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गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती अभिवन्दन ग्रन्थ
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गीत
दीक्षा लेकर बनी आर्यिका, अपने कर्म जलाने को । ज्ञानमती बन भ्रमण किया तब, सबको ज्ञान सिखाने को ॥ दीक्षा . . . . शरद पूर्णिमा दिन था प्यारा, मैना ने जब जन्म लिया । एक गगन में एक भवन में, दो चंदा का मिलन हुआ ॥ पूर्ण चांदनी जग में फैली मैना का यश गाने को ।
मैना का यश गाने को। दीक्षा लेकर . शैशव में ही बाला ने गृह से मिथ्यात्व भगाय दिया । यौवन में पग रखते ही गृह बंधन को ठुकराय दिया । चली देश भूषण के ढिग फिर साधु मार्ग अपनाने को ।
साधु मार्ग अपनाने को। दीक्षा लेकर . . श्रवण बेल गोला का पर्वत, सबके मन को भाया था । माताजी ने एक वर्ष तक रहकर ध्यान लगाया था । बाहुबली स्तोत्र रचा तब भक्ति मार्ग सिखलाने को ।
भक्ति मार्ग सिखलाने को ॥ दीक्षा लेकर . . . . . . . बालसती यह प्रथम हुई अपने युग की माताओं में । ग्रन्थों की रचनाएँ भी हैं प्रथम किया इनने जग में । 'त्रिशला' इनके त्याग ज्ञान को आयी शीश झुकाने को ।
आयी शीश झुकाने को ॥ दीक्षा लेकर . . . . . . . .
गणिनी आर्यिका श्री का सरस काव्य परिचय
-स्व० कवि शर्मन लाल "सरस" सकरार - झांसी
इस समय देश के अंचल में, जड़ता पीड़ा कुंठायें हैं; भाई के हनने को ही अब, भाई की उठी भुजायें हैं । आचार-विचार अहिंसा पर, अब द्वेष-दंभ का पहरा है; निर्जीव आस्थायें लगतीं, देवत्व हो चुका बहरा है ॥ १ ॥ मंदिर व प्रभू से लाख गुना श्रद्धा पा चुके सिनेमा हैं , पाश्चात्य सभ्यता के घर-घर, अब लगे हुए डिप्लोमा हैं। अब भौतिकता का आकर्षण, कर रहा विश्व को पागल है; किस-किससे क्या-क्या कहें कहो? हर रूप यहाँ पर घायल है ॥ २ ॥ है किस चिड़िया का प्रेम नाम, यह कैसी बात निकाली है? उसकी तो अंत्येष्ठि क्रिया, जानें कब की कर डाली है । स्थिति आज इस दुनियां की भौतिकता में परिवर्तित है; प्रभु वीर की वाणी के संग अब तर्कों की पड़ी जरूरत है ॥ ३ ॥ हमने पुरान हमने कुरान, अब, सब पर कालिख पोती है;
अब की गीता पर, सीता पर, बस नजर और ही होती है। जिसको निर्माण मानते हम, वह पूर्ण रूप बरबादी है; सुनते मंगल ग्रह जाने को, मानव ने होड़ लगा दी है ॥ ४ ॥
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