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वीर ज्ञानोदय ग्रन्थमाला
की महात्मन् जो भी जन्म लेता है उसका मरण अनिवार्य है। मैंने टिकैतनगर के सृजन में अपना हृदय उड़ेल दिया है। मेरी अन्तरात्मा से इसका लगाव है, आज एक यह समृद्ध नगर है इसकी उन्नति कब तक अक्षुण्ण रहेगी ? डेढ़ सौ वर्ष (१५० वर्ष) फकीर बोला। राजा उदास हो गये। कहा अब वरदान स्वामिन् दे देवे- मुझे कोई सन्तान नहीं होवे, एवमत्सु- ऐसा ही होगा। वर देकर वह बोला, पुत्र के लिए लोग कितनी मनौतियाँ, जप-तप, औषधि एवम् अनेक उपाय करते हैं। तुमने विपरीत क्यों किया? महात्मन् मैंने सदैव स्वार्थरहित जन कल्याण के कार्यों में अपना जीवन लगाया है। सुकीर्ति प्राप्त की है। सम्भव है मेरे वंशजों में कोई अपनी कुप्रवृत्तियों से समाज विरोधी कुकर्म करे तो जनमानस उसे मेरे नाम वंश से जोड़ेगा। यह अपयश मेरी स्वर्गस्थ आत्मा सहन न कर पायेगी, अशान्त बनी रहेगी। वंशबेल निर्मूल हो जाने से मेरी आशंका निर्मूल हो जावेगी, प्रभु अनुग्रह करें। तथास्तु कहकर फकीर अपनी रहा लगा और इतिहास ने इसे प्रमाणित किया। अब से तीन चार दशक पूर्व तक टिकैतनगर ग्राम जनपद का ही नहीं, पड़ोस के अनेक जनपदों का शिरमौर व्यापारिक केन्द्र बना रहा। पीतल के बर्तन, चांदी-सोने के जेवरात, कपड़ा, गल्ला, तिलहन की प्रसिद्ध मंडी रही है। पड़ोस के ही सत्य नाम पंथ के संस्थापक समर्थ जगजीवन साहब की समाधी कोटवा धाम में बनी हुई है जिनका धागा पहनकर लाखों-लाख उनके अनुयायी आज भी मांस, मदिरा से सर्वदा दूर रहते हैं।
महाभारत काल में पांडवों ने अज्ञातवास का अधिकांश समय टिकैतनगर के समीप ही बिताया कहा जाता है कि कुन्तेश्वर महादेव का प्रसिद्ध मंदिर किन्तूर में बनाया है तथा धर्मराज युधिष्ठिर द्वारा रोपित नन्दन वन से लाया गया पारिजात वृक्ष विश्व में अकेला अद्वितीय विशाल प्राचीनतम पेड़ समीप वरौलिया में लगा है। जहाँ देश-विदेश के अनेक वनस्पति विज्ञानी सदैव आते रहते हैं। टाउन एरिया कमेटी टिकैतनगर ग्राम में है। आज दिगंबर जैन अग्रवाल समाज के ७५ परिवार हैं। एक विशाल अप्रतिम जिन मन्दिरजी, चार गृहचैत्यालय हैं। मुख्य मंदिर में मूलनायक सातिशय पार्श्वप्रभु जी, कृष्णवर्णी नेमिनाथ, बाहुबली जी के साथ शताधिक जिन प्रतिमाएँ हैं। यंत्रजी, पद्मावती क्षेत्रपालजी विराजमान हैं। स्फटिकमणि की १२ इंची अवगाहना की दुर्लभ प्रतिमा यहाँ बेजोड़ है। श्री जैन अकलंक सरस्वती भवन में हस्तलिखित अनेकों ग्रंथ तथा प्रकाशित जैन वाङ्मय का भंडार है। गणेशवर्णी जैन पुस्तकालय-वाचनालय स्थापित है। श्री पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन पाठशाला, पूज्य आर्यिका रत्नमती बाल विद्या मंदिर, श्री पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन इण्टर कालेज, जैन शिशु सदन (नर्सरी स्कूल) महावीर भवन व शीतल सदन दोनों दुमंजिली धर्मशालाएँ, अखिल भारतीय लगभग सभी जैन संस्थाओं की शाखाएँ स्थापित हैं।
टिकैतनगर को अनेक तपस्वियों की जन्मस्थली होने का गौरव प्राप्त है। जम्बूद्वीप की निर्मात्री श्री १०५ गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमतीजी, आर्यिका श्री १०५ रत्नमतीजी, आ० श्री १०५ अभयमतीजी, आ० श्री १०५ चन्दनामतीजी, आ० श्री १०५ सिद्धमती जी , क्षु० श्री १०५ विवेकमतीजी, क्षु० श्री १०५ श्रद्धामतीजी, बाल ब० श्री रवीन्द्र कुमार जैन शास्त्री, बाल ब्र० कु० मालती शास्त्री, बाल ब्र० कु० मञ्जू शास्त्री आदि की जन्म भूमि यही है। समाज के गौरव सर्वश्री पन्नालालजी, जयचंदजी, नेमदासजी, बाबूलालजी, छोटेलालजी, की स्मृतियाँ जनमानस में रची हुई हैं। प्रायः अनेक तीर्थ क्षेत्रों-संस्थाओं के प्रतिनिधि आर्थिक सहायता हेतु यहाँ आते रहते हैं। समाज उदारतापूर्वक उन्हें भरपूर सहयोग देती है। प्रतिदिन शताधिक नर-नारी, युवा जिनेन्द्र की अभिषेक पूजन व्रतादिक करते रहते हैं। श्री १०८ आ० देशभूषणजी ससंघ, श्री १०८ मुनि सुबलसागरजी ससंघ, श्री १०८ आ० विमलसागरजी ससंघ, श्री १०५ आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती माताजी ससंघ, श्री १०८ उपा० सुबाहुसागरजी ससंघ, भट्टारक श्री देवेन्द्रकीर्तिजी नागौर एवं अनेक मुनि-आर्यिकाओं का यहाँ सुखद चातुर्मास हो चुका है। यहाँ बराबर श्री सिद्धचक्र विधान, इन्द्रध्वज विधान, शांतिविधान, ऋषि मंडल विधान, कल्पद्रुम मंडल विधान आदि प्रभावनापूर्वक होते रहते हैं। धर्म की अच्छी जागृति है। हमें अपने नगर पर गर्व है।
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