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________________ २२०] संतप्त दुःखियारे बेटे शान्ति का सहज सुख पा बैठे । भोर के कमल - सी खिलती- तुम्हारी मुस्कान में, मातृत्व की अथाह थाह, कौन ले पाया ? एक-एक ग्रन्थि काट कर, कितने ग्रन्थ लिख डाले । विषय-विष को पचा - अमृत-पृष्ठ लिख डाले ? अध्यात्म- माँ ! तुमने न्याय / दर्शन के गूढ़तम रहस्यों को धर्म के सरल समीकरण दे डाले । "सम्यक्ज्ञान" की सतत किरणावलियाँ, तुम्हारी - सद्वाणी के अर्घ्य बनकर अँधियारी गलियों के प्रकाश-दीप बन गये । ऐतिहासिक हस्तिनापुर तुम्हारी सोच का सन्दर्भ लिये - "जम्बूद्वीप" के अभिराम प्रतिमान में साकार हुआ । "जम्बूद्वीप" की ऊंचाइयाँ Jain Educationa International वीर ज्ञानोदय ग्रन्थमाला तुम्हारे चिन्तन का स्वर्ण कलश बनकर, अध्यात्म- अन्वेषण की गाथा मुखरित कर रहा । ज्ञान-विज्ञान को ऐसा शिल्प दिया कि अभिराम मंदिर ही शास्त्र बन गये । आर्यिका माँ ! तुमने इस बीसवीं शताब्दी में सौ वर्ष के भविष्य को वर्तमान में रच डाला । तुम्हारी अभिवन्दना में शब्द सार्थक हो गये । तुम्हारी वन्दना में - शब्दातीत मौन मुखर हो गया । जिनके चरण प्रक्षालन से आत्म शुद्धि हो जाती । ऐसी सन्त- आर्यिकारत्न के - चरणों में झुककर वन्दना अभिवन्दना है । गणिनी ज्ञानमती माताजी इस इस युग की अवतार हैं हास्य कवि हजारी लाल जैन "काका" सकरार [झाँसी ] उ०प्र० जिनने कलम चलाकर जग के किये बड़े उपकार हैं। गणिनी ज्ञानमती माताजी इस युग की अवतार हैं ॥ जिनने अपने जीवन के हर क्षण की कीमत जानी। जो भी दिया जगत को वह बन कर रह गया निशानी ॥ जम्बूद्वीप कमल का मन्दिर अद्वितीय बनवाये, ज्ञानज्योति के द्वारा जग में धर्म प्रचार कराये । जैन जाति पर किये आपने ऐसे कई उपकार हैं ॥ गणिनी ज्ञानमती माताजी इस युग की अवतार हैं ॥ धर्म ध्यान में ढाल दिया है अपना कुनबा सारा, रत्नमती को रत्न बनाने का था काम तुम्हारा । बहिन माधुरी बनी आर्यिका ये थी तेरी माया, लोहा सोना हुआ जहाँ पर पहुँचा तेरा साया । एक नहीं, दो नहीं हजारों इस जग पर उपकार हैं । गणिनी ज्ञानमती माताजी इस युग की अवतार हैं ॥ सरस्वती भण्डार भर दिया ऐसी कलम चलाई, इन्द्रध्वज विधान ने सारे जग में धूम मचायी सम्यग्ज्ञान ज्ञान का बादल, बनकर मधु बर्षाता, जिसे पान कर अज्ञानी भी ज्ञानवान बन जाता । कवि "काका" पर कृपा करो माँ हम भी दावेदार है ॥ गणिनी शानमती माताजी इस युग की अवतार हैं । For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012075
Book TitleAryikaratna Gyanmati Abhivandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages822
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size26 MB
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