनुग्रह निग्रह इत्यादि । जैन इतिहास में बीसवीं सदी की सर्वाधिक विशिष्ट उपलब्धि है महिला द्वारा ग्रंथों का निर्माण और वह भी एक-दो-चार नहीं, डेढ़ सौ से अधिक। पूज्य माताजी के संपर्क व सानिध्य में देश की बड़ी से बड़ी हस्तियां आईं। चाहे धार्मिक क्षेत्र हो, सामाजिक क्षेत्र हो या राजनैतिक । चा.च. आचार्य श्री शांतिसागरजी दक्षिण व उनकी परम्परा के पांच पट्टाधीश आचार्य- आचार्य श्री वीरसागरजी, आचार्य श्री शिवसागरजी तथा धर्मसागरजी का सानिध्य प्राप्त किया। आचार्य श्री अजितसागरजी को मुनि बनने की उत्कट प्रेरणा तो आपसे ही प्राप्त हुई। अब वर्तमान के षष्ठम पट्टाचार्य श्री अभिनंदनसागरजी महाराज ने भी आपके सामने ही मुनि दीक्षा धारण कर कुछ दिन आपसे ज्ञानार्जन भी किया। सामाजिक क्षेत्र में चाहे बड़े से बड़े विद्वान् हों या श्रेष्ठी सभी ने केवल आपके दर्शनों का ही नहीं, अपितु आपसे चर्चा व मार्ग-दर्शन का लाभ भी लिया है। विगत चालीस वर्षों में भारत के किसी भी कोने में रहने वाले व किसी भी भाषा के बोलने वाले शायद ही कोई विद्वान् ऐसे रहे हों जिन्होंने आपका आशीर्वाद प्राप्त न किया हो। ख्याति प्राप्त कोई भी श्रेष्ठी या कार्यकर्ता एक नहीं अनेक बार आपके पास आते रहे हैं तथा आपसे आशीर्वाद व मार्ग-दर्शन प्राप्त करते रहे हैं। आपसे भारत के तीन-तीन प्रधानमंत्रियों ने आशीर्वाद प्राप्त किया-श्रीमती इन्दिरा गाँधी, श्री राजीव गाँधी एवं श्री पी.वी. नरसिंह राव। उ.प्र. के मुख्यमंत्री श्री नारायण दत्त तिवारी एवं श्री कल्याणसिंह के अतिरिक्त अनेक प्रादेशिक मंत्री तथा स्व. श्री ए.पी. शर्मा, श्री ब्रह्मदत्त, श्री प्रकाशचंद सेठी, श्री माधवराव सिंधिया, श्री चौधरी अजितसिंह आदि केन्द्रीय मंत्रियों, राज्यपाल आदि ने भी आपके पास आकर आशीर्वाद व प्रेरणाएं प्राप्त की हैं। सांसद एवं विधायक तो जब-तब आपके पास आते ही रहते हैं। वर्तमान के दिगम्बर मुनि-आर्यिकाओं को यथोचित सम्मान न देने वाले कांजी स्वामी भी दिगंबर जैन मंदिर राजा बाजार दिल्ली में आपके पास आये व चर्चा की। श्वेताम्बर सम्प्रदाय के तीनों पंथों के आचार्य साधु-साध्वियों ने भी आपसे बड़े वात्सल्य से चर्चा परामर्श किये। Jain Educationa international For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012075
Book TitleAryikaratna Gyanmati Abhivandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages822
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size26 MB
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