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वीर ज्ञानोदय ग्रन्थमाला
मैना [अपनी सखी से] हे सखी ! मैंने दृढ़ निश्चय कर लिया है कि मैं आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करूँगी और कभी शादी
नहीं करूँगी यदि बारात आयी तो खाली हाथ जायेगी। सखी
मैना ! यह सब तो बूढ़ेपन की बातें हैं अभी उम्र के हिसाब से तुम्हें जो करना चाहिये वही करो।
[जब यह बात माता मोहनी को पता चली तब-] मोहिनी बेटी मैना ! मैं यह क्या सुन रही हूँ क्या यह सच है? मैना
हाँ ! माँ ! यह सच है कि मैंने निश्चय कर लिया है कि मैं शादी नहीं करूंगी। मैना की जिद देखकर माता मोहनी थोड़ा घबराती हैं लेकिन फिर मैना को समझाती हैं। मोहनी देवी ने सोचा शायद अभी बचपना
है बाद में सब ठीक हो जायेगा। सीन -६ एक दिन मैना सो रही थी उषा काल का समय था वह मीठे सपने में खोयी थी स्वप्न में देख रही थीसूत्रधार सोई थी तो मैना होके नींद में मगन ।
सोते-सोते देखा उसने एक सपन ॥ मन में बजी शहनाई, खुशियों ने ली अंगड़ाई ॥ २ ॥ सपने में देखा मैना ने, मैं तो मंदिर जा रही । हाथों में द्रव्यों की थाली, श्वेत वस्त्र तन पर धरी ॥ सबसे अजब ये बात थी भैय्या, चन्द्र की जो थी चांदनी । पड़ती थी मैना के ऊपर, और कहीं न वह पड़ी । ज्यों-ज्यों मैना बढ़ती जाती, त्यों-त्यों बढ़ता चन्द्र । सोई थी तो मैना . . . . . . . . . . . .
[स्वम देखकर मैना उठ जाती है-] सीन -७ मैना- हे ईश्वर ! यह कैसा अद्भुत स्वप्न था। इस सपने के विषय में माँ को बताना चाहिए। मैना माता मोहिनी को
पुकारती है- माँ ! माँ! मोहिनी (अन्दर से आती है) क्या बात है? बेटी !
माँ ! मैंने एक अद्भुत स्वपन देखा है। मोहिनी क्या देखा है? मैं भी तो सुनें। मैना
माँ ! मैंने देखा कि मैं सफेद वस्त्र पहने हाथों में द्रव्यों की थाली लेकर मंदिर की तरफ जा रही हूँ और आकाश में चन्द्रमा निकला है। सिर्फ मेरे ही ऊपर उस चन्द्रमा की रोशनी पड़ रही है बाकी चारों ओर अंधेरा है, मैं जैसे-जैसे बढ़ती हूँ चन्द्रमा
की रोशनी भी मेरे साथ बढ़ती जा रही है। मोहिनी
अरे ! बेटी, तुम्हें न जाने क्या हो गया है जब देखो तब ऐसी ही उल्टी - सीधी बातें करती रहती हो, जाओ, अपना काम करो।
'यद्यपि माता मोहिनी जान गयीं थीं कि अब यह मैना ज्यादा दिन गृह पिजरे में रुकने वाली नहीं है। और एक दिन आचार्य श्री देशभूषण महाराज का संघ टिकैतनगर ग्राम में पधारा । तो मैना को अपना मनोरथ सफल होता नजर आ रहा था - शीघ्र ही मैना महाराज के सन्मुख पहुँच अपने मन की बातें कहने लगी।
सीन - ८
(सामने महाराज की फोटो स्टेज पर रखी है) नमोस्तु महाराज जी। महाराज सद्धर्मवृद्धिरस्तु ! कहो बेटी क्या कहना चाहती हो। मैना
महाराज ! मेरे मन में वैराग्य के अंकुर फूट रहे हैं, मैं संसारके परिभ्रमण से मुक्त होना चाहती हूँ। मैं दीक्षा लेना चाहती हूँ महाराज ! महाराज बेटी ! तुम्हारे मस्तक को देखने से ऐसा प्रतीत होता है कि तुम्हारा भविष्य बहुत ही उज्ज्वल है, तुम्हारा मनोरथ अवश्य सिद्ध होगा।
[महाराज की यह बात सुनकर मैना मन ही मन बहुत प्रसन्न हुई। और मन में साहस कर फिर बोली]
मैना
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