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गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती अभिवन्दन ग्रन्थ
तुम यत्न कई जन जनी ब्रति रच । हिन्दी में अष्टसहस्त्री रच ॥ संस्कृत-हिन्दी मौलिक रचना । पूजा विधान भी ग्रन्थ बना || हस्तिनापुर जम्बूद्वीप रचै ।
- कोटिक बार नमन है ॥ ३ ॥ रच ज्ञान ज्योति का उजियाला । चल ज्ञान ज्योति जग में आला ॥ का दिखता जग में चमत्कार ।
जन ज्ञानमती की जय उचार ॥
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तो जग झंझट सहज हि नश है। कोटिक बार नमन है ॥ ४ ॥ ज्ञानोदय वीर ग्रन्थमाला । तुम किये काम जग में आला ॥ चरित मूर्ति प्रतिभा धारी । तुम यशरु ज्ञान कहे संसारी ।
तुमको कोटि नमन है । कोटिक बार नमन है ॥ ५ ॥ कोटि-कोटि वन्दन है
पढ़ संघमय जिन वृष गूढ़ ग्रन्थ तुम पढ़ कातंत्र माह द्वय में रच सहसनाम इक सहस मंत्र तुम लिखे ग्रन्थ सौ छप लाखों तुम आग्रह से वीरोत्सव दिन पूज्य आर्यिका ज्ञानमती को
वन द्वीप प्रतिष्ठा हुईं महान्
कर उद्घाटन श्री इन्दिरा जी
नर को नारायण करे ज्ञान जैन
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जग
जगत् में ज्ञान ज्योति
यदि हो सबकी सत् ज्ञानमती
पूज्य आर्यिका ज्ञानमती को तुम सम्यग्ज्ञान दीपिका रच
रच वीरसिन्धु संस्कृत शाला हुई न आप-सी कोई आर्यिका जब तक सूरज चन्द्र जगे 'दामोदर' की करो ज्ञानमति पूज्य आर्यिका ज्ञानमती को कोटिक अभिनन्दन है,
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"जय जम्बूद्वीप जय ज्ञानमती"
- पवन कुमार शास्त्री "दीवान प्रतिष्ठाचार्य, एम०ए० मुरैना [म०प्र० ]
"जय जम्बूद्वीप जय ज्ञानमती, जय जय तुम्हरी वाणी है। जिनकी सौम्य छवि लख करके, प्रमुदित होता हर प्राणी है ।। आज विश्व में जिनकी कीरत, बिन पंखों के ही फैली है। ओजपूर्ण है, तर्कपूर्ण है. सुन्दर, सरस, सरल शैली है ।
टिकैतनगर की पुण्य धरा वह, धन्य हुई थी उस दिन है। आसोज शुक्ल पूर्णमासी तिथि, सन् इकानवे विक्रम संवत है जन्म हुआ जब कन्या का तो, पितु छोटेलालजी विस्मित थे । माँ मोहिनी अत्यन्त सखी, आबाल वृद्ध सब हर्षित थे ॥ किया अवलोकन मुखाकृति का, कन्या किलकारी मार रही। न पाया दुनियाँ ने मद उसमें, सो मैना-मैना पुकार रही || बाल्यावस्था विदा हुई तो, किशोरावस्था ने अधिकार किया। तब यौवन क्या चुप रह सकता था, वह भी जोरों से बोल उठा ॥
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