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________________ गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती अभिवन्दन ग्रन्थ [२८७ मैना मैना मैना गुरुवर ! मैं अपने आपको ब्राह्मी सुन्दरी जैसी आर्यिकाओं की तरह बनाना चाहती हूँ। परन्तु मेरे घर के लोग, मेरे सम्बन्धी, और समाज के लोग न जाने क्यों विरोध कर रहे हैं। महाराज बेटी मैना ! तुम अपने आपको दृढ़ रखो जब तुमने आत्म कल्याण करने की सोची है तो संघर्षों की परवाह मत करो तुम अवश्य ही सफल होगी। [मस्तक झुकाकर] मुनिवर ! आप आशीर्वाद दीजिए मुझमें ऐसी शक्ति आ जाये कि मैं कभी अपने पग से न डिगूं। मैना चली जाती हैइधर आचार्य जी का संघ बाराबंकी शहर की ओर प्रस्थान कर देता है और वहीं पर आचार्य श्री चातुर्मास करते हैं। इधर मैना किसी तरह अपना स्वार्थ सिद्ध करना चाहती थी आखिर एक दिन मैना के पिता घर से बाहर गये हुए थे मैना को बहुत अच्छा मौका मिला और उसने अपने छोटे भाई कैलाश को बुलाकर कहा सीन • ९ मैना देखो ! कैलाश मैंने तुमसे एक दिन वचन लिया था कि अगर कोई जरूरत पड़ी तो तुम मेरा कहा करोगे। कैलाश वह तो ठीक है जीजी, पर आप बतायें तो कि हमें क्या करना है ? आप जो कहेंगी वह जरूर करूंगा। मैना देखो ! मैंने चातुर्मास में महाराज के दर्शन का नियम ले रखा है सो महाराज का चातुर्मास बाराबंकी में हो रहा है इसलिए तुम मुझे महाराज के दर्शन कराने ले चलो । कैलाश लेकिन जीजी पिताजी घर पर नहीं है और . . . . . [बीच में बात काटती हुई लेकिन वेकिन कुछ नहीं, मैं माँ से बात कर लूंगी तुम तैय्यार रहो। कैलाश ठीक है जीजी ! जैसी तुम्हारी मर्जी ? मैना माता मोहिनी से- माँ ! मैं महाराज के दर्शन को अवश्य जाऊँगी आप हमें जाने दें एक दिन की ही तो बात है। मोहनी नहीं ! बेटी, पिताजी आ जाये तब जाना । [और अन्तोगत्वा मैना ने माँ को मना ही लिया। बाराबंकी के लिए चल दी। चलते समय मैना की माँ ने कहामोहिनी बेटी ! मैना शाम तक जरूर आ जाना घर में बच्चों को देखने वाला कोई नहीं है। मैना हाँ ! हाँ !! हाँ !!! आप चिन्ता न करें मैं शाम तक जरूर वापस आ जाऊँगी। सूत्रधार और यह मैना का घर से अंतिम प्रस्थान था जिसे कोई भी समझ न पाया था। मैना जिद करके बाराबंकी में ही रुक गयी जब-जब कोई लेने जाता तब-तब कोई न कोई बहाना करके टाल देती। इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाने वाला वह दिन जिस दिन आचार्य जी का केशलोंच था बहुत दूर-दूर से लोग आचार्य श्री का केशलोंच देखने के लिए आये थे। उसी में मैना के माता-पिता मामा आदि-आदि सभी मैना को वापस घर ले जाने के लिए आये थे। और इधर मंच के पास आचार्य श्री के सम्मुख मैना हाथ में श्री फल लिए बैठी महाराज से दीक्षा के लिए प्रार्थना कर रही थीं। महाराज मौन थे। जैसे ही आचार्य श्री का केशलोंच प्रारम्भ हुआ। अरे यह क्या ! महाराज के केशलोंच प्रारम्भ होते ही मैना ने भी अपने सिर के बाल अपने हाथों से उखाड़ने प्रारम्भ कर दिये चारों तरफ लोग चकित रह गये यह क्या हो रहा है- यह क्या हो रहा हैयदि लौट चले मैना घर को, मैना परिवार पधारा था, जब केशलोंच का समय हुआ, देखा तो अजब नजारा था । मैना दीक्षा के लिए खड़ी, मन में सुमेरु विश्वासों से । प्रारम्भ कर दिया केशलोंच, खुद अपना अपने हाथों से ॥ वहाँ पर उपस्थित लोग- रोको, रोको, यह क्या कर रही है लड़की ? सभी लोगों के स्वर विरोध में बोल उठे। मैना के मामा ने दौड़कर मैना का हाथ पकड़ लिया राग और विराग के इस युद्ध के बीच देखना था जीत किसकी होती है। मैना ने यह सब देखकर अन्न-जल सब त्याग दिया सीधे मंदिर जी में जाकर ईश्वर का ध्यान लगाकर बैठ गयी। आखिर में सभी को मैना की जिद के आगे हार माननी पड़ी। मैना की माँ ने समझा बुझा कर महाराज से मैना को सप्तम प्रतिमा का व्रत दिलवायें और जिस दिन मैना ने सप्तम प्रतिमा का व्रत ग्रहण किया वह दिन भी शरद् पूर्णिमा का दिन था। यह सब हो जाने के बाद माता मोहनी ने महाराज से कहा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012075
Book TitleAryikaratna Gyanmati Abhivandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages822
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size26 MB
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