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________________ गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती अभिवन्दन ग्रन्थ [२२५ आर्यिका ज्येष्ठा, सर्वसुश्रेष्ठा, शारदा इष्टा तुम, वंदन करते हम । धर्म सुलीना, ज्ञानामृत पीना, परम प्रवीना तुम, वंदन करते हम ॥६॥ शत शत बार प्रणाम ! - ताराचन्द जैन शास्त्री, जैनपुरी रेवाड़ी [हरियाणा] केवल ज्ञान सूर्य की निर्मल, दिव्य किरण का ले आलोक, मिथ्यामति के सघन तिमिर को, सहसा दिया आपने रोक । सम्यक् ज्ञान सुधा की धारा, पीकर, अभिनव जो निष्काम, ज्ञानमती माता जी के पद, पद्मों में शत बार प्रणाम ॥ न्यायशास्त्र, व्याकरण काव्य के, ग्रन्थों का अध्ययन अविरामकरके माताजी ने अपना, किया प्रकाशित अन्तर्धाम । काव्यशास्त्र निष्णात निपुण मति, रचनाएँ हैं ललित ललाम, ज्ञानमती माताजी के पद-पद्मों में शत बार प्रणाम ॥ ज्ञान मेरु उत्तुंग शिखर से, ऐसा पुण्य प्रभात हुआ, जिसने दर्शन किये भक्ति से, हर्षित, पुलकित गात हुआ । पूज्य आर्यिका तपस्विनी का, जीवन-दर्शन है अभिराम, ज्ञानमती माताजी के पद, पद्मों में शत बार प्रणाम ॥ ज्ञान भक्ति, वैराग्य-साधना, केन्द्र बिन्दु हैं जीवन के, भव-तन-भोग विरक्त व्यक्ति ही, पाता फल इस नर तन के । निज परणति में मग्न चेतना, पाती है निश्चल विश्राम, ज्ञानमती माताजी के पद-पद्यों में शत बार प्रणाम ॥ वास्तुकला का दिव्य-निदर्शन, जम्बूद्वीप रचाया है, जैन-धर्म भूगोल सत्य का, जग को ज्ञान कराया है । कीर्ति-कौमुदी के फैले हैं, जिनके बहुरंगी आयाम, ज्ञानमती माता जी के पद-पद्मों में शत बार प्रणाम ॥ "मुझको चैन मिलती है" - श्रीमती राजबाला जैन ध० प० नरेन्द्र कुमार जैन रईस, सरधना आपके दर्शन से माताजी, मुझको चैन मिलती है । आपकी शान्त-सी सूरत, मेरी आँखों में फिरती है । हैं आई आप जिस दिन से, Jain Educationa international For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012075
Book TitleAryikaratna Gyanmati Abhivandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages822
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size26 MB
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