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________________ Jain Educationa International गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती अभिवन्दन ग्रन्थ [२१] णाणा गिहे गमणसील - मणुण्ण बालन तं पासिदूण सुहपाल - सुहाणुभूदो । कीडाणुसील-सुलहं अदिबाल-लीलं भासेदि मोहि बाल-गियारागी ॥ २१ [ २ ] लब्धे रुचिं पर-गुणं कमणिज-बाल णं मोहिणी च न पूव्व- दिसा - पहावे । सुज्जं च राजदि सदा तह सोहदे सा मेणा मणुण एण सव्वे ॥ २२ ॥ [२३] पासेदि णिच्च तह णंददि बाल-मेणा । मादाइ मादपिय-भाव-सुबाल-चेई दित्ती- पभास-अदि-हास सहाव मेणा जोहा समा गगण मंडल अंगणे सा ॥ २३ ॥ [ २४ ] मेहा-बिणीद-मद-हीण- सुसील मेणा सुंदर लक्खण-गुणेहि विभूसपदि । णं अप्प अप्पकुलभूषण-हेदु-णच्छे मादंगणे च णणिहाल-विसाल खेत्त ॥ २४ ॥ [ २५ ] पासंत एवं अदि बाल सुचंदकंती सत्थंगणे सु-गमणे रमएदि णिच्चं । सत्थीइ सत्थ-सयलं गहिदु च बाला तत्तप्पवीण गहिरं लहिदूण दिडी ॥ २५ ॥ [ २६ ] णं कामता च जमुणा गुरु- सत्थि - णाणी णे पाद - विंद-जुगले वसिदूण मेणा । अप्पं हिदं स पर भेद-विणाण-भावं अज्झेदि झायदि सदा णिय अप्प अप्पं ॥ २६ ॥ [२७] अप्पव्वए पखर- लक्खण णाण-जुत्तं सत्थी महोदय ज अदिसाह मण्णे । सक्खा - सरस्साई धरे पडिमुत्ति-मेणं जा तत्तणाण करणे अवि बुद्ध-सीला ॥ २७ ॥ [ २८ ] अट्टप्पवास समए जदि जादि बाला मिच्छत्त-भाव-हणणे करणे पवीणा । मणा मणा-सदद-चिंतण-सील-रूवा सत्थुत्त तत्त वराणे रमदे हि णिच्चं ॥ २८ ॥ For Personal and Private Use Only [३११ www.jainelibrary.org
SR No.012075
Book TitleAryikaratna Gyanmati Abhivandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages822
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size26 MB
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