________________
गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती अभिवन्दन ग्रन्थ
[२८३
[नृत्य नाटिका] वैराग्य अंकुर
-वीर कुमार जैन टिकैतनगर [बाराबंकी] उ०प्र०
प्रथम दृश्य [स्टेज पर सामने माता ज्ञानमती जी की फोटो रखी है दोनो तरफ लाइन से छः छः लोग खड़े हैं।]
प्रार्थना (तर्ज - ऐसी शक्ति हमें देना दाताल, मन का विश्वास कम हो सके ना . . . . .)
ऐसी शक्ति हमें देना माता, मन का विश्वास कम हो सकें ना। करें हम सब भलाई हमेशा, और बुराई को हम छू सके ना ॥ टेक । तुमने यौवन में रखते ही पग को, यह है संसार निस्सार जाना ।
और चली देश भूषण के ढिग फिर, साधु मारग के बुनने को बाना ॥ ऐसी शक्ति ... बन गयी वीरमति क्षुल्लिका तब, ज्ञान की ऐसी ज्योति जलाई । लीनी फिर वीर सागर से दीक्षा, ज्ञानमती बन के जग में जगमगाई ॥ ऐसी शक्ति ... लिख दिये सैकड़ों ग्रंथ ऐसे, कर असम्भव को सम्भव दिखाया । जम्बूद्वीप बना ऐसा अद्भुत, उसने विज्ञान को भी रिझाया । ऐसी शक्ति . . . 'वीर' करता रहे तेरा वंदन, तेरी छाया रहित क्षण नहीं हो । धरती माता की गोदी कभी भी, ऐसी माता से खाली नही हो ॥ ऐसी शक्ति . . . [एक सूत्रधार स्टेज पर आता है अभिनय के साथ बोलता है-] सुनो !
सुनो !! सुनो !!! मैं जो कुछ तुम लोगों को सुनाने और दिखाने जा रहा हूँ न तो वह कोई काल्पनिक घटना है न ही वह कोई मन गढ़ंत कहानी है। यह एक वास्तविकता से भरपूर त्याग और तपस्या की वह कहानी है जिसे सुनकर लोग दांतों तले अंगुली दबा लेते हैं।
न ही कोई काल बीता है, और न ही कोई युग, न ही यह कोई हजारों वर्ष पुरानी घटना है। अरे ! अभी कोई बहुत असें नहीं बीते हैं। बस सन् १९३४ की घटना है।
आदि ब्रह्मा भगवान ऋषभदेव की जन्म भूमि अयोध्या और उसके आस-पास के क्षेत्र को आज भी लोग अवध प्रांत के नाम से जानते हैं। भगवान ऋषभदेव और उनके प्रथम पुत्र भरत चक्रवर्ती के समय अयोध्या नगर १२ योजन लम्बी और ९ योजन चौड़ी मानी जाती थी। उसके हिसाब से यह टिकैतनगर महमूदाबाद, त्रिलोकपुर, लखनऊ यह सब अवध प्रांत में ही आते है।
और यह कहानी उस अवध प्रांत में बसे टिकैतनगर ग्राम की हैं। जो अयोध्या से लगभग ६० मील दूरी पर बसा है वैसे तो टिकैतनगर अनेकों इतिहासों से जुड़ा है इसके विषय में अनेकानेक किस्से हैं जहाँ यहाँ के पुरुषों ने आजादी की लड़ाई में अपनी वीरता का कौशल दिखाया है, वहीं पर यहाँ की नारियों ने शांति और त्याग के पथ पर चलकर भगवान् महावीर के समान बनने की क्षमता को दिखाया है।
___ हाँ ! तो इसी टिकैतनगर की बात है यहाँ पर बसा हुआ एक सुन्दर सा जैन मोहल्ला और उसी मोहल्ले में एक भव्य जिन मंदिर जिसके मुख्य द्वार को देखते ही रोम-रोम पुलकित हो उठे उसी मंदिर में भगवान पार्श्वनाथ स्वामी की मूल वेदी। अद्भुत छटा है उस मंदिर की जिसका वर्णन शब्दों में नहीं किया जा सकता।
उसी धार्मिक नगरी टिकैतनगर में जिन मंदिर के पास ही एक घर जिसमें लाला धन्य कुमार जी अपनी पत्नी फूल देवी के साथ रहते थे। ये अग्रवाल जातीय गोयल गोत्रीय दिगम्बर जैन थे। इनके चार पुत्र और तीन पुत्रियाँ थी। इसमें से एक पुत्र थे लाला छोटेलालजी।
और हाँ! यहीं से शुरू होती है यह कहानी। लाला छोटेलाल का विवाह महमूदाबाद के लाला सुखपाल दास जी की सुपुत्री मोहिनी देवी के
Jain Educationa international
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org