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________________ सीन इसी तरह माता मोहिनी की यह विशेष आदत सी थी वह हर समय धार्मिक विचारों में डूबी रहती। भोजन बनाते समय बच्चों को खिलाते -पिलाते समय कभी भक्तामर स्तोत्र कभी महावीर चालीसा आदि आदि कुछ न कुछ पढ़ती रहती ऐसे संस्कार सभी में देखने को नहीं मिलते इसीलिए माता मोहिनी की प्रत्येक संतान धार्मिक विचारों से ओत-प्रोत है। धीरे-धीरे मैना बड़ी होने लगी प्रारम्भिक शिक्षा प्रारम्भ हुई विलक्षण प्रतिभा थी मैना में ३ (स्कूल का दृश्य) अध्यापक दूसरे अध्यापक सीन ३ मैना मोहिनी मैना मोहिनी मैना मोहिनी मैना सीन ४ अकलंक के पिता अकलंक पिताजी अकलंक गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती अभिवन्दन ग्रन्थ छोटेलाल Jain Educationa International बहुत ही बुद्धिमान लड़की है मैना हाँ! विलक्षण प्रतिभा की धनी है मैना जो पढ़ाओ बहुत ध्यान से सुनती है और तुरन्त याद कर लेती है जरूर एक दिन नाम करेगी। मैनाने आठ वर्ष की अल्प आयु में ही प्रारंम्भिक शिक्षा पूरी कर ली मैना की बुद्धिमत्ता और ज्ञान को देखकर लोग आश्चर्यचकित रह जाते थे। अब मैना घर पर ही रहकर पुस्तकों का अध्ययन करती रहती। [ और फिर एक दिन] माँ माँ! [ २८५ क्या है बेटी मैना ! माँ! हम भी खेलने जायें, देखो सब लड़कियां बाहर खेल रही हैं। बेटी ! खेलने में क्या रखा है? देखो ! घर में कितनी अच्छी-अच्छी पुस्तकें रखी है उनको पढ़ो उनसे ज्ञान बढ़ता है और खेलने से क्या मिलेगा? [ थोड़ी निराशा से] अच्छा माँ ! जैसा तुम कहती हो वैसा ही करूँगी [ थोड़ा रुककर] लाओ माँ ! किताबें कहाँ है? ये ले बेटी ! खूब ध्यान से पढ़ना ! ये शील कथा की किताबें हैं। (मैना कुछ देर किताबें पढ़ती है फिर खड़ी होकर बोलती है) वाह ! कितनी अच्छी अच्छी बातें लिखी है इनको पढ़ कर मन में वैराग्य की भावना जाग्रत होती है। हे भगवन् । मुझे भी ऐसी शक्ति दो जिससे मै भी ब्राह्मी, सुंदरी जैसी आर्यिका बन सकूँ। [एक दिन गांव में एक नाटक मंडली द्वारा नाटक दिखाया जा रहा था। अकलंक और निकलंक, मैना भी वहीं बैठी नाटक देख रही थी उसमें एक सीन ऐसा आया - उसमें अकलंक के पिता अकलंक से कह रहे थेबेटा अकलंक ! अब हम सोचते हैं कि तुम्हारी शादी कर देनी चाहिए। पिताजी ! इस कीचड़ में पैर रख कर धोने से अच्छा है कि कीचड़ में पैर ही न रखें। बस, इन्ही शब्दों ने मैना के जीवन को वैराग्य की ओर मोड़ दिया और मन-ही-मन मैना ने आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत रखने का दृढ़ संकल्प कर लिया। धीरे-धीरे समय बीत रहा था माता मोहिनी ने अन्य संतानों को भी जन्म दिया। जिसमें क्रम से मैना, शांति, कैलाशचन्द, श्रीमती मनोवती, प्रकाशचन्द, सुभाषचन्द और कुमुदनी । मैना इस छोटी उम्र में अपने सभी भाई बहनों को सम्भालती । गृह कार्य करने के साथ-साथ अनेक धार्मि पुस्तकों का अध्ययन भी करती थीं। अरे ! पिताजी, आप कैसी बातें कर रहे हैं ? मैं अनंत काल से संसार सागर में परिभ्रमण कर रहा हूँ। अब मुझे अपना कल्याण करना है । अरे पिताजी ! अब मैं मुनि दीक्षा लेकर अपना जीवन सफल करूँगा । कैसी बातें कर रहा है तु अकलंक! यह उम्र इन बातों की नहीं। बाद में यह बातें सोचना । मैना ने घर में अनेकों कुरीतियों का त्याग करवा दिया था। घर के बाहर भी लोग मैना की बातों का बड़ा महत्त्व देते थे। इधर धीरे-धीरे मैना के जीवन पर वैराग्य का रंग चढ़ने लगा और दूसरी तरफ उसके पिता को मैना की शादी की चिन्ता होने लगी। सीन ५ मोहिनी [छोटेलाल से] देखो! हमारी बेटी मैना अब शादी के योग्य हो गयी हैअब शीघ्र ही कोई योग्य वर तलाश करना चाहिए। तुम ठीक कहती हो, मैं जल्दी ही योग्य वर की तलाश में जाऊँगा । [ जब यह बात मैना को पता चली तब मैना ने अपनी सखियों से कहा-] For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012075
Book TitleAryikaratna Gyanmati Abhivandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages822
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size26 MB
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