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________________ १९४] वीर ज्ञानोदय ग्रन्थमाला ॐ ह्रीं श्रीज्ञानमतीमाताजी काम बाणविनाशनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा । मानव सुन्दर पकवानों से अपनी क्षुधा मिटाते हैं। लेकिन उनके द्वारा भी नहिं भूख मिटा वे पाते हैं । आत्मा की संतृप्ति हेतु तव वाणी मेरा भोजन है। तेरी पावन प्रतिभा लखकर, मेरा मन भी पावन है ॥ ५ ॥ ॐ ह्रीं श्रीज्ञानमतीमाताजी क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा। विद्युत के दीपों से जग ने गृह अन्धेर मिटाया है । ज्ञान का दीपक लेकर तुमने अन्तरंग चमकाया है ।। घृत का दीपक लेकर माता हम करते तव प्रणमन है। तेरी पावन प्रतिभा लखकर, मेरा मन भी पावन है ॥ ६ ॥ ॐ ह्रीं श्रीज्ञानमतीमाताजी मोहान्धकारविनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा । कर्मों ने ही अब तक मुझको यह भव भ्रमण कराया है। तुमने उन कर्मों से लड़कर त्याग मार्ग अपनाया है । धूप जलाकर तेरे सम्मुख हम करते पूजन हैं। तेरी पावन प्रतिभा लखकर, मेरा मन भी पावन है ।। ७॥ ॐ ह्रीं श्रीज्ञानमतीमाताजी अष्टकर्मदहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा। कितने खट्टे-मीठे फल को मैंने अब तक खाया है। तुमने माँ जिनवाणी का अनमोल ज्ञानफल खाया है। तव पूजनफल ज्ञाननिधी मिल जावे यह मेरा मन है। तेरी पावन प्रतिभा लखकर, मेरा मन भी पावन है ॥ ८ ॥ ॐ ह्रीं श्रीज्ञानमतीमाताजी मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा। पिच्छी कमण्डलधारी माता नमन तुम्हें हम करते हैं। अष्ट द्रव्य का थाल सजाकर अर्घ्य समर्पण करते हैं । युग की पहली ज्ञानमती के चरणों में अभिवन्दन है। तेरी पावन प्रतिभा लखकर, मेरा मन भी पावन है ॥ ९॥ ॐ ह्रीं श्रीज्ञानमतीमाताजी अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा । शेर छंदहे माँ तू ज्ञान गंग की पवित्र धार है। तेरे समक्ष गंगा की लहरें बेकार हैं। उस धार की कुछ बूंदों से जलधार मैं करूँ। वह ज्ञान नीर मैं हृदय के पात्र में भरूँ ॥ शांतये शान्तिधारा । स्याद्वाद अनेकान्त के उद्यान में माता । बहुविध के पुष्प खिले तेरे ज्ञान में माता ।। कतिपय उन्हीं पुष्पों से मैं पुष्पांजलि करूँ । उस ज्ञानवाटिका में ज्ञान की कली बनूँ ॥ दिव्य पुष्पांजलिं क्षिपेत् । Jain Educationa international For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012075
Book TitleAryikaratna Gyanmati Abhivandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages822
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size26 MB
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