________________
२७८]
वीर ज्ञानोदय ग्रन्थमाला
माताजी उन्हें शास्त्र की बातें सुनाकर चुप कर देतीं। एक बार आपके मामाजी ने जब काफी विरोध किया और उपद्रव मचाया और कहा-कहाँ लिखा है कुंवारी कन्या दीक्षा लेती है? तब आपने शास्त्र के अध्ययनानुसार कहा कि भगवान् आदिनाथ की पुत्रियाँ ब्राह्मी सुन्दरी ने दीक्षा ली, वे कुँवारी ही तो थीं। लेकिन तब मामाजी ने मोहवश क्या कहा था- नहीं, वे तो नपुंसक थीं। पू० माताजी की मेरी स्मृतियाँ पढ़ने से बहुत-सी बातों का ज्ञान होता है। सचमुच आज पू० माताजी ने कन्याओं के लिए ब्राह्मी-सुन्दरी का मार्ग प्रशस्त कर दिया है।
इस बीसवीं शताब्दी की ये अनुपम देन हैं। इनके विषय में वर्णन करना तो सूर्य को दीपक दिखाने के समान है। पू० माताजी के पास आने वाला हर मानव आकर्षित हुए बिना नहीं रहता, पू० श्री चन्दनामती माताजी ने 'चंदना सुनाती ज्ञानमती की कथा' नामक पद्य कथानक में कितनी सत्य और हृदय को छूने वाली बात कही है
सुनते हैं पारसमणि को छूकर, लोहा केवल सोना है बनता । सोना है बनता लेकिन ज्ञानमती पारस को छूकर मानव स्वयं पारसमणि है बनता। पारस मणि है बनता चन्दनामती की स्वयं बीती ये कथा, मोहिनी माता से जो जुड़ी है सर्वथा ।
सुनो युग की पहली ज्ञानमती की कथावास्तव में पू० माताजी के द्वारा आज कुँवारी कन्याओं के लिए दीक्षा का मार्ग खुल जाने से कितनी ही कन्याओं ने अपना आत्म कल्याण कर लिया। कितने ही पुरुषों ने पू० माताजी से ज्ञान अर्जित किया, लेकिन पू० माताजी ने उन्हें बढ़ा-बढ़ा कर आज अपने से भी ऊँचा बना दिया। वर्तमान में पृ० माताजी के द्वारा शिक्षित चार आचार्य बन गये। आचार्य श्री अजितसागर जी महाराज, श्री श्रेयांससागरजी महाराज, श्रीवर्धमान सागरजी महाराज और षष्ठम पट्टाचार्य श्री अभिनंदन सागरजी महाराज हैं।
'कलियग की ब्राह्मी माता' गणिनी आर्यिका ज्ञानमती माताजी की सतत चलती लेखनी ने भी विश्वरिकार्ड को तोड़ दिया है। भगवान महावीर के शासनकाल में ये प्रथम महिलारत्न हैं, जिन्होंने अपनी कलम से इतने बड़े-बड़े ग्रन्थों की रचना कर डाली। अष्टसहस्री जैसे क्लिष्ट ग्रन्थ का हिन्दी अनुवाद कर लोगों को आश्चर्यचकित कर दिया। माताजी के अभूतपूर्व ज्ञान को देखकर लोग दाँतों तले उँगली दबाते हैं और कुछ कहते हैं कि अगर मुझे कुछ लिखना होता है तो एक दिन में पचास बादाम खाकर भी मैं उतना नहीं लिख पाता, लेकिन पू० माताजी नीरस भोजनकर, वह भी एक बार और इतना लिखती हैं तथा अध्ययन भी कराती हैं; सचमुच इनमें कोई महान् शक्ति ही छुपी हुई है। माता चंदनामती जी के शब्दों में
संघ आर्यिका बना विहार किया तुमने, ज्ञान गंगा की शाश्वत धार बहा तुमने । चंदनबाला ब्राह्मी माँ का किया मार्ग स्वीकार ।
ज्ञानमती माताजी, नैया लगा दो पार। पृज्य माताजी की जीवनगाथा पढ़ने से भी बहुत से लोगों को वैराग्य हो जाता है। इन्होंने अपने जीवन में अत्यधिक संघर्ष झेले और फिर भी अपने निश्चय पर दृढ़ अडिग रहीं, शायद ही आज कोई इतना पुरुषार्थ कर सके। छोटे-छोटे भाई-बहनों का मोह त्यागना और माँ की ममता को ठुकराना भी एक बहुत बड़ा काम होता है। किसी के समझाने पर माताजी उसे ही समझाने लगतीं। पिताजी, भाई, बहन जब मैना से कहते कि इस मार्ग में इतनी कठिनाइयाँ हैं कि तुम सहन नहीं कर पाओगी, तब माताजी उन्हें क्या उत्तर देतीं- माँ चन्दनामतीजी के शब्दों में
मैना बोली सब सह लूँगी । ब्राह्मी के पथ पर चल लूँगी ।
यह पथ ही तो जग का कल्याण कराता । बन गई ज्ञानमती माता . . . . . . . . . । 'जम्बूद्वीप की अलौकिक रचना' जो देखता है तो बस देखता ही रह जाता है। उसके मुख से बरबस यही निकल पड़ता है कि माताजी ने तो स्वर्ग को ही हस्तिनापुर में उतार रखा है। इतने महान् कार्यों को देख लोग कहते हैं कि अगर ये महिला न होकर पुरुष होती तो और न जाने क्या अलौकिक कार्य कर डालतीं।
आज मुझे यह लिखते हुए बहुत ही हर्ष और गौरव हो रहा है कि मुझे भी ब्राह्मी माता सदृश श्री ज्ञानमती माँ की शिष्या कहलाने का अधिकार मिल रहा है सचमुच ऐसी माँ भी विरलों को ही प्राप्त होती हैं।
मैं माँ के दीर्घ जीवन की कामना करते हुए भगवान् से यही प्रार्थना करती हूँ कि ऐसी माँ ब्राह्मी की प्रतिमूर्ति से कभी यह जग खाली न हो। माँ के चरणों में कोटिशः नमन्।
Jain Educationa international
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org