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________________ गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती अभिवन्दन ग्रन्थ [३४१ गणिनी आर्यिकाश्री की पवित्र जन्मस्थली गौरवशाली टिकैतनगर - लालचंद जैन, टिकैतनगर "जिसको न दे मौला, उसको दे आसिफुद्दौला" जन श्रुति आज भी जनमानस में गूंजती है। अवध के हर दिल अजीज नवाब आसिफुद्दौला के शासन काल अठारहवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में अनेक ऐतिहासिक सुविख्यात इमारतें निर्मित की गई। लखनऊ का इमामबाड़ा आज भी नवाब की वास्तुकलाविद् स्मृति को संजोये हुए है। नवाब के मंत्री झाऊलाल जिन्हें जनता "राजा दहीगांव" कहकर संबोधित करती थी, सुयोग्य प्रशासक थे। नवाब के आला वजीर राजा टिकैतराय नवाब की इच्छानुसार अनेक कूपों, बावड़ियों, पुलों, राज-पथों का निर्माण कराते रहते थे। प्रजा इन्हें सदैव श्रद्धा और सम्मान देती थी। कतिपय विद्वेषियों ने नवाब साहब के कान भरे। हुजूर ! राजा साहब केवल हिन्दू कुएँ, पुल आदि बनवाते हैं, मुसलमान उपेक्षित हैं। इन्हें रोका जाये। कान के कच्चे नवाब ने सभी निर्माण कार्य तुरंत बंद करने का आदेश दे दिया। राजा साहब वस्तुस्थिति समझकर शांत रहे। तभी कुछ दिनों बाद नवाब साहब अपने परिकर के साथ रियासत भ्रमण के लिए निकले। आगे बढ़ते मार्ग में एक गहरे चौड़े नाले ने उनके लाव-लश्कर के बढ़ते कदम रोक दिये। नवाब ने अविलम्ब राजा साहब को पुल निर्माण कराने की आज्ञा दी। राजा साहब ने विनम्र निवेदन किया जहाँपनाह ! पुल मुसलमान बनाया जाय या हिन्दू? नवाब बौखलाए, क्या पुल भी हिन्दू-मुसलमान होते हैं? हुजूर आपका फरमान है। नवाब ने अपनी भूल का परिमार्जन किया और राजा टिकैतराय को बे-रोकटोक निर्माण कराते रहने का निर्देश दिया। फलस्वरूप राजासाहब ने बहुत कार्य किया। लखनऊ में टिकैतराय का तालाब, लखनऊ के पास ही टिकैतगंज और बाराबंकी जनपद में टिकैतनगर का निर्माण उनकी कीर्ति पताका दिग्दिगन्त में फहरा रही है। उन्होंने अपना विशेष ध्यान टिकैतनगर पर केन्द्रित किया था। इसकी रचना बड़ी कुशलतापूर्वक कराई गई थी। नगर के चारों ओर तीन हाथ चौड़ी लखौड़ी ईंटों की बाउन्डरीवाल की चूने से जुड़ाई की गई थी। मुख्य चौक सुन्दर पक्का राजपथ चारों दिशाओं में एक-एक उपचौक, आगे चारों ओर मुख्य मार्गों के प्रवेश द्वारों पर एक बुलन्द दरवाजा, दो छोटे दरवाजे जिनमें लकड़ी के मजबूत किवाड़ बाहर कांटों उभरे लगे, ऊपर नौबतखाना, ऊँची बुर्जियाँ, कंगूरे, ताखे बनाए गए थे। रात्रि में किवाड़ बन्द किए जाते थे। बाउंडरीवाल से लगे हुए चारों और निर्मल जल से भरे हुए गहरे सरोवर जिनमें कमल, कोकावेली खिले, पक्षी कलरव करते रहते थे। जिनके भग्नावशेष अभी भी सुरक्षित है। नगर को चार बार्डों में विभक्त किया गया था जिसमें प्रमुख है-सरावगीबार्ड। राजा साहब ने नगर के अन्दर केवल वैश्य वर्ण को सम्मान सहित बसाया था। गाँव के बाहर चारों ओर तत्कालीन शूद्रों की बस्ती बसाई