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________________ २४०] वीर ज्ञानोदय ग्रन्थमाला पर कल्याण भव्यभाव की, अद्वितीय सुरभित क्यारी हो । नहीं समानता व्याप्त गुणों की, सारे जग से न्यारी हो । छिपी हुई माँ की शक्ति का, हम आर-पार नहीं पाते हैं | वंदनीय पावन चरणों में, हम नितप्रति शीश नवाते हैं । सूरज को दीपक दिखलाये, हँसी-पात्र बन जाता है । सामर्थ भरा है किसमें इतना, तारामण्डल गिन पाता है । इसीलिए तो कोटि-कोटि जन, दर्शन पुंज चढ़ाते हैं ॥ वंदनीय पावन चरणों में, हम नितप्रति शीश नवाते हैं | सम्पूर्ण विश्व मानव समाज ने, अभिनन्दन भाव जगाया है । अम्बुनिधि के विशाल तटों को, क्या पंगु बनकर लाँघ सकेंगे । केवल प्रीति का सवाल लेकर, माँ के समीप हम आते हैं । वंदनीय पावन चरणों में, हम नितप्रति शीश नवाते हैं । वात्सल्यमयी माँ के चरणों में, श्रद्धा सुमन चढ़ाया है । दृष्टि कृपा की हो जावे तो, कल्याण मार्ग पर जाते हैं ॥ वंदनीय पावन चरणों में, हम नितप्रति शीश नवाते हैं । लाखों शरणागत तारे आपने, मेरी बारी भी आयी है । मेरा हित हो यही कामना, उर में आज समायी है । अनन्त भाव से हृदय कमल को, स्नेहिल पष्प चढ़ाते हैं ॥ वंदनीय पावन चरणों में, हम नितप्रति शीश नवाते हैं । पूज्य आर्यिका ज्ञानमती को कोटिक बार नमन है ! - वैद्यरत्न कवि दामोदर "चन्द्र" धुवारा [छतरपुर] जिनकी कलम सदुपदेशों का, करती नित्य सृजन है । पूज्य आर्यिका ज्ञानमती को - कोटिक बार नमन है ॥ टेक ॥ जन्म टिकैतनगर पितु छोटे, मोहिनी माँ की मैना । बाल्यकाल तुम धर्मग्रन्थ पढ - से तुम चित्त विराग बना ।। बाराबंकी में गुरु देशभूषण ढिग छोटी आयु में । ले ब्रह्मचर्य फिर महावीर - में आप क्षुल्लिका के व्रत लें ॥ वीर सिन्धु गुरु माधोराजपुर - तुम्हें ज्ञानमती पद सज हैं । पूज्य आर्यिका ज्ञानमती को - कोटिक बार नमन है ॥ १ ॥ गुरु संग घूमी राजस्थान - निज शिष्या संग रहीं बिहार । दक्षिण भारत मध्य देश - इन्दौर माँहि तुम हो जयकार ॥ उन्निस सौ बहत्तर सन् में - तुम गईं संघमय दिल्ली में । चल सहसों कोसों बालव्रती - गणिनी 'आर्यिकारत्न' पद लें ॥ सिद्धान्त शिरोमणि न्याय प्रभा- ये महा कवयित्री लेखक हैं। पूज्य आर्यिका ज्ञानमती को - कोटिक बार नमन है ॥ २ ॥ Jain Educationa international For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012075
Book TitleAryikaratna Gyanmati Abhivandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages822
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size26 MB
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