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गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती अभिवन्दन ग्रन्थ
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माताजी! आपने तो जंगल में मंगल कर दिया है, यहाँ की तो आपने काया ही पलट दी है, यहाँ आकर असीम शक्ति मिलती है, जैसे मानो स्वर्ग में ही आ गए हों।
ज्ञानमती माताजी का उस समय मंद मुस्कराहट मुद्रा में उत्तर होता है
"अरे भाई! हम तो अकिंचन साधु हैं, न हमारे पास पैसा है न कौड़ी, ऐसी स्थिति में तुम अपने (समस्त जैन समाज के) द्वारा किये कार्य को मेरा क्यों कहते हो? हाँ, मैंने तो मात्र शास्त्रों में छिपी जम्बूद्वीप रचना का नक्शा बताया है, बाकी मेरा इसमें कुछ भी नहीं है।"
उनका यह आन्तरिक निस्पृहतापूर्वक दिया गया समाधान भक्तों को और भी अधिक अपनत्व भाव से भर देता है। तब वे समझने लगते हैं कि हाँ, सचमुच! यह जम्बूद्वीप तो हम सभी का है, हमने ही तो ज्ञानज्योति के माध्यम से अथवा यहाँ इसका साक्षात् निर्माण चलता देखकर सैकड़ों, हजारों, लाखों रुपये खर्च करके इसे बनाया है और पूज्य माताजी की दैवी प्रेरणा ने हमें संबल प्रदान किया है।
शत-प्रतिशत सत्यता भी यही है कि गणिनी आर्यिका श्री जम्बूद्वीप की पावन प्रेरिका में निर्मात्री नहीं, क्योंकि उनके जीवन का अर्धभाग तो साहित्य सृजन-लेखन में व्यतीत होता है, चौथाई भाग अपनी नित्य-नैमित्तिक साधु क्रियाओं में और चौथाई भाग मजबूरीवश कमजोर शरीर के पालन में व्यतीत होता है, जिसका प्रत्यक्ष लाभ समाज को प्राप्त हो रहा है उनके वृहद् विधान पूजन, अध्यात्म, सिद्धान्त, न्याय, कथा आदि साहित्य के द्वारा ।
अभिवन्दनीय गणिनी माताजी के जीवन की यह व्यक्तिगत विशेषता देखी गई है कि हस्तिनापुर में करोड़ों रुपये के इस वृहद निर्माण के पीछे उन्हें आज तक यह नहीं ज्ञात है कि कहाँ से? कैसे? कितना रुपया? किस निर्माण के लिए आया और खर्च हुआ है। पैसा छूने की बात तो बहुत दूर है, वे अपने समक्ष रुपयों की बात भी नहीं करने देती हैं।
संस्था तथा मूर्तिमंदिर आदि के निर्माण की प्रेरणा देने वाले साधुओं की प्रायः आज का विद्वद् समाज आलोचना करता है, किन्तु उनके लिए पूज्य माताजी का निस्पृह जीवन अवश्य ही अवलोकनीय है। उनका जीवन एक खुली पुस्तक के समान किसी भी समय नजदीकी से देखा जा सकता है। जैसा कि सन् १९७५ में फ्रांस की एन. शान्ता नामक एक महिला जैन साध्वियों पर रिसर्च करते समय पूज्य माताजी के साथ हस्तिनापुर आकर लगभग १५-२० दिन रुकी और २४ घंटे उनके समीप रहकर आहार विहार, धोती पहनना, सामायिक करना, प्रतिक्रमण, स्वाध्याय, शयन आदि सब कुछ सूक्ष्मतापूर्वक अवलोकन करती थीं। यहाँ तक कि वह महिला माताजी के आहार के पश्चात् उन्हीं की थाली में परोसा गया बिना नमक, बिना घी, बिना मीठे का नीरस भोजन भी करतीं और कहतीं कि अनुभव किये बिना इनकी चर्या का वर्णन थिसिस में कैसे लिखा जा सकता है?
पूज्य माताजी का यह विशेष पुण्य ही मानना होगा कि ब्र. मोतीचंदजी (वर्तमान क्षुल्लक मोतीसागरजी) एवं ब्र. रवीन्द्रजी इन्हें पुष्पदन्त और भूतबली के समान ऐसे सुयोग्य शिष्य मिले, जिन्होंने माताजी को कभी निर्माण तथा रुपये संबंधी सिरदर्द ही नहीं होने दी। वात्सव में संयम साधना के क्षेत्र में योग्य शिष्यों का भी महत्त्वपूर्ण योगदान रहता है। दि. जैन त्रिलोक शोध संस्थान की पूरी कमेटी इस बात से परिचित है कि "ज्ञानमती माताजी सचमुच जल तें भिन्न कमल" का अद्वितीय उदाहरण हैं।
वर्तमान में साधु समाज में व्याप्त कुछ शिथिलाचारों को देखकर लोग सभी साधुओं को एक कोटि में लेकर निन्दा शुरू कर देते हैं, किन्तु मैं अपने अनुभव और तर्क के आधार पर गौरवपूर्वक कह सकती हूँ कि आज सर्वथा शिथिलाचारी साधु नहीं हैं, सूक्ष्मता एवं सामीप्य से देखने पर ७५ प्रतिशत शुद्ध परम्परा मिल सकती है, इसमें कोई संदेह नहीं है। खैर! पर के द्वारा प्रमाणित अथवा अप्रमाणित मान लिए जाने पर सच्चेसाधु की आत्मसाधना पर कोई असर नहीं पड़ता, वह तो मुक्तिमार्ग का पथिक होने के नाते अपना आत्मशोधन करता है, यही शोधनकार्य मोक्षप्राप्ति में उसे सहायक होता है। इस कलियुग में पूज्य ज्ञानमती माताजी को यदि ब्राह्मी माता का अवतार कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।
पञ्चकल्याणकों में पावन सानिध्ययूँ तो अपने ४० वर्षीय दीक्षित जीवन में आर्यिका श्री ने राजस्थान, कर्नाटक, बिहार, दिल्ली आदि अनेक स्थानों पर पञ्चकल्याणक प्रतिष्ठाओं में अपना सानिध्य प्रदान किया है, किन्तु जम्बूद्वीप संस्थान को जम्बूद्वीप परिसर की पाँच पञ्चकल्याणकों में उनका मंगल सानिध्य प्राप्त करने का सौभाग्य मिल चुका है। १. फरवरी सन् १९७५ भगवान महावीर स्वामी की प्रतिष्ठा (कमल मंदिर)। २. मई सन् १९७९ सुदर्शन मेरु पञ्चकल्याणक प्रतिष्ठा। ३. मई सन् १९८५ श्री जम्बूद्वीप जिनबिम्ब प्रतिष्ठापना महोत्सव । ४. मार्च सन् १९८७ श्री पार्श्वनाथ पञ्चकल्याणक महोत्सव। ५. मई सन् १९९० जम्बूद्वीप महामहोत्सव।
इसके अतिरिक्त मार्च सन् १९९२ एवं अप्रैल, १९९२ में दो लघु पञ्चकल्याणक प्रतिष्ठाएं भी आपके निर्देशन में जम्बूद्वीप स्थल पर चन्द्रप्रभ
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