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________________ गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती अभिवन्दन ग्रन्थ [३२१ ज्ञानमति का ज्ञान - डॉ० उदयचन्द जैन [१] तीनों लोकों के समस्त विषयों को, तीनों लोक को हस्तांगुली की त्रय रेखा को स्वयं देखने वाले, राग, दोष, भय, मोह से विमुक्त आत्मा वाले देवाधिदेव अरहंत को मैं सदैव प्रणाम करता हूँ। [२] लोक को प्रकाशित करने वाले अरहंत, महान् सिद्धि को प्रदान करने वाले, सिद्ध, आचार (पंचाचार) से पवित्र एवं ज्योत्स्ना स्वरूप समस्त आचार्य, अध्यापक पद पर स्थित सुपाठक (उपाध्याय) और सभी श्रम साध्य (ज्ञान, ध्यान , तप आदि से युक्त) ज्ञानयुक्त साधुओं के लिए मैं नमन करता हैं। [ ३] ज्ञान-गुण-शक्ति एवं समत्व भाव से नाना गुणों से महनीय विशुद्धता से युक्त वे (ज्ञानमतीजी) भक्ति प्रभाव के रस से युक्त शुद्ध दृष्टि वाली ब्राह्मी और सुन्दरी के गुणों में सदा रत रहती हैं। [ ४ ] वह पृथिवी धन्य है, समस्त नर-नारी भी धन्य हैं, उनसे हम सब भी धन्य हैं, क्योंकि यह पृथिवी धन-धान्य से परिपूर्ण, धन्य है, धन्य है अति धान्य शील भी है। वे मनुष्य भी धन्य हैं, माता ज्ञानमति तो धन्य हैं ही। वह अमृत से परिपूर्ण दिन अति पुण्यशाली है, उसके निर्झर में वह पुण्यशाली और पवित्र (परिवारजन) आनन्द करते हैं। शरदऋतु की पूर्णमासी अति पुण्यशाली है, जो शरदपूर्णिमा जैसे निर्मल सुज्ञानधारी को जन्म देती है। [६] शरद-पूर्णिमा की रात्रि वह चन्द्र भी पूर्ण कान्ति से सोम्य है, जिसमें समस्त लता भाग का समूह परिवेष्ठित है, उसकी छोटी से छोटी किरणे प्रमोद को प्राप्त अच्छे गुणों से युक्त बालिका क्या लोक में शोभा को प्राप्त नहीं होती है? अर्थात् अवश्य होती है। [७] जहाँ पर प्रशान्त, सभी के लिए प्रिय उद्यान हैं, नारी विनय से विनीता है, प्रबुद्धशीला है तथा जहाँ की भूमि गम्भीर, धीर, क्षमा युक्त एवं विस्तार युक्त एवं स्वाभाविक गुण की महनीयता से अतिशयता को प्राप्त है। [८] ऊँचाई से गिरि के समान सुशोभित हो रही है, मानों अपने ऐश्वर्य के गुणों से इन्द्र की महनीयता से तुलना कर रही है। जिसके सौन्दर्य रूप में ममत्व एवं समत्व का वास है तथा वृद्धि से जो अतिवृद्धिशाली एवं सम्यक् वृद्धि को धारण करने वाली जहाँ की भूमि है। [१] ऐसे उस धन-धान्य से युक्त श्रेष्ठ टिकैतनगर में उदारवृत्ति वाला धनकुमार धन से सुशोभित होता है, जो धर्म से आए हुए धन की वृद्धि करता है तथा जो धीरता, उदारता एवं विनय से सद्धर्म में युक्त है। [१०] धनकुमार अपने पिता की उदार संतान है। धन-धान्य की लालिमा जिसके पास है, वह चन्द्रमा की उज्ज्वलता के साथ बन्धुजनों का लाला/प्रिय है। छोटेलाल का वह लाल कीर्ति से प्रशंसनीय है। जग में जो लाला (अच्छा) होता है, वह पूर्ण पुण्य से ही लाला होता है। [११ ] जिसकी देवी मोहिनी थी, अत्यन्त प्रिय थी, लाली से युक्त थी, वह लाडली बहू उसके पुत्र की लाली थी, जो धर्म में भी लाली/प्रशंसनीय थी। जो लाड/प्रियभाव से रुचिर भाव को धारण करती है, मोहित करती है। तथा जिसने मोह से अपनी गोदी को धन्य एवं प्रिय किया है। [१२] वह मोहिनी न केवल अपने प्रिय के साथ विचरण करती हुई उनको मोहित करती है, अपितु वह समीप में स्थित जनों और अपने आत्मीय जनों, सास, श्वसुर, ननद, बुआ आदि को अपनी नम्रता से जीत लेती है। Jain Educationa international For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012075
Book TitleAryikaratna Gyanmati Abhivandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages822
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size26 MB
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