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गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती अभिवन्दन ग्रन्थ
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निकटमोक्षगामी
-क्षुल्लक- श्री शीतलसागरजी महाराज (आ. श्री महावीरकीर्ति महाराज के शिष्य)
गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती माताजी के विषय में अभिनंदन ग्रंथ तैयार होने की जो योजना बनी है, उसे जान कर हर्ष ही नहीं, महान् हर्ष हुआ। आप जैसे धर्म-प्रभावक एवं धर्म-प्राण व्यक्तियों से ही महान् कार्य संभव होते हैं।
आर्यिका ज्ञानमतीजी के विषय में क्या लिखें? जो कुछ लिखा जायेगा, वह अत्यल्प एवं सूर्य को दीपक दिखाना ही होगा। उन्होंने धर्मप्रभावना से सराबोर होकर एक तो जो जम्बूद्वीप की रचना कराई, वह आचन्द्र दिवाकर स्वयं के साथ जैन धर्म को प्रद्योतित करती रहेगी एवं अनेक बालयुवक तथा युवतियों को, जो जैनेश्वरी दीक्षा के मार्ग में लगाया, उसे कोई भी भव्यात्मा सहस्रों युगों तक भुला नहीं सकता। हमारा उन्हें सविनय वंदामि, हमारी आत्मा तो यह साक्षी देती है कि वे आगामी निकट भवों में शीघ्र ही तीर्थकर होकर मोक्ष प्राप्त करेंगी।
सादर वंदनीय क्यों ?
- क्षुल्लक श्री चितसागरजी शिष्य स्व. आचार्य श्री अजितसागर महाराज
क्योंकि आप, लड़की रूप में जन्म लेकर बड़ा पुरुषार्थ प्रकट करके आर्यिका पदधारिणी बन गयी हैं। आपने, धर्म-मार्ग को प्रशस्त करनेके लिये अनेक श्रावक, श्राविकाओं को तथा नये व्रती-त्यागियों को प्रेरणा, प्रोत्साहन देकर
मुक्तिमार्ग में लगाया है। आपने, स्वयं को पूर्ण शिक्षित किया और बाद में अनेक शिष्य-शिष्याओं को स्वहितार्थ, शिक्षित बनाया। आपने, बाल, युवा, वृद्ध, अवती, व्रती, विद्वानादि के लिए उपयोगी साहित्य का सृजन किया। आपने, सम्यक्दर्शन के कारणरूप भक्ति-मार्ग को वृद्धिंगत करने के लिए कई जिनपूजाएँ तथा कई विधान-ग्रंथों की रचना की। आपने, जम्बूद्वीपादि की रचना द्वारा जैन भूगोल को मूर्तिमंत बनाया और एक नया आश्चर्य, अबोध तथा अज्ञानी जनता के
समक्ष प्रस्तुत किया।
ज्ञानज्योति का समग्र भारत में भ्रमण करवाकर अहिंसा, अपरिग्रह और अनेकांत का प्रचार करवाया। आपने, सम्यक्ज्ञान-मासिक द्वारा चारों अनुयोगों की कथनी लाखों जैन जनता को सुनाई। आपने, देव पूजा का माहात्म्य सर्वत्र प्रकट करने के लिये हस्तिनापुर में ही पांच पंचकल्याणक प्रतिष्ठायें करवाई। आपने, स्वयं महाव्रतों जैसे व्रतादि का पालन करती हैं, आपने भौतिकवाद को परास्त करने के लिए और विलीन हो रही पंडित
परंपरा को पल्लवित करने के लिए "वीरसागर विद्यापीठ" की स्थापना कराई है। आपने, शारीरिक अस्वस्थता होते हुए, बिना चंदा-चिट्ठा किये भारत के क्षेत्रों की हजारों कि०मी० की पदयात्रा की।
ऐसे अनेक अद्वितीय, अनुपम और आदरणीय धर्मप्रचारक, प्रेमवर्द्धक और प्रभावनापूर्ण कार्य किये हैं; अतः हमारा शत-शत वंदन है, नमन है, नमस्कार है।
आपने,
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