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वीर ज्ञानोदय ग्रन्थमाला
माताजी को जिनगुण सम्पत्ति प्राप्त हो
आर्ष परंपरा रक्षित कर आर्यिका व्रतों का निरतिचार पालन कर, दीक्षा गुरुओं की शान को बढ़ाने वाली श्री ज्ञानमती माताजी जगत् के लिए वंदनीय हैं। ज्ञानमती माताजी का ज्ञानावरणी कर्म का तीव्र क्षयोपशम होने से क्षायोपशमिक ज्ञान ज्योति को बढ़ाने हेतु पुरुषार्थ किया गया है, जिसका उनके द्वारा प्रकाशित, संपादित एवं लिखित ग्रंथों द्वारा पता चलता है।
साथ-साथ ऐतिहासिक जम्बूद्वीप तीर्थक्षेत्र हस्तिनापुर में आपके मार्गदर्शन द्वारा बनवाया गया है, जो विश्व की अद्वितीय कृति है ।
गुरुदेव आचार्यवर्य देशभूषणजी महाराज ने आपको संसाररूपी जन्म-मरण के जंजाल से छुड़वाकर मोक्ष पथ पर लाकर छोड़ दिया है। आगे आपको मोक्ष मार्ग सुलभ हो । दुःखों का क्षय हो, कर्मों का क्षय हो, बोधि लाभ हो, सुगतिगमन हो, समाधि मरण हो, जिनगुण संपत्ति प्राप्त हो, यही हमारा आशीर्वाद है।
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• आचार्यरन श्री १०८ बाहुबलीजी महाराज
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माताजी अभिनन्दनीय हैं
गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती माताजी का अभिनन्दन ग्रन्थ छप रहा है, बहुत अच्छी बात है, माताजी तो अभिनन्दनीय ही हैं, माताजी के द्वारा जगत् के जीवों बहुत उपकार हुआ है।
माताजी अनेक ग्रंथों की रचयित्री व टीकाकार हैं, आपने जम्बूद्वीप की रचना करवाकर तो जगत् को आश्चर्यचकित ही कर दिया है । आपके अंदर अनेक प्रकार के गुण हैं, जिनका वर्णन भी शक्य नहीं है। आपकी प्रेरणा एवं आमंत्रण पर सन् १९८९ में मैं अपने संघ सहित हस्तिनापुर पहुँचा। जम्बूद्वीप रचना के दर्शन कर मन अतीव प्रसन्न हुआ। ४० दिन के हस्तिनापुर प्रवास में हमारे संघ के सभी साधुओं ने उनसे मातृत्व वात्सल्य प्राप्त किया तथा अनेक विषयों का अध्ययन किया। आप दीर्घायु हों, ऐसी आशीर्वादपूर्वक प्रभु से प्रार्थना करता हूँ ।
मंगल कामना
- गणधराचार्य श्री १०८ कुंथुसागरजी महाराज
- आचार्य १०८ श्री शान्तिसागरजी महाराज
पूज्य आर्यिका श्री ज्ञानमती माताजी के सानिध्य से जम्बूद्वीप का निर्माण हस्तिनापुर में हुआ, इससे जैन धर्म की प्रभावना बढ़ी है। आपकी, जम्बूद्वीप की व जैन धर्म की खूब ख्याति हो, मेरी यही मंगलकामना है।
ज्ञानमती के ज्ञान की गंगा बहती रहे
परम पूज्य आचार्य श्री अकलंकदेवजी, श्री समन्तभद्रजी, श्री विद्यानन्दीजी आदिजैन दर्शन के प्रकाण्ड विद्वान् व निर्भीक वक्ता थे और अनेक ग्रन्थों के माध्यम से जैन धर्म का प्रचार-प्रसार किया था। इसी प्रकार वर्तमान में साध्वी विदुषी आर्यिकारत्न श्री १२०५ ज्ञानमतीजी उन्हीं आचायों के ग्रन्थाधार को लेकर जैन धर्म की महती धर्म प्रभावना कर रही हैं। यह बात सब को विदित है और मैं समझता हूँ कि वर्तमान में अन्य कोई विद्वान् ज्ञान व धर्म-क्षेत्र में जिनवाणी की इतनी प्रभावता नहीं कर रहा है, जितना कार्य माताजी कर रही हैं और यह प्रशंसनीय है। पूरा दिगम्बर जैन समाज, विशेषकर महिलाएँ उनकी ऋणी है। 'णाणं पयासणे'
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- आचार्यकल्प श्री वरुणानन्दिजी महाराज
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