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________________ ३२२] वीर ज्ञानोदय ग्रन्थमाला [ १३ ] वह मोहिनी अतिपुण्यशाली है वह जिस लाली को उत्पन्न करती है, वह कुटुम्ब जनों एवं बन्धुजनों का विकाश करने वाली, धर्म में रत, श्रमण धर्मपरायणा होती है, लाली होते हुए भी पति के गृह के गृहिणी पद की अधिकारिणी अपने स्नेह की लाली फैला देती है। _ [१४] लक्ष्मी की तरह प्रिय यह मोहिनी लक्ष्मीजुत्त/धन-धान्य की वृद्धि का कारण बनती है। शरीर के सौन्दर्य एवं गुणों से कमनीय एवं प्रिय लोक के आनन्द करने में बाल शशि की तरह है, वह शरद ऋतु की पूर्णमासी को एक सुन्दर बालिका को जन्म देती है। [१५ ] वह शरदकाल में जन्म लेने वाली बालिका बालपने से चन्द्रमा की शुभ्र किरणों की शोभा से जनों को आनन्द प्रदान करती है। मानों शास्त्र/सिद्धान्त रूपी ज्ञान के गुण से विभूषित कोई चंद्रिका ही हो। वह सरस्वती की मूर्ति अभिनंदनीय है। [१६] क्या? सम्पूर्ण शास्त्र में कुशल जनों की दृष्टि शरद की चन्द्र कला पर नहीं जाती है? अर्थात् अवश्य जाती है। उसके स्वाभाविक गुण, कीर्ति, सुज्ञान उन्नत ललाट की रेखाएँ निश्चित ही आनन्द को प्रदान करती हैं। [ १७ ] एक से एक सभी नर-नारी, छोटे-बड़े उसके मुख-मण्डल एवं सभी अंगो को देखकर कह उठते हैं कि यह बालिका सुन्दर, मनोज्ञ और मनोहरता को प्राप्त श्रेयस्करा होगी, जो मेवों से और वाणी से मैना है। [१८] वह सभी को आनन्द प्रदान करने वाली, जन जन से प्रशंसनीय बाला बाल होते हुए (बाल बल) अज्ञानता से रहित है एवं प्रवीण है, भक्तियुक्त है। वह क्या महनीय भाव से युक्त निरन्तर लब्ध गुणों में प्रवृत्त फल को नहीं प्रदान करेगी? अर्थात् अवश्य करेगी। [१९] धन्य हैं माता-पिता, धन्य हैं टिकैतनगरवासी, धन्य है, भूमि, और धन्य हैं उत्तर प्रदेशवासी। धन्य है सुकन्या को जन्म देने वाली मोहिनी, वह पीहर भी धन्य है, अतिपुण्य एवं प्रकाशशील है। [२०] जिस तरह वह मोहिनी बहू सम्यक् धर्म को धारण करने वाली है, वह बाला भी उसी तरह की है, माता-पिता को प्यारी है। उसकी दादी सदा ही शशि सादृश बालिका को देखती है यह बालिका सचमुच ही महान् पुण्य के प्रभाव को धारण करने वाली है। [२१ ] बाल सुलभ क्रीड़ा से युक्त लीला पूर्ण गमन करने वाली मनोज्ञ बालिका को सुखानुभूति से युक्त नाना सुखपाल अपने घर में उसको देखकर अपनी प्रिय मोहिनी बालिका से कहते हैं। [२२] हे मोहिनी ! तूने अत्यन्त प्रिय गुणयुक्त कमनीय बालिका को प्राप्त किया है। जैसे पूर्व दिशा के प्रभाव से सूर्य की शोभा होती है, उसी तरह वह बालिका है, जो शोभा को प्राप्त कर रही है, यह सबके लिए किलकारियों से मनोज्ञ बनी हुई है, इसलिए यह मैना है अर्थात् उसके नाना ने उसका नाम मैना रख दिया। [२३] माता की माता उसकी बाल सुलभ प्रिय लीलाओं को जैसे जैसे देखती है, वैसे वैसे वह बालिका आनन्द को प्रदान करती है। हास्य स्वभाव की दीप्ति से मैना सदृश ही वह मैना प्रतिभाषित होती है जैसे गगन/आकाश में चांदनी की तरह घर के आंगन में ज्योत्सना स्वरूप मैना सभी का मन मोहती है। [२४ ] वह मैना बुद्धिशाली, विनीता, मदहीन एवं सुशीला है, सौन्दर्य के लक्षण के गुणों से स्वयं को विभूषित करती है। मानों वह अपने आपकी और अपने कुल की शोभा का कारण बनी हो। वह माता के घर-आंगन और ननिहाल के विशाल क्षेत्र को भी सुशोभित करती है। [२५] इस बाल चन्द्रमा की चन्द्रिका में बालपना देखते ही बनता है। उसकी दृष्टि शास्त्रियों के संपूर्ण शास्त्रों को ग्रहण करने के लिए एवं तत्त्व प्रवीणों की गुरुता ग्रहण कर नित्य ही शास्त्र के आंगन में क्रीड़ा करने भी इच्छा प्रकट करती है। Jain Educationa international For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012075
Book TitleAryikaratna Gyanmati Abhivandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages822
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size26 MB
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