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________________ Jain Educationa International गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती अभिवन्दन ग्रन्थ [4] पीयूस - पुण्ण दिवसो अदि- पुण्ण-सीलो तं णिज्झरे रमदि पुण्ण- पवित्त-सीलो । पुण्णा च पुण्ण-सरदा-रिदु-पुण्णमासी जम्मेद जा सरद - पुण्णिम सुणाण-धारि ॥ ५ ॥ [६] संपुण्ण-सारद- णिसायर- कंति - सोम्मा जस्सिं विदाण-परिवेट्ठिद-गुम्म- गुम्मा | बालाइ बाल-किरणेहि पपुल्ल- भूदा राजेदि कि पण इध लोय-सुरम्म बाला ॥ ६ ॥ [७] जत्थप्पसंत-सयलाहि सुरामरामा णारी विणीद विणएण पबुद्ध-सीला । साहाविगा-गुण-महादिसयं पपण्णा गंभीर-धीर-खम-भाव-विसाल- भूमी ॥ ७ ॥ [८] तुंगत्तणं गिरि- समा अहिराजदे ही णं ईसरत गुण-इंद महिंद-तुल्ला । सुंदर रूप ममरा-समतभूदा बुद्धीइ जा मह - पबुद्ध-सुबुद्ध-धारी ॥ ८ ॥ [९] धणेहि घण्ण-धणसेट्ठि-टिकेद-भागे सोहेदि सो धणकुमार- उदार - वित्ती । धम्मेण समागद धर्ण अहिवदेओ धीरादुदार विणरण सधम्म- जुत्तो ॥ ९ ॥ [१०] धण्णस्स लाल सुकुमार-उदार-लाला चंदुज्जलेण सह बंधु-जणाण लाला । छोटे सुलाल अहिलाल-पलाल-लाला लाला जगे ललएदि सुपुण्ण-लाला ॥ १० ॥ [११] देवी तु मोहिणि सुलाल-सुजाद - लाली सा लाडली सुय-बहू अदिधम्मलाली । लाडेण जा रुचिरभाव समा धरेदि मोदि मोहणिय- अंक- सुसुहु-लाली ॥ ११ ॥ [१२] संमोहदे णणिय संग समाचरत सामीव-चिट्टिद-जणं णियअप्प अप्पं । सामुं च अप्प-ससुर णणदं बुभेच णम्मीअभूद बहु मोहिणी मोहिणीओ ॥ १२ ॥ For Personal and Private Use Only १३०९ www.jainelibrary.org
SR No.012075
Book TitleAryikaratna Gyanmati Abhivandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages822
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size26 MB
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