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वीर ज्ञानोदय ग्रन्थमाला
यात्री बन्धु का हो सत्कार । अतिशयोक्त जम्बूद्वीप सुन्दर आकार || ज्ञानमती माताजी का देखो . .. माँ का सुर नर वन्दन करते । आशीश लेके धन्य समझते ॥ मइया का सुन्दर व्यवहार । अतिशयोक्त जम्बूद्वीप सुन्दर आकार || ज्ञानमतीमाता जी का देखो . . . हस्तिनापुर का था ये जंगल । मइया ने कर दिया है मंगल || जिनवर भक्ती है उपकार । अतिशयोक्त जम्बूद्वीप सुन्दर आकार || ज्ञानमती माताजी का देखो . . . "बी०एस०" धन्य हुआ यहाँ आकर । मइया के शुभ दर्शन पाकर ॥ मइया की शक्ति नवकार । अतिशयोक्त जम्बूद्वीप सुन्दर आकार || ज्ञानमती माताजी का देखो . . . ज्ञानमती माताजी का देखो चमत्कार-देखो चमत्कार अतिशयोक्त जम्बूद्वीप अद्भुत आकार ||
दे ज्ञानमूर्ति माँ वन्दन है
- लालचन्द्र जैन, टिकैतनगर
सादर माता अभिनन्दन है । चिर स्वप्न कल्पनाओं को तू, साकार रूप देने वाली । निज कठिन तपश्चर्या से है, आतम समरस पीने वाली । जिन धर्म ध्वजा विश्वाँगन की छाती पर लहर-फहर जावे । उद्देश्य बना निज जीवन का, कल्याण स्वयं करने वाली ।
तेरे चरणों में वंदन है ।
सादर माता अभिनन्दन है ॥ १ ॥ मानवी नहीं देवी है तू, शुभ कल्याणी गुण होना है । भस्म कर रही स्वयं त्याग से, कामदेव की सेना है । आज पा रहा विश्व तुझी से, मार्ग सतत सीधा सच्चा । विस्मृत जगत निहार रहा है, सचमुच में तू मैना है ।
पद कुंजों में मम प्रणमन है।
__ सादर माता अभिनंदन है ॥ २ ॥ था साहस कौन विरोध करे, तेरे वैराग्य विचारों को । था वीर कौन जो रोक सके, तेरे शुभ बढ़ते कदमों को । अपनी-अपनी कह थक हारे, कर सके न परिवर्तित निश्चय । निर्मम निर्द्वन्द्वं निकल चल दीं, बस कर्मों के झुलसाने को ।
अपनी श्रद्धा तव अर्पण है। सादर माता अभिनन्दन है ॥ ३ ॥
गृह बंधन की दीवार तोड़, चल पड़ी सुपथ देखो मैना । परतंत्र श्रृंखला दूर हटा, बढ़ चली धर्म पथ पर मैना । थी जन्म वीर बन वीरमती, से ज्ञानमती बन कर मैना । दुनिया को शांति सुपथ देने, उड़ चली आज अपनी मैना ।
पुलकित श्रद्धा से जन मन है।
सादर माता अभिनन्दन है ॥१॥ भूल सकेगा कौन तेरे, साहित्य-सृजन उपकारों को । शुचि जम्बूद्वीप-सुमेरु-कमल मन्दिर, वाटिका विहारों को । उपदेशामृत के अवगाहन से, जन-जन नम्रीभूत हुए । तूने निज त्याग-तपस्या से, सत्पथ दिखलाया मानव को ।
हे ज्ञानमूर्ति माँ वंदन है।
सादर माता अभिनन्दन है ॥ ५ ॥ चिरयुग तक तेरी दया दृष्टि का, आभारी माता हूँ मैं । तेरे इंगित को लक्ष्य बना, सुखशांति सतत पाता हूँ मैं । जीवन को पूर्ण दुरूह विषमताओं का दे हल आज सुलभ । मन-वच-तन नम्रीभूत चरण पर, अभिनंदन करता हूँ मैं ।
चारित्र मूर्ति पद अर्चन है। सादर मात अभिवंदन है ।
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