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________________ २८८] वीर ज्ञानोदय ग्रन्थमाला मोहिनी महाराज छोटेलाल गीत सीन - १० गुरुवर ! अब इसे किसी तरह समझा बुझाकर घर भेज दीजिए नहीं तो इसके पिता बहुत नाराज होंगे। मेरा घर उजड़ने से बचा लीजिए महाराज। अरे ! मोहनी तू तो धन्य हो गयी, तूने ऐसी कन्या को जन्म दिया है। अब तो इसे पूरी तरह से वैराग्य है अब इसे ब्रह्मा भी नहीं हिला सकता। और इधर छोटेलाल जी (मैना के पिता) यह सब स्थिति देखकर बिना बतायें कहीं चले गये थे बहुत ढूँढ़ने पर दो दिन बाद वह एक बाग में रोते विलखते मिले फिर उनको किसी तरह समझा बुझाकर घर लाया गया परन्तु मैना घर नहीं आयी। (और घर पहुँचते ही) बेटी मैना ! ओ बेटी मैना !! कहाँ हो तुम ! बोलो ! कहाँ हो ! (इधर उधर ढूढ़ते है और रोने लगते है) मेरी मैना, मेरे लाल, तुमको ढूँढूँ मैं कहाँ-कहाँ रोये ममता, तड़फे माँ, तुझको ढूँढूँ मैं कहाँ-कहाँ मेरी मैना . . . . . . . . . . . . तू क्या जाने तेरे घर से, चले जाने से क्या बीती मैना-मैना ये घर यह आंगन, अब तेरे बिना लगता सूना-सूना आजा वापस आजा, मेरी मैना . . . . . . . . . . . . . . . तू तो चल दी वीरा पथ पर जिन धर्म के ध्वज को फहराने-फहराने तेरी बहना, तेरे भैय्या, तेरे गम में रो-रो मर जायेंगे सारे-सारे आ जा वापस आ जा, मेरी मैना मेरे लाल . . . . . . . रोये ममता . . . . . . . . इसी तरह रोज मैना के पिता पागलों की तरह रोते रहते, पर समय बड़ा बलवान होता है। समयानुसार मैना के पिता का दुःख कुछ कम हुआ। परन्तु पता नहीं कितने ऐसे पुत्र-पुत्रियों के वियोग उनको और सहना था। मैना के पश्चात् मैना की छोटी बहन मनोवती ने भी ब्रह्मचर्य व्रत-ग्रहण किया और मैना के पद चिन्हों पर चल कर अंतोगत्वा जैनेश्वरी दीक्षा ग्रहण की आज वह अभय मती माताजी के नाम से जानी जाती हैं। कल की मैना आज की ज्ञानमती माता जन-जन में ज्ञान की ज्योति प्रद्योत कर रही है। इसके बाद यह क्रम रुका नहीं उनके और भाई-बहनों ने त्याग मार्ग अपनाया रवीन्द्र कुमार और मालती ने भी उन्हीं के आदर्शों पर चलते हुए आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत धारण किया। और फिर उनकी बहन माधुरी ने भी उन्हीं के आदर्शों को अपनाया और आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत ग्रहण किया। हाँ मैं तो बताना भूल ही गया था कि इधर मैना के जीवन में वह शुभ दिन आया जब मैना को चैत्र कृष्ण एकम संवत् २००९ में श्री महावीर जी में आचार्य रत्न श्री देशभूषण महाराज से क्षुल्लिका दीक्षा मिली। महाराज ने उनकी वीरता को देखते हुए उनका नाम वीरमती रखा। इसके बाद आचार्य प्रवर श्री वीर सागर जी महाराज से वैशाख वदी दूज सम्वत् २०१३ को माधोराजपुरा में आर्यिका दीक्षा ग्रहण की। महाराज ने आपके वृहत् ज्ञान को देखते हुए आपका नाम आर्यिका ज्ञानमती रखा। अब क्या था। यह सब देखने के पश्चत् माता मोहनी भी चुप कैसे रह सकती थीं। उन्होंने भी पारिवारिक मोह छोड़ दिया और अपने परिवार को रोता विलखता छोड़कर मगशिर वदी तीज को अजमेर महानगरी में आचार्य धर्मसागर महाराज से जैनेश्वरी दीक्षा ग्रहण कर ली और रत्नमती नाम प्राप्त किया। धन्य है ऐसी माँ ! धन्य है वह नगरी , जहाँ ऐसी -ऐसी महान् विभूतियों ने जन्म लिया। और मैं भी धन्य हो गया ऐसी माता के परिवार में जन्म लेकर। "मैना से बनकर ज्ञानमती, जग का इतिहास बदल डाला । पग धरे जहाँ माताजी ने, उस रज को पावन कर डाला ॥" सूत्रधार Jain Educationa international For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012075
Book TitleAryikaratna Gyanmati Abhivandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages822
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size26 MB
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