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गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती अभिवन्दन ग्रन्थ
ज्ञान तो प्रकाशक है जैसे मध्य में रखे हुए दीपक की लौ से अन्दर और बाहर प्रकाशित होते हैं, उसी प्रकार दर्शन एवं चरित्र को प्रकाशित करने वाला ज्ञान है। श्रुतज्ञान पाँचों ज्ञानों में श्रेष्ठता को प्राप्त होता है, केवल-ज्ञान भी तो श्रुतज्ञान का ही फल है। अवधिज्ञान व मनःपर्यय ज्ञान इतना प्रबल कारण नहीं। श्रुता का प्रभाव आपसे हो रहा है। यह तो आपके सतत अभ्यास, ज्ञान की अभीक्ष्णता ही कारण है। मैं आशा और शुभकामना करता हूँ कि शीघ्र ही थोड़े ही भवों में केवल-ज्ञान ज्योति आपको मिले।
क पूज्य माताजी हमेशा सब बाधाओं से सहित होकर जिनवाणी माता की सेवा करती रहें और भारत के कोने-कोने में ज्ञानमती के ज्ञान की अमृतमयी गंगा बहती रहे एवं ज्ञान में वृद्धि हो। साथ में उनके साहित्य के उपासक भी मनन, चिन्तन करें और अनन्त ज्ञानरूपी अंतरंग लक्ष्मी से अलंकृत बनें।
इतिशुभम्।
एक महान् नारी रत्न
-उपाध्याय श्री भरतसागरजी महाराज
श्री १०५ गणिनी आर्यिकारत्न ज्ञानमती एक विदुषी नारीरत्न हैं। 'श्रेयांसि बहुविघ्नानि' यह उक्ति अनादि सिद्ध है। महापुरुषों को महान् कार्य करने में अनेक विघ्न-बाधाएँ आती हैं, परन्तु महापुरुष अपने संकल्प से कभी च्युत नहीं होते हैं। आपने जिस समय जम्बूद्वीप रचना का संकल्प लिया, उस समय आपके सामने अनेक विघ्न-बाधाएँ पर्वत बनकर सामने खड़ी रहीं, किन्तु दृढ़ संकल्पी माताजी अपने कार्य में अडिग रहीं और साहित्य के पृष्ठों पर लिखित जम्बूद्वीप की रचना को पृथ्वी पर साकार कराकर बीसवीं सदी में अपना एक इतिहास कायम किया है।
आपने जन-साधारण के लिए उपयोगी जहाँ अनेक छोटी-छोटी पुस्तकों का सृजन कर भव्यात्माओं में जिनवाणी के अध्ययन की ओर रुचि जगाई है। वहीं आपने महान् सिद्धान्त ग्रंथ, न्याय ग्रंथों की संस्कृत-हिन्दी टीका करके जैनागम का महान् उपकार किया है। जैन समाज आपका चिर ऋणो है। मार्च सन् १९८७ में हस्तिनापुर में आपसे हुई चर्चा से मुझे यह अनुभव हुआ कि आपकी रग-रग में जैन संस्कृति को जीवन्त बनाने की भावना छिपी हुई है। आपकी सरस उत्तम भावनाएँ पूर्ण हों। आपका स्वास्थ्य ठीक रहे। आपके द्वारा सतत् जिन धर्म की प्रभावना होती रहे, यही हमारा आपके लिए शुभाशीर्वाद है।
माताजी की गौरव-गाथा को अक्षुण्ण बनाने वाले अभिनन्दन ग्रंथ का कार्य सँभालने वाले सभी महानुभावों को मेरा आशीर्वाद ।
सर्वोच्च महिला सन्त
- मुनि श्री आनंदसागरजी महाराज 'मौनप्रिय'
गणिनी आर्यिकारत्न १०५ श्री ज्ञानमती माताजी का अभिनंदन ग्रंथ प्रकाशित हो रहा है, यह जानकर अत्यन्त प्रसन्नता हुई। पूज्य माताजी अपने युग की सर्वोच्च महिला सन्त हैं। अपने जीवन में अनेक विधानों की रचना कर, सिद्धान्त ग्रंथों का अनुवाद कर एवं उपयोगी बाल साहित्य का सृजन कर माताजी ने जिन धर्म की महती प्रभावना की है। ऐसे शुद्धपरिणामी आत्मानुभवी सन्तों का अवश्य ही अभिवन्दन होना चाहिए।
___मैं अपनी शुभकामनाएँ प्रदान करता हूँ कि माताजी निरन्तर नव-नवीन साहित्य का सजन करती रहें, जिन धर्म की प्रभावना में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान देती रहें।
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