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________________ २२४] वीर ज्ञानोदय ग्रन्थमाला केवल ज्ञान में रखतीं मति, अतः ज्ञानमति सार्थक नाम । तव चरणों में नतमस्तक है, रखता कमल है भाव ललाम ॥ साहित्य साधना में ही जिनका, सारा जीवन अर्पित है । अध्यात्म ज्योति के उद्योतन में, तन मन सभी समर्पित है ॥ वस्तु तत्त्व को समझे जनता, अज्ञान भाव से दूर रहे । रखती मन में ऐसी ममता, समता भाव भरपूर रहे | त्याग भावमय परम विभूति, श्रद्धा ज्ञान से आती है । वीतराग सर्वज्ञ देव की वाणी यही सुनाती है ॥ ज्ञानमती का सारा जीवन, उक्त गुणों का है आदर्श । 'कमल' प्रार्थना करता ऐसी. विद्वज्जन करो परामर्श ॥ वन्दे मातरम् -प्रवीणचंद्र जैन [एम०ए०] जम्बूद्वीप-हस्तिनापुर ज्ञानमती माता, ज्ञान प्रदाता, सर्वगुण भूषित तुम, वन्दन करते हम । गणिनी पद युक्ता, पाप विमुक्ता, न्याय प्रभाकर तुम, वन्दन करते हम ॥ १॥ टिकैतनगर में, छोटेलाल घर में, प्रथम सु कन्या तुम, वंदन करते हम । मोहिनी माता, जन्म प्रदाता, ज्ञान की माता तुम, वंदन करते हम ॥ २ ॥ बाल ब्रह्मचारिणी, सब जग तारिणी, कष्ट निवारणी तुम, वन्दन करते हम । गजपुर नगर में, जम्बूद्वीप रचना, प्रथमकारिता तुम, वन्दन करते हम ॥ ३ ॥ शत पंचाशत्, ग्रंथ रचित्री, काव्य करित्री तुम, वंदन करते हम । सौम्य सुवदना, मोहजित मदना, वात्सल्य सदना तुम, वंदन करते हम ॥ ४ ॥ शांतिसागराचार्य, वीरसागराचार्य, उनकी सुशिष्या तुम, वन्दन करते हम । शिवपथ सुनीता, अनेक प्रणीता, अद्भुत महिमा तुम, वंदन करते हम ॥ Jain Educationa international For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012075
Book TitleAryikaratna Gyanmati Abhivandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages822
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size26 MB
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