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________________ २२६] वीर ज्ञानोदय ग्रन्थमाला दिया उपदेश अमृतमय । उसी को पान कर-कर के, तरंगें रह-रह उठती हैं । किया है केश लुञ्चन आपने, जो शहर गाँवों में । अजैन जनता उसे लखकर, बड़े चक्कर में पड़ती है ॥ केशलोंच आप करती हैं, और जनता आहे भरती है । कठिन जिन साधु परीक्षा से, जनता काँप उठती है ॥ किया है आपने निर्णय, जो यह विहार करने का । घड़ी वो याद कर-कर के, हृदय में हूक उठती है ॥ "बाला" की अरज है इतनी, कि हमको भूल मत जाना । शरण में मुझको भी ले लो, यही हुंकार उठती है ॥ आपके दर्शन से माताजी, मुझको चैन मिलती है। जयवन्त हो माँ . . . . . -कविरत्न सुरेन्द्र सागर प्रचण्डिया, कुरावली [मैनपुरी] (हरिगीतिका छंद) श्रद्धास्पदा हे ज्ञानमति ! अभिनन्दनीय महान हो! तुम अग्रणी गणिनी, निसर्गज आप्त-प्रतिभावान हो! संज्ञान-गीताओं शताधिक की प्रणयिनी आर्यिका ! जयवन्त हो माँ भगवती-आराधना-आराधिका ! तुम आर्यिका-रत्नावली में रत्न सर्वोत्कृष्ट हो । कौमार्यवय से ब्रह्मचर्या में रमी आकृष्ट हो ॥ पथ-दर्शिका तुम हो कुमारी-वृंद की, हे साधिका! जयवन्त हो माँ भगवती-आराधना-आराधिका ! ॥ २ ॥ वैराग्य के बीजांकुरों से 'अथ' तम्हारा धन्य है! जो आज पुष्पित हो रहा आदर्श एक अनन्य है! Jain Educationa international For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012075
Book TitleAryikaratna Gyanmati Abhivandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages822
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size26 MB
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