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साथ सम्पन्न हुआ। लाला सुखपाल दास जी बहुत ही धार्मिक प्रवृति के व्यक्ति थे वैसे ही उनकी पुत्री मोहिनी भी थी। लाला सुखपालदास जी ने अपनी सुपुत्री को एक सच्चा दहेज दिया था। आप सोचते होंगे कि लोग तो आजकल, कार, फ्रिज, स्कूटर आदि वस्तुएँ दहेज में देते हैं परन्तु उन्होंने ऐसा कुछ भी नहीं दिया। उनका सच्चा दहेज था एक ग्रंथ। हाँ! ग्रंथ ही था जिसे पाकर मोहिनी का जीवन सफल हो गया। उस ग्रंथ का नाम था (पद्मनंदिपंचविंशतिका)
जानते हैं आप ! मोहिनी के पिता ने ग्रंथ देते हुये क्या कहा? कि बेटी इस ग्रंथ का स्वाध्याय प्रतिदिन करना, जिससे तुम्हारा गृहस्थ जीवन और नारी जीवन पाना सफल हो जायेगा।
मोहिनी अपने पिता द्वारा दिये गये सबसे मूल्यवान दहेज का हमेशा स्वाध्याय करतीं धीरे-धीरे समय बीतता गया।
एक दिन लाला छोटेलाल जी ने देखा कि मोहिनी देवी के पैर भारी होने लगे वह बहुत खुश हुए और फिर वह पड़ी थी सन् १९३४ का आसोज सुदी पूर्णिमा का पावन दिन सभी को नये मेहमान के आने का इंतजार बड़ी बेसब्र से था और धीरे-धीरे रात्रि का प्रहर प्रारम्भ हुआ। हाँ वह शरद पूर्णिमा का दिन था सम्पूर्ण पृथ्वी चांदनी में नहायी हुई थी। ऐसा लग रहा था मानो चांदी की नदी बह रही हो, आकाश में असंख्यातों तारे टिमटिमा रहे थे मानो माँ के उस लाल को देखने के लिए धरती की ओर अपनी नजरें गड़ाऐ हो। उस पूर्णिमा की रात की ऐसी सुन्दरता जिसका वर्णन नहीं किया जा सकता। उधर छोटेलालजी मीठे सपनों में खोये हुये नये मेहमान के आने की कल्पना कर रहे थे।
दृश्य [लाला छोटे लाल का घर सभी लोग बैठे हैं-]
दादी फूल देवी
नाना
नानी
सूत्रधार
वीर ज्ञानोदय ग्रन्थमाला
शरद् पूर्णिमा की सुहानी रात जैसे आज का चांद धरती को चूमने के लिए बेताब हो (और उधर लाला छोटेलाल एवं समस्त परिवार बैठे हैं) ज्योंही दस बजकर दस मिनट हुआ एक औरत अन्दर से आती है। (अन्दर से बच्चे की रोने की आवाज )
स्त्री
लालाजी लालाजी लड़की हुई है कन्या रत्न पाया है आपने जैसे ही यह शब्द छोटेलाल जी ने सुना वह खुशी से झूम उठे और बोले हे ईश्वर में आज बहुत खुश हूँ।
(उस स्त्री को अपने गले का माला उतार कर दे देते हैं)
[बड़े गौरव के साथ] भले ही कन्या का जन्म हुआ है किन्तु पहला पुष्प है चिरंजीवी हो मुझे बहुत खुशी है। इसका नाम मैना ठीक रहेगा।
अरे! यह मैना चिड़ियाँ है यह घर में नहीं रहेगी एक दिन उड़ जायेगी।
थी शरद पूर्णिमा शुक्ल पक्ष, जिसको इतिहास न भूलेगा । सम्वत् नौ कम दो हजार, महिना कुंवार दिन फूलेगा । उस दिवस प्रात से ही प्रियवर, इक लहर नई सी दौड़ी थी । हर गली कली सी लगती थी, तरुओं में होड़ा होड़ी थी ॥'
सीन २
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'था दिन ही ऐसा भाग्यवान, निश में ऐसी चातुरता थी । माँ आज मोहिनी पर मोहित लगती खुद ही सुन्दरता थी । श्री छोटेलाल पिता उस क्षण मीठे सपनों में सोये थे ।
आता है कब मेहमान नवा, पल-पल में आस संजोये थे ।' 'ज्यों दस बज कर दस मिनट हुए थी घड़ी घड़ी वह ले आई।
सम्पूर्ण चाँदनी धरती पर स्वागत के लिए उतर आई । माँ तभी मोहिनी धन्य हुई हो गयी धरा पर नरमी थी, उस शरद् पूर्णिमा में उसने यह ज्ञान पूर्णिमा जन्मी थी ॥'
पाकर के कन्या रत्न तभी, हो गगन मगन हो झूम चला छोटे के छोटे उपवन में यह पहला प्रेम प्रसून खिला; था स्वयं उजाला अचरज में, लख करके ऐसी दीप शिखा,
तब बड़े प्यार से माता ने, कन्या का मैना नाम रखा ॥
(इसके बाद कोई मंगल गीत गाया जाता है । )
[ एक पालना रखा है माता मोहिनी उसे झुला रही है मैना को दूध पिलाते हुऐ भक्तामरस्तोत्र का पाठ कर रही है ।]
'भक्तामरप्रणतमौलिमणि प्रभाणा
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