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________________ १८४] अर्थ : अर्थ : अर्थ : -- वीर ज्ञानोदय ग्रन्थमाला (५) छन्दः इन्द्रवज्रा अध्यात्म-भूगोल-सुनीति-धर्म अर्थ :- जिनकी सत्प्रेरणा से अनेक भव्य प्राणी सम्यक्त्व युक्त हो चुके हैं और हो रहे हैं, उन भव्यों में से कितनों ही ने अणुव्रत या महाव्रत भी ग्रहण किए हैं, उन पूज्य आर्यिका श्री ज्ञानमती माताजी को भक्तिपूर्वक हमारी वन्दना (नमोऽस्तु) है। न्यायादिनानाविषयेष्वनेकान प्रन्धान् विरच्य प्रथितां जगत्याम्, भक्त्याऽऽर्थिकज्ञानमर्ती नमामः ॥ पूज्य आर्यिका श्री ज्ञानमती माताजी ने अध्यात्म, जैन भूगोल, नैतिक सदाचार, धर्म, न्याय आदि अनेकों विषयों पर ग्रन्थों की रचना कर संसार में ख्याति प्राप्त की है, उन्हें हमारी भक्तिपूर्वक वन्दना (नमोऽस्तु) है। Jain Educationa International (६) छन्दः उपजाति यदीय-सत्प्रेरणया च भव्याः, सम्यक्त्वयुक्ताः बहवः प्रजाता । व्रतानि केचित्समुपाश्रयंस्ताम्, भक्त्याऽऽर्थिकां ज्ञानमतीं नमामः ॥ (61) छन्दः उपजाति जिनोक्त-शास्त्रोदधिमन्थनाय, यद् वा शुभे प्रेरयितुं मनुष्यान् । संदृश्को यद्व्यसनं सदैव, भक्त्याऽऽर्थिकां ज्ञानमर्ती नमामः ॥ जिनका व्यसन या तो जैन शास्त्र रूपी समुद्र के मन्थन के लिए, या फिर मानवों को शुभ कार्यों में प्रवृत्त करने के लिए दिखाई पड़ता है, उन पूज्य आर्यिका श्री ज्ञानमती माताजी को हम भक्तिपूर्वक वन्दना ( नमोऽस्तु) करते हैं। 1 (८) छन्दः वंशस्थ यतीन्द्रसंघाधिपदेशभूषण सुनामकाचार्यवर-प्रसादतः विरक्त्या क्षुल्लिकयाप्यभूयत, 1 सदैव तां ज्ञानमर्ती वयं नुमः ॥ जिन्होंने श्रमण-संघ के आचार्य श्री देशभूषण जी महाराज के शुभाशीर्वाद से 'क्षुल्लिका' के रूप में वैराग्यदीक्षा प्राप्त की, उन पूज्य श्री आर्यिका ज्ञानमती माताजी को हम वन्दना ( नमोऽस्तु) करते हैं। (९) छन्दः वंशस्थ तपस्विवर्याणि वीरसागरः, मुनीन्द्र आचार्यपदप्रतिमि For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012075
Book TitleAryikaratna Gyanmati Abhivandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages822
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size26 MB
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