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________________ २५६] वीर ज्ञानोदय ग्रन्थमाना होने वाले कल्पवृक्ष भगवान महावीर स्वामी मंदिर की पंचकल्याणक प्रतिष्ठा सम्पन्न हुई, जिसमें आचार्यश्री ने समस्त प्रतिमाओं को सूरिमंत्र प्रदान किए तथा द्वितीय महाकार्य संघस्थ मुनि श्रीवृषभसागर महाराज की विधिवत् सल्लेखनापूर्वक समाधिमरण का हुआ। दोनों महायज्ञों में आर्यिका श्री ज्ञानमती माताजी की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही। इन्हीं की प्रेरणा विशेष से सोलापुर (महाराष्ट्र) के प्रतिष्ठाचार्य पं. श्री वर्धमानजी शास्त्री ने समाज के आमंत्रण पर पधार कर आर्ष परंपरानुसार प्रतिष्ठाविधि सम्पन्न कराई। अपनत्व भरी एक वार्ताआचार्य श्री धर्मसागरजी महाराज ९ अप्रैल, १९७५ को संघ सहित सहारनपुर की ओर जब हस्तिनापुर से विहार करने लगे तो पूज्य श्री ज्ञानमती माताजी को बड़े वात्सल्यपूर्वक प्रवचन सभा में संबोधित करते हुए कहा "माताजी! यहाँ आपके रुके बिना जम्बूद्वीप निर्माण का महान कार्य सम्पन्न नहीं हो सकता है। तीर्थक्षेत्र पर अधिक दिन रुकने में कोई बाधा नहीं है, अतः आप निर्विकल्प होकर हस्तिनापुर तीर्थ पर रहें। जम्बूद्वीप रचना शीघ्र पूर्ण होकर आपका मनोरथ सिद्ध होवे, यह मेरा आपको खूब-खूब आशीर्वाद है।" __ आचार्यश्री की इस अपनत्व भरी वार्ता ने पूज्य माताजी को संबल प्रदान किया और उनके दृढ़ संकल्प का प्रतीक जम्बूद्वीप रचना आज संसार को अपना साकार रूप दर्शा रही है। निर्बाध संयम साधनाईसवी सन् १९६५ से मस्तिष्क में आई जम्बूद्वीप रचना पृथ्वी पर बनने का संयोग प्राप्त हुआ १० वर्ष पश्चात् १९७५ से। १० वर्षीय मानसिक योजना प्रारंभ होने के बाद १० वर्ष के अन्तराल में ही पूर्ण हुई, तभी सन् १९८५ में उसका प्रतिष्ठापना महोत्सव मनाया गया, हालांकि सुमेरु पर्वत का शिलान्यास सन् १९७४ में आषाढ़ शु. ३ को हो गया था, अतः यह भी माना जा सकता है कि ९ वर्ष के गर्भकाल के पश्चात् जम्बूद्वीप का जन्म हो गया था। खैर! इस दीर्घकाल के मध्य कहीं पर माताजी के द्वारा रुकने का आश्वासन न देने के कारण ही अब तक इसका निर्माण न हो सका था। उनके मन में कई बार यह शंका उठ जाती कि इस निर्माण से मेरे संयम में कहीं कोई बाधा न आ जाए, अतः उन्होंने अपने शिष्य ब्र. मोतीचंदजी, ब्र. रवीन्द्रजी, कु. मालती, कु. माधुरी आदि शिष्य-शिष्याओं से स्पष्ट कहा था "मैं इस रचना निर्माण के लिए किसी से पैसा नहीं माँगूगी और न आहार संबंधी व्यवस्था की कोई चिन्ता करूँगी। यदि तुम लोग मुझसे निर्माण की प्रेरणा चाहते हो तो सारी जिम्मेदारी का भार तुम लोगों पर होगा, अन्यथा मुझे जम्बूद्वीप निर्माण में कोई रुचि नहीं है। मेरे संयम में किसी तरह का दोष लगना मुझे स्वीकार नहीं है।" उनके सभी शिष्यों ने आश्वासन प्रदान कर उन्हें चिन्तामुक्त किया और आज इस बात की प्रसन्नता है कि पूज्य माताजी ने हस्तिनापुर, दिल्ली, खतौली, सरधना आदि स्थानों पर चातुर्मास किए, किन्तु उनके संयम में किसी प्रकार की कोई बाधा कभी नहीं आई। न तो उन्होंने कभी जम्बूद्वीप निर्माण के लिए किसी श्रावक से पैसे की याचना की और न ही अपने आहार आदि की व्यवस्था हेतु किसी को कहा। उनके जीवन का एक संकल्प प्रारंभ से रहा है कि “आहार में कभी संस्था के दान का एक पैसा भी नहीं लगना चाहिए और न ही साधु को अपने आहार के लिए श्रावकों से कहना चाहिए।" उनके इस नियम को अभी तक हम सभी ने पूर्णरूपेण पालन किया है और भविष्य में भी पूज्य माताजी की तरह निर्दोष संयम पालन की भावनावश इस नियम का पालन करने की उत्कट इच्छा है। जल तें भिन्न कयल का अनुपम उदाहरणमहापुरुष अपनी महानता का प्रचार करने हेतु किसी के द्वार पर भीख माँगने नहीं जाते, बल्कि महानता स्वयं ही उनके चरण चूम-चूमकर स्वयं को धन्य करती है। यही बात पूज्य श्री ज्ञानमती माताजी के जीवन में चरितार्थ हुई है। उन्होंने गृह त्याग किया तो निज आत्मोद्धार के लिए, दीक्षा धारण की तो अपनी स्त्री पर्याय का छेद करने के लिए, साहित्य सृजन किया तो निज आत्मा की पवित्रता और मन की एकाग्रता के लिए, शिष्यों का निर्माण किया तो अपने सम्यग्दर्शन के संवेग, अनुकम्पा आदि गुणों की वृद्धि हेतु तथा शिष्य को संसार समुद्र से पार करने हेतु एवं जम्बूद्वीप तथा कमल मंदिर आदि के निर्माण में प्रेरणा प्रदान किया तो अपने पिण्डस्थ ध्यान को साकार करने हेतु। उन्होंने आचार्य श्री कुन्दकुन्द स्वामी द्वारा कथित "आदहिदं कादव्वं" वाला सूत्र अपनाया, जिससे आत्महित के साथ-साथ परहित तो स्वयमेव ही हो रहा है। आज हस्तिनापुर में आने वाले प्रत्येक तीर्थयात्रियों के मुँह से भक्ति के अतिरेक में यही निकल जाता है कि Jain Educationa international For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012075
Book TitleAryikaratna Gyanmati Abhivandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages822
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size26 MB
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