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________________ गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती अभिवन्दन ग्रन्थ [२३९ आरती ज्ञानमती माताजी की - युवा परिषद्, बिजौलिया [राज०] तर्ज-पदमावती माता दर्शन की बलिहारियाँ ज्ञानमति माता दर्शन की बलिहारियाँ - २ वीरमति से ज्ञानमति बन, आगम राह बताई - २ स्याद्वाद का अमृत पीकर, आतम ज्योति जगाई ॥ ज्ञानमति माता . . . . माता तेरी गौरव गाथा, सब नर नारी गावें - २ भाव भक्ति से वंदन करके, मनवांछित फल पावे ॥ ज्ञानमति माता ... . एकान्तवाद का खण्डन करके, सच्ची राह बताई - २ आर्ष मार्ग का पोषण करके धर्म ध्वजा फहराई ॥ ज्ञानमति माता . . . . हस्तिनापुर नगरी माँही, जम्बूद्वीप रचायो - २ बीचोंबीच सुमेरु पर्वत, देखत मन हर्षायो । ज्ञानमति माता . . . . युवा परिषद बिजौलिया से दर्शन करने आती - २ दर्शन करके मात तुम्हारा, मन में अति हर्षाती ।। ज्ञानमति माता . . . . स्नेहिल पुष्प चढ़ाते हैं -पं० बाबूलाल शास्त्री, महमूदाबाद वंदनीय पावन चरणों में, हम नित प्रति शीश नवाते हैं । अनन्त गुणों की खान मात के, गुण वर्णन नहीं कर पाते हैं | महाव्रता की तेज पुज माँ, जगहित करने वाली है। युग युगांत की अद्भुत शक्ति, प्राची दिशि को लाली है । सुरभित पुष्पों को संचयकर, हम श्रद्धा सुमन चढ़ाते हैं । वंदनीय पावन चरणों में, हम नितप्रति शीश नवाते हैं ॥ वीर प्रभु की वाणी का, अमृत तुमने घोला है । रुग्णमुक्त हो मानव ने, माँ की जय ही बोला है । ज्ञान सुधा की जीवनदात्री, पीकर नहीं अघाते हैं ॥ वंदनीय पावन चरणों में, हम नितप्रति शीश नवाते हैं । सदुपदेश मधुमय वाणी का, श्रवण एक बार हो जाता है । हृदय कालिमा धुल जाती है, पाप-पुंज उह जाता है । दीप्ति दिवाकर की किरण मात्र से, अज्ञान तिमिर नश जाते हैं | वंदनीय पावन चरणों में, हम नितप्रति शीश नवाते हैं ॥ Jain Educationa international For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012075
Book TitleAryikaratna Gyanmati Abhivandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages822
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size26 MB
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