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________________ गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती अभिवन्दन ग्रन्थ उनको मेरा अभिवन्दन है Jain Educationa International तर्ज- [साजन मेरा उस पार है ।] जिनके चरण में सुर वन्दन है । उनको मेरा अभिवन्दन है ॥ [१] मोहिनी देवी बड़भागी है, जिनने मैना उर धारी है । पावन हुई रज चंदन है | उनको० ॥ [२] बचपन से माता विरागी थीं, धरम में चित को पागी थीं । संगति ने कीना उन्हें रंजन है | उनको० ॥ [३] विषयों को विष सम छोड़ा है, संयम से नाता जोड़ा है । हर्षित हुआ तन अन्तर्मन है | उनको० ॥ देह के तल पर नारी - सन्तान को प्रसव कर माता बनती है । विदेह के तल पर नारी- ज्ञान को प्रकट कर माता कहलाती है । आर्यिका शीर्ष ज्ञानमती माता नारी जाति की - वह निरभ्र उज्ज्वल प्रमाण हैं, जो ज्ञानावरणी के क्षयोपशम से [ ४ ] आर्यिका पद को लीना है, मुक्ति का मारग चीना है । न जिनेन्द्र लघु नन्दन है | उनको० ॥ [4] मैना-मैं-ना यह जाना है, पुद्गल का पहना बाना है । बन्दना - अभिवन्दना है - - कर्मों का करना अब खण्डन है | उनको० ॥ [६] विश्व में प्रथम माता ज्ञानमती, रचना की जम्बूद्वीप बालयती । गजपुर को कीना हरा उपवन है | उनको० ॥ [७] ज्ञान गुणों की भण्डारी हो, जन-जन की उपकारी हो । शास्त्रों की रचना कितनी अनुपम है | उनको० ॥ [C] बुद्धि प्रखर माता पाई है, जिसको लेखन में लगाई है । कार्य कुशलता का निर्देशन है | उनको० ॥ [९] कोटि नमन माता करती हैं. चरणों में शिर को रखती हूँ । आतम बने मेरी कंचन है । उनको मेरा अभिवन्दन है । बाल ब्र० मनोरमा जैन शास्त्री, बी०ए० प्रो० पं० निहालचंद जैन, बीना [मध्य प्रदेश ] ज्ञान की अक्षय चिन्मयताएँ - प्रसव करविराट् माँ बन गयीं । सबकी माँओं की पूज्य "आत्म-मी" बन गयी । हे माता तुम्हारे अन्तस्तल में, For Personal and Private Use Only [२१९ सत्त्वेषु के लिए करुणा / प्रेम का अजस्र स्रोत लहराया । अस्तु! संसारी भी बनने की बजाय/ज्ञान-माँ बनने को मन सिरजाया । तुम्हारे आँचल के अनन्त छोर में, www.jainelibrary.org
SR No.012075
Book TitleAryikaratna Gyanmati Abhivandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages822
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size26 MB
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