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गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती अभिवन्दन ग्रन्थ
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-जयमाला
दोहा- ज्ञानमती को नित नमू, ज्ञान कली खिल जाय ।
ज्ञानज्योति की चमक में, जीवन मम मिल जाय ॥ धुन-नागिन; मेरा मन डोले . . . . . . हे बाल सती, माँ ज्ञानमती, हम आये तेरे द्वार पे,
शुभ अर्घ्य सँजोकर लाए हैं। शरद पूर्णिमा दिन था सुन्दर तुम धरती पर आई। उन्निस सौ चौतिस में माता मोहिनी जी हर्षाईं ॥ . . . माता थे पिता धन्य, नगरी भी धन्य, मैना के इस अवतार मे,
शुभ अर्घ्य सँजोकर लाए हैं ॥१॥ बाल्यकाल से ही मैना के मन वैराग्य समाया । तोड़ जगत के बन्धन सारे छोड़ी ममता माया ॥ . . .माता गुरू संग मिला, अवलम्ब मिला, पग बढ़े मुक्ति के द्वार पे,
शुभ अर्घ्य सँजोकर लाए हैं ॥ २ ॥ शान्तिसिन्धु की प्रथम शिष्यता वीरसिन्धु ने पाई। उनकी शिष्या ज्ञानमतीजी ने ज्ञान की ज्योति जलाई। ...माता शिवरागी की, वैरागी की, ले दीप सुमन का थाल रे,
शुभ अर्घ्य सँजोकर लाए हैं ॥ ३ ॥ माता तुम आशीर्वाद से जम्बूद्वीप बना है। हस्तिनापुर की पुण्यधरा पर कैसा अलख जगा है ।।... माता ज्ञान ज्योति चली, जगभ्रमण करी, तेरे ही ज्ञान आधार पे,
शुभ अर्घ्य सँजोकर लाए हैं ॥ ४ ॥ यथा नाम गुण भी हैं वैसे तुम हो ज्ञान की दाता। तुम चरणों में आकर के हर जनमानष हर्षाता ॥ . . . माता साहित्य-सृजन, श्रुत में ही रमण, कर चलीं स्वात्म विश्राम पे,
शुभ अर्घ्य सँजोकर लाए हैं ॥ ५ ॥ गणिनी माता के चरणों में यही याचना करते । कहे "चन्दनामती" ज्ञान की सरिता मुझमें भर दे॥... माता ज्ञानदाता की, जगमाता की वन्दना करूँ शत बार मैं,
शुभ अर्घ्य सँजोकर लाए हैं ॥६॥ दोहा -लोहे को सोना करे, पारस जग विख्यात ।
तुम जग को पारस करो, स्वयं ज्ञानमति मात ॥ ७ ॥ ॐ ह्रीं श्रीज्ञानमतीमाताजी जयमाला पूर्णाऱ्या निर्वपामीति स्वाहा । दोहा-ब्राह्मी माता के सदृश, ज्ञानमती जी मात । सदी बीसवीं की प्रथम, क्वारी कन्या आप ॥
इत्याशीर्वादः
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