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गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती अभिवन्दन ग्रन्थ
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प्रदीक्षितां यां श्रमणी-पदेऽकरोत् ,
सदैव तां ज्ञानमती वयं नुमः ॥ अर्थ :- तपस्वी मुनियों में जो अग्रगण्य मुनीन्द्र आचार्यपदासीन आ० श्री वीरसागरजी महाराज ने जिन्हें आर्यिका (श्रमणी) पद की दीक्षा दी, उन
पूज्य आर्यिका श्री ज्ञानमती माताजी को हमारी वन्दना (नमोऽस्तु) है।
छन्दः स्रग्धरा जम्बूद्वीप-प्रतिकृतिवरां हस्तिनापुर्यदोषाम्,
शास्त्रप्रोक्तां परमसुभगां स्थापितुं प्रेरयद् या। ज्ञानज्योतिर्विचरणमिहाकारयद् धर्मवृद्ध्यै,
वन्द्यौ तस्याश्चरणजलजौ ज्ञानमत्यार्यिकायाः॥ अर्थ :- हस्तिनापुर में शास्त्रीय विधि से दोषरहित तथा परम सुन्दर जम्बूद्वीप का मॉडल स्थापित करने के पीछे जिनकी सत्प्रेरणा रही, जिनकी प्रेरणा से
ज्ञान-ज्योति का (भारतवर्ष में) विचरण हुआ और फलस्वरूप धर्म-वृद्धि हुई, उन पूज्य आर्यिका श्री ज्ञानमती माताजी के चरणकमलों में हमारी वन्दना हो।
(११)
छन्दः शार्दूलविक्रीडित विज्ञानं सकलानुयोगनिहितं यस्मिन्समाख्यायते,
सत्यान्वेषणकर्माणि प्रयतते दृष्ट्या च मध्यस्थया । हिन्यां मासिकपत्रमेकमपि यत्संप्रेरितं राजते,
सम्यग्ज्ञानमिति प्रसिद्धिमिह तां भक्त्याऽऽर्यिकाग्रयां नमः ॥ अर्थ :- पूज्य आर्यिका श्री की प्रेरणा से 'सम्यग्ज्ञान' नामक प्रसिद्ध हिन्दी मासिक पत्र प्रकाशित होता रहा है, इस पत्र में सभी अनुयोगों
की सामग्री निहित रहती है तथा मध्यस्थ दृष्टि से 'सत्य' के अनुसन्धान को प्रस्तुत किया जाता रहा है, उन मातुश्री पूज्ज आर्यिकाजी को हम भक्तिपूर्वक वन्दना (नमोऽस्तु) करते हैं।
स्तुतिपरकं काव्यम् मंगलाभिधानम्
कमलकुमार जैन-गोइल्ल, कलकत्ता
अनुष्टुप् -
आर्यारत्नं नमस्कृत्य, ज्ञानमति सुनामकम् । विरच्यते मया भक्त्या, ज्ञानमत्यष्टकं शुभम् ॥ १ ॥
आर्याछन्द -
यस्याः सम्यग्ज्ञानं, प्रवर्धमानं प्रकर्षतां प्राप्तम् ।
लोके पूज्यतमायाः, वन्दे तां ज्ञानमतिमार्याम् ॥ २ ॥ वागीशी प्रभाकरी, ख्यातां सिद्धान्तवाचस्पतिं वै । स्वेतरकल्याणकरी वन्दे तां ज्ञानमतिमार्याम् ॥ ३ ॥
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