थी। वेश्याओं को नहीं आमंत्रित किया था। टिकैतनगर से लगभग एक किलोमीटर दूर कस्बा ग्राम में लखनऊ के बड़े इमामबाड़े में बनी एशिया की सबसे बड़ी बिना एक इंच लोहा सीमेन्ट और बीच में खम्भों के बगैर लम्बी-चौड़ी छत के साथ प्रसिद्ध भूल-भूलैया की अनुकृति के समान छोटी भूलभुलैया बनाई और एक पक्के सरोवर का निर्माण कराया जिसमें कुओं से जल भरवाया गया था। राजा साहब को यह स्थान परम प्रिय था। वह जब भी टिकैतनगर आते, अपना अधिकांश समय वहीं व्यतीत करते थे। जन श्रुति है एक दिन संध्याकाल में राजा साहब वहाँ विश्राम कर रहे थे, उनके दरबारी जुड़े थे, चर्चाएं चल रही थीं एक अलमस्त फकीर विचरण करता आया, निर्भय हो सरोवर की सीढ़ियों से जल तक उतरा। हाथ-पैर-मुँह धोए, कुल्ली की और पानी पिया। राजासाहब एक टक खिन्न मन से देखते रहे और उनके धैर्य का बाँध टूट गया। जब फकीर ने गांठ खोली कुछ हरी पत्तियाँ निकाली और उन्हें सरोवर में धोने लगा। राजा के इशारे से एक दरबारी ने फकीर को जल के दुरुपयोग करने से रोका । मलंग फकीर राजा तक आया, सहास्य बोला, यदि पथिकों को सरोवर के जल को उनके उपयोग में नहीं लेने देना है तो यह सार्वजनिक जलाशय बनाने का दंभ क्यों किया राजन् ? पथिक- नाराज न हो। यहाँ अनेक तालाब हैं। मैंने इसे बड़ी लगन से बनवाया है, मेरी आत्मीयता इससे जुड़ी हुई है। जल खूब पियो, किन्तु इसमें गन्दगी न करो। यह गाँजा-भाँग न धोओ, राजा बोले। इतना विशाल जल भण्डार-मुट्ठी भर गांजा-भाँग यदि धो भी लिया तो क्या अन्तर आयेगा ? दरवेश ने तर्क किया। राजा को कोई युक्ति संगत उत्तर नहीं सूझा, बोल गए- मुझे भय है कि कहीं इसका स्वच्छ धवल जल हरित न हो जावे? एवमस्तु- तुम्हारी भावना फलीभूत हो। संत ने एक चुटकी धूल उठाकर तालाब में फेंकी और जलाशय हरा हो गया। विस्मित-भय मिश्रित सकम्प राजा अपनी मसहरी से उठे और निहंग के चरणों में लोट गए। करबद्ध क्षमा माँगी। मान, अपमान में समभाव रखने वाले वह साधू, द्रवित हो गया। बोला-वत्स ! माँग ले जो भी चाहे, इस समय वरदान माँग ले। मैं अवध की सल्तनत का आला वजीर हैं, नवाब का समस्त कोष मेरे इशारे पर व्यय होता है, मुझे कोई अभाव नहीं है। भगवन् ! हाँ, आप जो भी इच्छा करें आपके चरणों में अर्पण कर दूंगा। सदर्प राजा बोले। साधू का वचन खाली नहीं जाता; हठ मत कर, ले ले अन्यथा पछतायेगा। मैं चला। और वह निलोभी गीत गुनगुनाता चलने को उद्यत हुआ। राजा ने पैर नहीं छोड़े, अनुनय कर कहा, प्रभो! आप जल हाथ में लेकर संकल्प कर वरदान देवें तभी मैं ले सकूँगा। फकीर ने बात मान ली। घुटने टेककर बैठे राजा ने जिज्ञासा प्रकट Jain Educationa international For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012075
Book TitleAryikaratna Gyanmati Abhivandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages822
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size26 MB
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